रविवार, 25 सितंबर 2011

7600 हिटस के लिए धन्यवाद

बिग हिंदू की ओर से 7600 हिटस के लिए सभी शुभचिंतकों को बधार्इ. आशा है आप अपना सहयोग इसी तरह बनाये रखेंगे.

आभार सहित

रोहित कुमार सिंह

बिग हिंदू

सोमवार, 19 सितंबर 2011

नरेंद्र मोदी ने ठीक किया

रोहित कुमार सिंह

भारत की सियासत में कुछ भी संभव है. नरेंद्र मोदी की सदभावना उपवास कार्यक्रम के अंतिम दिन सोमवार को टोपी विवाद को जिस तरह से हवा देकर इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गयी , उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस एंड कंपनी किसी सूरत में मोदी को बरदाश्त नहीं करना चाहती है.

पहले टोपी विवाद का पूरा वाकया पढें. मंच पर एक मौलवी साहब आते हैं, मोदी पूरी शिददत के साथ उनसे मिलते हैं, दोनों के बीच बातचीत होती है. अचानक मौलवी साहब अपनी जेब से एक इबादती टोपी निकालते हैंऔर मोदी को पहनाने की ख्वाहिश जाहिर करते हैं. मोदी आग्रहपूर्वक टोपी पहनने से इनकार कर देते हैं और एक चादर को स्वीकार कर मौलवी साहब को सम्मानपूर्वक विदा कर दिया.

जब मामले को कांग्रेस व सत्ता के सेकुलर दलालों द्वारा तूल दिया जाने लगा तो भाजपा की ओर से कहा गया कि टोपी इबादत के लिए होती है, लिहाजा टोपी पहनना अथवा न पहनना की भी रूप से राजनीति का अंग नहीं हो सकता है. मेरा भी व्यकितगत रूप से मानना है कि अपना धर्म किसी पर थोपना नहीं चाहिए, हर धर्म की अपनी मर्यादा व सीमा होती है, इसका उल्लंघन किसी भी सूरत में नहीं किया जाना चाहिए. पर इस देश में कांग्रेस की जो यूपीए है वह इन बातों से इत्तफाक नहीं रखती है. मेरा सवाल हो -हल्ला मचा रही कांग्रेस से है- क्या अगर मोदी टोपी स्वीकार कर लेते तो वह सेकुलर हो जाते, क्या बिना टोपी पहने मोदी ने जो आज तक गुजरात पर शासन किया है उसमें मुसलमानों का भला नहीं हुआ है, मोदी ने धर्म के नाम पर नाटक नहीं किया जो अमूमन सभी नेता करते हैं . पवित्र रमजान के समय हमारे नेता टोपी, पायजामा-कुरता, लाल या काली गमछी पहन-ओढ कर नमाजियों के संग एकता जताने के लिए जुट जाते हैं व उनके पवित्र रोजा खोलने को इफतार पार्टी बना डालते हैं. रमजान में नमाजी अल्लाह की इबादत में जुटे रहते हैं व एक शाम भोजन कर रोजा खोलते हैं , पर क्या हमारे नेता ऐसा करते हैं. वे तो दिन भर कम-कुकर्म कर शाम को भांड की तरह जाकर झूटी एकता जताने लगते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से मुसलमान खुश होंगे व उन्हें वोट देंगे. अगर मोदी ने आग्रहपूर्वक टोपी लौटा दी तो कौन सा पहाड टूट पडा. कम से कम एक बात के लिए मोदी को शाबासी मिलनी चाहिए कि उन्होंने किसी के धर्म का अनादर नहीं किया.

बुधवार, 7 सितंबर 2011

माफ कर दें मनमोहन

एक ही बात बार-बार देश पूछते-पूछते थक गया है कि भर्इया मनमोहन आपकी आतंकवाद से लडार्इ कब शुरू होगी. जनाब आज के बम विस्फोट के बाद भी टीवी पर देशवासियों को अपने हिट बयान सुनाते दिखे. कितनी अजीब बात है कि जिस मुंबर्इ हमले मामले में बयानबाजी करने पर होम मिनिस्टर की कुर्सी चली गयी, उसी हमले के मुजरिम को देशवासियों के टैक्स के पैसों से ऐश कराया जा रहा है. बेशर्मी की हद यह है कि जिस संसद में ये भार्इ लोग देश को प्रवचन सुनाते हैं , उस पर हमले के आरोपित को ये लोग पाल-पोस रहे हैं. अगर कांग्रेस का आतंकवाद से लडने का तरीका यही है तो मनमोहन एंड कंपनी को देश को माफ कर देना चाहिए. उसकी आतंकवादियों से दरियादिली अब देश को भारी पड रही है. माना कि हमारे देश की आबादी 113 करोड के करीब है, लेकिन इसका यह मतलब कतर्इ नहीं है कि हम अपने कर्णधार को अपनी बलि चढाने के लिए खुद को सौंप दें. हमारे होम मिनिस्टर के साहस की बानगी देखिए-बाबा रामदेव के आंदोलन को दबाने के लिए जनाब को 12 बजे रात में पुलिस दमन कराने का दमखम आ जाता है, अन्ना हजारे को अनशन करने से रोकने के लिए स्वतंत्रता दिवस के एक दिन बाद गिरफतार कर लिया जाता है, पर उनकी सारी वीरता आतंकवादियों के आगे काफूर हो जाती है.

