शनिवार, 27 दिसंबर 2008

छबीस नवम्बर से छबीस दिसम्बर के बीच क्या बदला


छबीस नवम्बर को जब मुंबई पर अटैक हुआ तो भारत ने ताव में आकर १०० बयान दिए । लगा की इस बार भारत कुछ करवाई करेगा । लेकिन उस बात को बीते आज एक महीने हो गए है । भारत सरकार लिस्ट देने की करवाई से आगे नही बढ़ पाई है । ऐसे में सरकार को यह बताना चाहिये की बयान वीर नेता देश को कैसे सुरक्षा देंगे । लिस्ट को पाकिस्तान ने गुसलखाने के पेपर के रूप में इस्तेमाल कर फेक दिया और सरकार केवल बयान जारी करती रह गई । आतंकबाद के खिलाफ भारत कैसी लडाई लड़ रहा है , जिसमे ३० हज़ार से जायदा भारत के लोग मारे जा चुके है , जबकि दुश्मनो की संख्या १००० भी नही है । कैसी लडाई लड़ रहे है हम , यह शर्म से डूब मरने की बात है । हमारे देश के नेता या तो पाकिस्तान से हिसाब बराबर करे या कश्मीर को लौटाने की दिलासा देना बंद करे ।

बुधवार, 24 दिसंबर 2008

आपने डरफोक देखा है

आपने डरफोक देखा है । नही तो भारत के नेता लोगो को देखिये । ख़ुद चार सतरिये सुरक्षा में रहते है और जनता को पाकिस्तान के आतंकबादी के हाथो मरने के लिए छोड़ देते है ।
जनता जब उनसे कहती है की पाकिस्तान का कुछ करो तो वे लंबे - लंबे बयान जारी कर काजगी सेर बन जाते है ।

सोमवार, 15 दिसंबर 2008

पाकस्तान का क्या करना है तय करें


पाकिस्तान के साथ भारत या तो युद्ध कर सकता है या कश्मीर पर समझौता । युद्ध ९५ पर्तिशत भारतियो का विकल्प है तो पाच पर्तिशत का विकल्प कश्मीर पर समजौता है । पाकिस्तान भारत से तिन युद्ध कर चुका है । इसके आलावा वो ५० वर्सो से भारत में आतंकबाद चला रहा है । उसकी सारी कवायद बस इस लिए है की बस कश्मीर उसे मिल जाए । यकीन मानिये जिस दिन कश्मीर पर ऐसा फ़ैसला हो गया , भारत में आतंकबाद आदि ख़ुद ख़त्म हो जाएगा । समय की मांग है की भारत आगे बढ़ कर युद्ध करे और अपने कश्मीर को बापस लेकर देश-दुनिया के सामने मिसाल रखे ।

गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

पाकिस्तान को कारगिल जैसा जवाब दे - युद्ध और युद्ध
















भारत को पाकिस्तान पर हमला करना चाहिये

मुंबई हमलो में पाकिस्तान के आतंकबादी समूह का हाथ था , यह दुनिया के सामने आ चुका है । लेकिन दुर्भाग्य देखिये भारत सरकार ५० वर्ष पुरानी धमकी के खेल में लगी हुए है । आतंक के खात्मे का केवल एक ही समाधान है हम पाकिस्तान पर हमला करें और अपना कश्मीर बापस लेकर पाकिस्तान से सारे सम्बन्ध तोड़ ले ।

मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

कसाब को लेकर मीडिया संजीदा क्यों


हमारी मीडिया भी दोहरी चरित्र की है । एक तरफ तो वो नेताओ को आतंकबाद के मुद्दे पर दोहरा मापदंड अपनाने पर गरिया रही है । तो दूसरी ओर वो रोज - रोज कसाब पर स्टोरी दिखा कर तरह - तरह की कहानी सुना रही है । जैसे, कसाब को किसकी फिल्म पसंद है , उसे खाने में क्या पसंद है , कैसे उसे गुमराह कर आतंकबादी बना दिया गया । क्या नौटंकी है यह । जिस तरह से नेता वोट के लिए मर रहे है , वैसे ही मीडिया टीआरपी के लिए सब करम कर रही है । कसाब येहा मैच नही खेलने आया था , वोह येहा तबाही मचाने आया था । मीडिया कैसे इन बातो को भूल गई , ये शर्मनाक है । मीडिया की इन करतूतों से होगा यह की मानवाधिकार वाले और मुस्लिम वोट के भूखे नेता और कांग्रेस जैसे पार्टी उसके बचाव की मांग करने लगेगी की उसे छोड़ दिया जाए । देश को याद है की अफजल के मामले में ऐसा ही हुआ है ।

सोमवार, 8 दिसंबर 2008

दिल्ली चुनावो में भाजपा की हार के मायने

दिल्ली चुनावो में भाजपा की हार हिंदुत्व की हार है । यह भाजपा के केन्द्रीय नेत्रित्व की भी हार है , जो आतंकबाद जैसे मुद्दे को जनता के सामने ठीक से नही रख सकी । लोकतंत्र में जनता मालिक होती है , इसमे कोई शक नही है । लेकिन मै दिल्ली के चुनाव परिणाम देख कर हैरान हूँ । ठीक है की शिला ने वहा कुछ काम किया है , लेकिन आतंकबादी अफजल की फाइल भी वोही दबा कर बैठे रही है , इसे किसी को बताने की जरुरत नही है । वहा के वोटरों ने आतंकबाद जैसे मुद्दे को कैसे इग्नौर किया , मुझे समझ में नही आ रहा है । वोह भी तब जब मुंबई (महारास्ट्र) में कांग्रेस की सरकार रहे हुए अब तक का सबसे बड़ा आतंकबादी हमला दिल्ली सहित देश ने देखा ।

शनिवार, 6 दिसंबर 2008

आतंकबाद से लड़ सकनेवाले योद्धा

मुंबई के आतंकी हमलो के बाद यह सवाल उठ खड़ा हुआ है की भारत के कौन - कौन राजनेता आतंकबाद से लड़ सकते है । मेरे विचार से यह संख्या १० भी नही है । इनमे पहला नाम नरेन्द्र मोदी का हो सकता है । दूसरा नाम लाल कृष्ण अडवाणी का हो सकता है । तीसरा नाम जगमोहन का , चौथा नाम अरुण जटली का, पाचवा नाम प्रियंका गाँधी का , छठा नाम जय ललिता का , सातवा नाम भाजपा के बिजय मल्होत्रा का, आठवा नाम चंद्र बाबु नायडू का , नौवा नाम उमा भारती का हो सकता है । १० वे नम्बर के लिए कोई नाम नही है । इस लिहाज से आने वाले लोक सभा चुनाव में हमे इनका हाथ मजबूत करना चाहिये । लालू यादव , मुलायम यादव , रामविलास पासवान , सोनिया गाँधी जैसे " देश भक्तो " को हमे वोट नही देना चाहिये , ऐसा मै मानता हूँ ।