बुधवार, 28 अप्रैल 2010

आदिवासी क्यों बन रहे हैं माओवादी

अब तक चली विकास नीति से उपेक्षित कुछ आदिवासी बंदूकें उठा रहे हैंप्रशांत भूषन ।

संसद में नक्सल ‘संकट’ के, जैसा कि गृह मंत्री ने इसे परिभाषित किया है, समाधान पर अपने वक्तव्य का समापन करते हुए पी। चिदंबरम ने कहा कि हमारी नीति ‘विकास’ और ‘सुरक्षा’ के दोहरे स्तंभों पर आधारित होनी चाहिए। ‘विकास’ का स्तंभ दरअसल इस बात की स्वीकारोक्ति थी कि खुद शासन के भीतर असहमति के स्वर बढ़ रहे हैं, जो यह कह रहे हैं कि नक्सल समस्या का हल सिर्फ बड़ी सैन्य कार्रवाइयों की बदौलत संभव नहीं है। लेकिन तब चिदंबरम यह कहते हैं कि नक्सली अपने नियंत्रण वाले इलाकों में सरकार को विकास का कोई काम करने ही नहीं देते। इसलिए जब तक हम नक्सलियों के नियंत्रण से आदिवासी इलाके खाली नहीं करा लेते, तब तक हम उन इलाकों के आदिवासियों तक विकास के लाभ नहीं पहुंचा सकते। और यही कारण है कि उन्होंने कहा कि ‘हमें उस रास्ते पर बने रहना चाहिए, जिसे नक्सलियों से निपटने के लिए काफी सावधानीपूर्वक तैयार किया गया है।’ जाहिर है, वह रास्ता है ऑपरेशन ग्रीनहंट का या नक्सलियों के दमन के लिए बड़े पैमाने पर सशस्त्र बलों के इस्तेमाल का। इस तर्क में दो बुनियादी समस्याएं निहित हैं। पहली, भारी संख्या में सशस्त्र बलों के इस्तेमाल से कथित ‘लाल गलियारे’ में रहने वाले आदिवासियों को रिहाइश के साथ-साथ अन्य कई तरह का नुकसान उठाना पड़ रहा है। वास्तव में, ऑपरेशन ग्रीनहंट के कारण विपत्ति में पड़े आदिवासियों में से ही अनेक लोग बंदूकें उठा रहे हैं और माओवादियों की टीम में शामिल हो रहे हैं। पिछले करीब छह महीनों में ही छत्तीसगढ़ के जिन इलाकों में ऑपरेशन ग्रीनहंट और सलवा जुड़ूम की मुहिम चल रही है, वहां सशस्त्र माओवादियों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है। दूसरी समस्या यह है कि आदिवासियों के विकास की जो परिकल्पना सरकार कर रही है, वह मुख्यतः खनन, स्टील, एल्युमिनियम और लौह उद्योगों के रूप में आकार लेती है। और इनके लिए उसे भूमि एवं उन जंगलों की दरकार होगी, जिन पर आदिवासियों का पूरा अस्तित्व निर्भर है। सरकारों ने इन उद्योगों के लिए निजी कंपनियों को लाखों एकड़ जमीन देने के सैकड़ों सहमति पत्र पर दस्तख्त किए हैं। इस कृत्य के पीछे तर्क यह दिया जाता है कि ये उद्योग विकास दर को तो गति देंगे ही, आदिवासियों को नौकरियां भी मिलेंगी। सचाई यह है कि अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाली इन कंपनियों की नौकरियां इनमें काम करने वालों की सेहत के लिए बेहद घातक हैं। फिर जितनी संख्या में ये आदिवासियों को नौकरियां देती हैं, वह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विस्थापित होने वालों का बेहद मामूली प्रतिशत है। ये कंपनियां जितना विशाल भूभाग सीधे-सीधे अधिगृहीत करती हैं, उससे कई गुना अधिक धरती इनके प्रदूषण के कारण बंजर हो रही है। इनके आस-पास के जिन जल स्रोतों का इस्तेमाल आदिवासी करते हैं, वे इतने प्रदूषित हो चुके हैं, उनका जल पीने योग्य नहीं है। इस कारण स्थानीय आदिवासियों में स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं पैदा हो रही हैं। वायु प्रदूषण का आलम यह है कि स्पंज