कांग्रेस के नरम रवैये का नतीजा है आतंकी हमला

राष्ट की सुरक्षा हर देश की सबसे बडी जिम्मेवारी होती है, पर लगता है कि आज कांग्रेस सरकार अपनी जिम्मेवारियों को भूल कर देश पर हमले के दोषियों-आतंकवादियों को ही सुरक्षा देने में लगी है, तभी तो अफजल गुरू व अजमल कसाब जैसे देश पर हमले के दोषियों को फांसी देने के बजाय अतिथि बना कर रखा गया है.

इकबाल इमाम

एक बार फिर देश की राजधानी आतंकी हमले से दहल गयी. दर्जन भर बेकसूर लोगों की जान गयी, 70 से अधिक लोग जख्मी हुए. आज सबसे बडा सवाल यह है कि बार-बार देश की सुरक्षा में सेंध क्यों लग जाती है़, आतंकी अपने मंसूबों में क्यों सफल हो जाते हैं, हमारा सुरक्षा तंत्र व खुफिया महकमा हर बार आतंकी हमले के बाद ही क्यों जागता है. इस बार अदालत को निशाना बनाया गया है. आतंकवादियों की मंशा साफ है. इससे तीन माह पूर्व भी वहीं हमला किया गया था. संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू व मुंबर्इ हमले के दोषी अजमल कसाब सहित दर्जनों आतंकवादियों को सजा सुनाये जाने के बाद भी अब तक फांसी नहीं दी गयी है. फांसी पर लटकाने के बजाय केंद्र की कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने इन आतंकवादियों को अतिथि बना कर रखा है. इस हमले की जितनी भत्र्सना की जाये, कम होगी. लेकिन इससे बढ कर उस कांग्रेस सरकार की भत्र्सना होनी चाहिए, जो देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड कर रही है. सभी जानते हैं कि अजहर मसूद के साथ क्या हुआ. एक यात्री विमान को हाइजैक कर अजहर सहित कर्इ आतंकवादियों को छुडा लिया गया. सवाल यह है कि क्या उस घटना से हमने कोर्इ सबक लिया, अगर नहीं लिया तो आखिर क्यों नहीं. क्या केंद्र की कांग्रेस सरकार , उसके मुखिया मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी चाहते हैं कि एक बार फिर आतंकवादी कोर्इ विमान हाइजैक करें और बदले में कसाब, अफजल व अन्य आतंकवादियों को सुरक्षित पाकिस्तान ले जाकर छोड दिया जाये, अगर ऐसा नहीं है तो केंद्र सरकार कडा रूख क्यों नहीं अपना रही है, क्यों देश की सुरक्षा के साथ आपराधिक लापरवाही बरती जा रही है, क्यों फांसी की सजा सुनाये जाने के बावजूद आतंकवादियों को दामाद की तरह रखा जा रहा है. जिस पाकिस्तान में वहां सरकार, सेना व आइएसआइ की मदद से भारत पर हमले के लिए आतंकी संगठनों को प्रशिक्षित किया जाता है , उसी पाकिस्तानी सरकार से बार-बार वार्ता करने, उस पर भरोसा करने, मुंबर्इ हमले में उसकी स्पष्ट भूमिका उजागर होने के बाद भी वहां आतंकवादियों के प्रशिक्षण केंद्रों को घ्वस्त नहीं करने और वहां की सरकार पर भरोसा करने की नादानी की गयी. दरअसल, यह नादानी नहीं, आपराधिक लापरवाही है . बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलनों को बर्बरता से कुचलनेवाली कांग्रेस सरकार आतंकवादियों के प्रति नरम रूख अपना रही है. यह देशवासियों के साथ विश्वासघात है, जो शर्मनाक है.

---लेखक बिहार से छपनेवाले एक दैनिक में हैं.

