रोहित कुमार सिंह
आज, गुरूवार को मैं प्रधानमंत्री को सुन रहा था. वे लोकपाल बनाम जनलोकपाल बिल पर अपना वक्तव्य दे रहे थे. पीएम मनमोहन सिंह शुरू हुए -मैं र्इमानदार हूं. मेरी संपतित की जांच करा ली जाये. मुझे मुरली मनोहर जोशी के भ्रष्टाचार की गंगोत्री बतायेजाने के आरोप से दुख हुआ है. मैंने देश को 20 वर्षों के राजनीतिक जीवन मेंजो भी हुआ , बेहतरी के साथ सेवा की. कुल मिला कर उन्होंने अपनी मजबूरी गिनायी, बेचारगी जतायी. माननीय प्रधानमंत्री जी ने सबकुछ बताया पर यह बताने से परहेज किया कि घोटाले दर घोटाले होते रहे, इस दौरान उनकी क्या भूमिका रही.
क्या पीएम साहब को इस बात से इनकार है कि ए राजा के खिलाफ सरकार तभी कार्रवार्इ के लिए आगे बढी, जब मामला कोर्ट-कचहरी में पहुंच गया. जबकि राजा के खिलाफ आवेदन सबूत के साथ दोवर्षों सेउनके पीएमओमें लावारिस पडा था.
इसमें कोर्इ दो राय नहीं है कि वे र्इमानदार हैंपर एक बात यह भी है कि उन्होंने राजधर्म का पालन नहीं किया. जिस देश में 300 करोड में बननेवाला स्टेडियम 3000 करोड बना, कौडियों के भाव टू जी स्पेक्ट्रम के लाइसेंस बांट कर ए राजा ने करोडों बनाये ,अरबों का आदर्श सोसाइटी घोटाला हुआ, उस देश के प्रधानमंत्री इस्तीफा देकर संसद से बाहर क्यों नहीं है, यह सबसे बडे आश्चर्य की बात है. प्रधानमंत्री ने अपनी सब बातें बतायीं पर प्रधानमंत्री बने रहने की मजबूरी नहीं बतायी. मैं क्या पूरा भारत उसे नंबर वन र्इमानदार मानता है पर ऐसी र्इमानदारी किस काम की, जो देश के लिए किसी काम की नहीं हो. यह एक दिन की बात नहीं है. यूपीए 1 की सरकार में वोट फार नोट कांड हुआ, र्इमानदारी का तकाजा तो यही बनता था कि पीएम मामला आते ही इस्तीफा देकर किनारे हो जाते. क्या प्रधानमंत्री ऐसा करेंगे, अगर पीएम ऐसा करते हैं तो जिस उच्च लोकतांत्रिक की बात हमारे देश में होती है अथवा कांग्रेसी करते हैं वह एक बार फिर स्थापित होगी.
वंदे मातरम, भारत माता की जय
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