आयरन प्लांट के इर्द-गिर्द के पेड़ों की पत्तियां आपको विषैली कालिख से लदी दिख जाएंगी। यानी जिस तरह के विकास की बात सरकार कर रही है, वह वास्तव में वही है, जिसने आदिवासियों को जीवन के हाशिये पर धकेल दिया है। यह विध्वंसकारी विकास और ऑपरेशन ग्रीनहंट आदिवासियों के लिए क्या कर रहा है, इसकी गाथा हाल ही में छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल से आए अनेक आदिवासियों ने छह नामचीन शख्सियतों की एक जूरी को सुनाया। इस निर्णायक समिति में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी।बी। सावंत, मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच. सुरेश, शिक्षाशास्त्री यशपाल, नॉलेज कमिशन के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ.पी.एम. भार्गव, महिला अयोग की पूर्व अध्यक्ष मोहिनी गिरी और पूर्व डीजीपी डॉ.के.एस. सुब्रमण्यन शामिल थे। आदिवासियों के हृदय चीर देने वाले उदाहरणों को सुनकर समिति को यह कहना पड़ा- ‘उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण की नई आर्थिक नीतियों के रूप में विकास के जिस मॉडल को स्वीकार किया गया और तेजी से मूर्त रूप दिया जा रहा है, उसने हाल के वर्षों में जमीन और जंगलों को, जो आदिवासियों की आजीविका और अस्तित्व के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं, बड़े पैमाने पर कॉरपोरेट घरानों को सौंपने के लिए राज्य को प्रेरित किया है, ताकि ये उद्योग खनिज संसाधनों का दोहन कर सकें।...इन उद्योगों के पर्यावरणीय प्रभावों के मूल्यांकन के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई है, उससे पीईएसए ऐक्ट के तहत ग्राम सभा से संपर्क की अपेक्षा महज मजाक बनकर रह गई है। इसका नतीजा यह हुआ है कि आदिवासी कुपोषण और भुखमरी की स्थिति में पहुंचा दिए गए हैं।...अपने जबरन विस्थापन के खिलाफ आदिवासी समुदायों द्वारा शांतिपूर्ण आंदोलन को पुलिस और सुरक्षा बलों की मदद से हिंसक तरीके से कुचला गया है।’ समिति ने यह प्रस्तावित भी किया कि आदिवासियों के इस जातीय संहार को रोकने के लिए सरकार द्वारा तत्काल कुछ कदम उठाए जाने की जरूरत है। सबसे पहले वह ऑपरेशन ग्रीनहंट रोके और स्थानीय लोगों से बातचीत शुरू करे। वह तत्काल सभी तरह के कृषि एवं वन भूमि के अधिग्रहण और आदिवासियों के जबरन विस्थापन पर रोक लगाए। सरकार सभी सहमति पत्रों के विवरणों, वन इलाकों में प्रस्तावित तमाम औद्योगिक व ढांचागत परियोजनाओं को घोषित करे और खेती की जमीन के गैर कृषि उपयोग वाले समस्त सहमति पत्रों और पट्टेदारी को ठंडे बस्ते में डाले। और जिन आदिवासियों को जबरन विस्थापित किया गया है, उनका उनके वन क्षेत्र में पुर्नवास करे। साफ है, जिन इलाकों में माओवादियों का वर्चस्व है, वहां के आदिवासियों के बलात् विस्थापन पर सरकार रोक लगाए। यकीनन उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली जैसी सुविधाएं चाहिए, लेकिन उन्हें इस तरह के उद्योग कतई नहीं चाहिए। यदि वह ऑपरेशन ग्रीनहंट जैसे तरीकों से जंगलों को माओवादी मुक्त करने की कोशिश करती रहेगी, तो वह आदिवासियों को माओवादियों की तरफ जाने को ही बाध्य करेगी। (लेखक सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं) अमर उजाला से साभार