कॉमन मैन की कार्रवाई

रोहित कुमार सिंह
देश का हॉल इन दिनों बहुत बुरा है. आतंकवादी-दर-आतंकवादी जेल में जमा होते जा रहे हैं और सरकार है कि उन्हें फांसी देने की सोच भी नहीं रही है. अब देखिये न सुना है दिल्ली हाइकोर्ट के बाहर कुछ धमाका-वमाका हुआ है. इसके आलावा नामुराद आतंकवादियों का जहां मन होता है, घुस आते हैं और तबाही मचा कर लौट जाते हैं. इधर, सरकार ऐसे "बिहेव' करने लगती है, मानो कुछ हुआ ही न हो. सरकार के मंत्री कहते हैं कि बड़े-बड़े शहरों में छोटी-छोटी घटनाएं हो जाती हैं. बताइए साहब, आदमी की जान की कीमत है कि नहीं. जब मंत्री महोदयों के साथ ऐसी "छोटी-मोटी' घटनाएं होंगी तो समझ में आयेगा कि जान की कीमत क्‌या होती है. इन्हीं सब बातों को लेकर मैं दिल्ली की सड़कों पर "चिंता' करते हुए घूम रहा था. सोच रहा था कि भगवान इस देश का क्‌या होगा. कैसे चेलगा खटोला . इतने में मुझे लगा कि कोई मुझे चिल्ला चिल्ला कर रुकने को कह रहा है. मुझे लगा कि इस "हस्तिनापुर' में मुझे जाननेवाला कौन हो सकता है. इतने मे मैंने देखा कि मुझे बुलानेवाला कोई और नहीं स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हैं. मुझे शंका हुई तो मैंने उन्हें इशारा कर पूछा कि कौन मैं? उधर से आवाज आयी-ओ हां यार तुम ही, रुको तो. मैं रुक गया. अब सामने मनमोहन सिंह थे. जब मैंने उन्हें प्रणाम किया तो उन्होंने कहा कि-अरे मैं कांग्रेस का कॉमन मैन हूं. कॉमन मैन मतलब आम आदमी. और जब मैं आम आदमी हूं तो ताकुल्ल्फ़ कैसी. मैं भारत की पदयात्रा पर अकेले निकला हूं. मुझे जानना है कि देशवासियों का दिन इन दिनों कैसे गुजर रहा है. मैंने सोचा कि अब मेरे सामने प्रधानमंत्री नहीं कॉमन मैन है, सो मौका बढ़िया है, दिल की भड़ास निकल ली जाये. तक ताकुल्ल्फ़छोड़ते हुए मैंने भी शुरू किया क्‌या कॉमन मैन की बात करते हैं. आज देश में जो कॉमन मैन की गत है, उससे तो ज्‌यादा मजे में सड़कों पर रहनेवाले आवारा कुत्ते हैं. कम-से-कम वे आतंक व महंगाई जैसी चीजों से बचे हुए हैं. आपके कॉमन मैन की हालत यह है कि घर के बाहर उसे आतंक का खौफ है तो घर के अंदर महंगाई का. बेचारा न जी रहा है, न मर रहा है. बीच में टोकते हुए मनमोहन सिंह ने कहा-यह आप क्‌या और कैसे कह रहे हैं. आतंक को रोकने के लिए हम लगातार लगातार लगातार पाकिस्तान के संपर्क में हैं, हमने आतंकियों की लिस्ट उसे सौंपी है. रही बात महंगाई की तो आप लगता है अपडेट नहीं हैं. महंगाई दर ऐसे गिर रही है, जैसे वह पहाड़ से फिशल गयी हो. मैंने भी उनकी बात काटते हुए कहा-लिस्ट सौंप दी तो कौन-सा बड़ा तीर मार लिया। लिस्ट को उसने बाथरूम पेपर के रूप में इस्तेमाल करफेेंक दिया. सभी जानते हैं कि आप 60 वर्षों से आतंकवाद-आतंकवाद चिल्ला रहे हैं, पर हो क्‌या रहा है-यह पूरा देश नंगी आंखों से देख रहा है. आतंकवादी हमें घर में घुस कर मार रहे हैं और आप अफजल व कसाब जैसों को जेल में पाल -पोस कर बड़ा कर रहे हैं. जहां तक महंगाई दर की बात है तो महंगाई दर तो गिर रही है, पर दाम जस-के-तस हैं. ऐसे में दर कैसे गिर रही है, इसकी तो सीबीआइ जांच करायी जानी चाहिए. मनमोहन सिंह ने छूटते ही कहा-देखो भाई युद्ध-वुद्ध से कुŸछ हासिल नहीं होगा. तुम जिस भाजपा की बोली बोल कर मेरे कानों में शीशा घोल रहे हो, उसी भाजपा से क्‌यों नहीं पूछते हो कि जब संसद पर हमले हुए तो उसने पाकिस्तान से भीड़ कर हिसाब बराबर क्‌यों नहीं कर लिया था. मैंने कहा-किसने क्‌या किया. इससे मुझे मतलैब नहीं है. आप अभी कुर्सी पर हैं, सो आप बतायें कि आप पाकिस्तान का क्‌या करनेवाले हैं. मनमोहन सिंह ने सफाई देनी शुरू कि मैंने गृहमंत्री को बदल दिया क्‌योंकि वे ज्‌यादा कपड़े बदला करते थे. पाकिस्तान को आतंकवादियों की सूची सौंप उसकी हमने पावती रसीद ली है ताकि बाद में हमें कोई यह न कहे कि हमने सूची सौंपी ही नहीं है. इसके अलावा हम पूरे विश्व को बता रहे हैं कि पाकिस्तान गंदा बच्चा है. बताइये यह कम है क्‌या. मनमोहन bole जा रहे थे, पर मुझे लगा कि भाई साहब सब बात करेंगे पर मुद्दे पर नहीं आयेंगे. उनसे विदा लेकर अपने प्रश्न पर सोचता आगे निकल गया।
(यह मेरी अप्रकाशित रचना है जो कुछ कारणों से अखबार या किसी पत्रिका में प्रकाशित नहीं हो सकी).....रोहित