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

आईएसआई ने भी रचा था विवादित ढांचा ढहाने का षडयंत्र

अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाने की साजिश तो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने भी रची थी। कारसेवकों की मौजूदगी में इस कारनामे को अंजाम देकर आईएसआई देश और प्रदेश में अशांति फैलाना चाहती थी। यह खुलासा ढांचा ध्वंस मामले की सीबीआई की नौवीं गवाह तत्कालीन एएसपी फैजाबाद अंजू गुप्ता ने शुक्रवार को रायबरेली न्यायालय में जिरह के दौरान किया। उनके इस बयान से प्रकरण में नया मोड़ आ गया है।
शुक्रवार को शासन बनाम लालकृष्ण आडवाणी आदि के मामले में सीबीआई ने बतौर गवाह तत्कालीन एएसपी व वर्तमान में डायरेक्टर कैबिनेट सचिवालय भारत सरकार अंजू गुप्ता को पेश किया। बचाव पक्ष के अधिवक्ता हरिदत्त शर्मा के प्रश्नों के उत्तर में उन्होंने कहा कि पांच दिसंबर 1992 को छह दिसंबर के प्रस्तावित कारसेवा के मद्देनजर पुलिस अफसरों की समीक्षा बैठक में तत्कालीन आईजी जोन एके सरन ने कहा था कि खुफिया एजेंसियों से जो सूचनाएं मिली हैं, उसमें विवादित ढांचे पर हमले और उसके साथ तोड़फोड़ की आशंका व्यक्त की गई है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और इसके गुर्गो से भी खतरे की आशंका है। वैसे ज्यादा बड़ा खतरा स्थानीय स्तर पर कारसेवकों की ही तरफ से है। अंजू गुप्ता ने बताया कि खुफिया एजेंसियों से यह भी जानकारी दी थी कि शायद आईएसआई के गुर्गे अयोध्या पहुंच गये हैं और स्थानीय लोगों से मिल कर अथवा अन्य तरीके से वे विवादित ढांचे को क्षति पहुंचा सकते हैं, ताकि कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़े।
बयान में सुधार 'थे' की जगह 'थी'
साथ ही 26 मार्च को दिये बयान पर पूछे गये प्रश्न में सुधार करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने पेज नंबर सात पर जो बयान दिया था उसमें 'थे' की जगह 'थी' कहा था। पिछली गवाही के दौरान दिये बयान में श्रीमती गुप्ता ने कहा था कि जब गुंबद गिर रहे थे, ढांचा टूट रहा था। उस समय मंच पर जो नेता बैठे थे, वह बहुत खुश लग रहे थे। वे एक दूसरे से गले मिल रहे थे। मिठाइयां बंट रही थीं, एक जश्न का माहौल था और कारसेवकों को प्रेरित किया जा रहा था। सुश्री उमा भारती व ऋतंभरा बहुत प्रसन्न थीं और वहां मौजूद आडवाणी समेत सभी नेताओं से गले मिल रहीं थीं। दोनों मंच से लगातार ढांचा गिराने के लिए प्रेरित कर रहे थे।
बचाव पक्ष को राहत न देते हुए अंजू गुप्ता ने कहा कि उन्होंने जो बयान मुख्य परीक्षण में दिये हैं, वही उन्होंने सीआईडी व मामले के जांच अधिकारी को भी दिये थे। वे किसी के दबाव में बयान नहीं दे रहीं हैं। बचाव पक्ष ने लगभग तीन घंटे की जिरह के दौरान अंजू से सीबीसीआईडी के सामने दिये गये उनके बयान और अदालत में दर्ज कराये उनके बयानों में अंतर होने के बारे में सवाल करते हुए कुछ खास बिंदुओं का उल्लेख किया और उन पर जिरह की।
बचाव पक्ष के इस सवाल पर कि क्या उन्होंने सीबीसीआईडी को दर्ज कराये अपने बयान में यह जानकारी नहीं दी थी कि गुम्बद पर चढ़े लोगों को गिरकर घायल होने से चिंतित आडवाणी लोगों को उतारने के लिए उनके पास जाना चाहते थे, जैसी कि जानकारी उन्होंने अदालत में दी, इस पर अंजू का कहना था कि उन्होंने सीबीसीआईडी के सामने अपने बयान में हर उस बात का उल्लेख किया है, जो अदालत के सामने दर्ज कराये अपने बयान में कही है। सीबीसीआईडी को धारा 161 के तहत दर्ज कराये अपने बयान में उन्होंने हर बात का उल्लेख किया है। इसी तरह उमा भारती और ऋतंभरा द्वारा छह दिसंबर को दिये गये भड़काऊ भाषणों के बारे में सीबीसीआईडी के दिये बयानों में उल्लेख न होने के बारे में बचाव पक्ष ने अंजू से सवाल किया। उस पर उन्होंने दोहराया कि उन्होंने सीबीसीआईडी को हर बात बतायी थी, जिसे विवेचनाधिकारी ने लिखा भी था और अब वह दर्ज कैसे नहीं है, यह तो जांच अधिकारी बता सकता है।
बचाव पक्ष के इस सवाल पर कि क्या उन्होंने इस अदालत में विचाराधीन मुकदमे 198/92 के बारे में सीबीआई को कोई बयान दिया था, अंजू ने कहा कि उन्होंने विवादित ढांचे के विध्वंस के बारे में सीबीआई को बयान दिया था मगर यह नहीं जानती कि सीबीआई ने उसका उपयोग किस मुकदमे में किया। 12 पेज की जिरह के बाद न्यायालय ने शेष जिरह के लिए 29 अप्रैल की तिथि नियत कर दी है।
रिपोर्ट दैनिक जागरण की खबरों पर

रविवार, 25 अप्रैल 2010

हरिद्वार कुंभ को नोबेल पुरस्कार मिले


उत्तराखंड में सत्ताधारी बीजेपी ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह हरिद्वार महांकुभ को नेबे
ल शांति पुरस्कार दिलाने के लिए जोरदार अभियान चलाए। दूसरी तरफ, कांग्रेस ने इस मांग को बेतुका बताते हुए खारिज कर दिया है। बीजेपी ने कहा, 'यह सिर्फ ऐतिहासिक नहीं है। इस मायने में अनूठा भी है कि दुनिया के कोने-कोने से लोग इस साल हरिद्वार पहुंचे। इसलिए हम महसूस करते हैं कि राष्ट्रीय त्योहार महाकुंभ को इस साल नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाना चाहिए। इससे पहले राज्य के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने भी कहा था कि महाकुंभ को नोबेल मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह दुनया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जिसमें 140 देशों से करीब 5 करोड़ लोग पहुंचे।

रविवार, 18 अप्रैल 2010

नरेन्द्र मोदी और तोगड़िया देश के कौन

आप बताये की नरेन्द्र मोदी और प्रवीन तोगड़िया देश के कौन है और हिन्दुओ की बात कहने पर उन्हें प्रतारित करना क्या इस देश के लिए शर्मनाक नहीं है ।

भारत क्यों न बने हिन्दू देश


भारत इस्लामी आतंकबाद की फास में पूरी तरह जकड चुका है । भारत की ८० परसेंट जनसँख्या हिन्दू है । भारत विश्व का पहला और अंतिम नमूना है , जहा की बहुसंख्यक जनता को अपने अधिकारों के लिए भीख मांगनी पड़ती है । एसे में भारत को हिन्दू देश क्यों नहीं बनाया जाया चाहिये । सवाल आपके सामने है , जवाब भी आप लोग दे ।

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

गुजरात दंगे मामले में मास्टर स्ट्रोक

गुजरात सरकार ने शुक्रवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट को गोधरा कांड के बाद राज्य में हुए दंगों से जुड़े मुकदमों की सुनवाई पर रोक लगाने का कोई अधिकार नहीं है। राज्य सरकार ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल [एसआईटी] को भी पूर्व कांग्रेसी सांसद एहसान जाफरी की हत्या के मामले में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य अभियुक्तों को समन भेजने का अधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को दाखिल अपने ताजा हलफनामे में राज्य सरकार ने एनजीओ कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और अन्य लोगों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज करने की भी मांग की। राज्य सरकार ने कहा कि अपने राजनीतिक मकसद साधने के लिए ये लोग गवाहों को बरगला रहे हैं और एसआईटी पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। राज्य सरकार का यह हलफनामा सुप्रीम कोर्ट द्वारा 6 अप्रैल को सीतलवाड़ व अन्य की याचिका स्वीकार करते हुए उसे जारी किए गए नोटिस पर आया है। इस याचिका में सीतलवाड़ व अन्य ने राज्य में हो रही दंगा मामलों की सुनवाई पर रोक लगाने और सभी मामले जांच के लिए सीबीआई को सौंपने की मांग की गई थी। उन्होंने एसआईटी पर भी पक्षपातपूर्ण तरीके से काम करने का आरोप लगाया था।

सोमवार, 12 अप्रैल 2010

मन्नू जी भारत आपका है, ओबामा का नहीं

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी से कहा है कि पाकिस्तान मुंबई हमलों के जिम्मेदार लोगों को कानून के घेरे में लाए। बराक ओबामा ने गिलानी से कहा कि इससे क्षेत्र में स्थितियों में सुधार आएगा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ ओबामा की मुलाकात के बाद ओबामा ने गिलानी से मुलाकात की।
मन्नू जी भारत आपका है, ओबामा का नहीं ; यह बात आपको बताने की जरुरत नहीं है । मुंबई पर हमला भारत ने झेला है । तो फिर अमेरिका कौन होता है हमारी पैरवी करनेवाला । मनमोहन जी हमारी सलाह है की पाकिस्तान का जो भी करना है , खुद करे । नहीं तो यही होते -होते पूरा भारत अमेरिकी फैसलों का गुलाम होता जायेगा । एक बात और आप अपने विदेश मंत्री को नगर निगम टाइप का मंत्रालय दे दे ।

रविवार, 11 अप्रैल 2010

मोदी लाओ, भाजपा बचाओ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने संकेत दिया है कि आगामी आम चुनाव में मोदी भाजपा की ओर से शीर्ष कार्यकारी पद के उम्मीदवार बनाए जा सकते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा नरेंद्र मोदी को चक्रव्यूह में फंसाने की बरसों की नाकाम कोशिशों के बाद स्वयं उसमें बुरी तरह फंस गई हैं। अब उन्हें यह डर सताने लगा है कि अगले लोकसभा चुनाव में मोदी कहीं प्रधानमंत्री पद के लिए 'उनके वंश के प्रतिस्पर्धी' बन कर सामने न आ जाएं।
संघ ने कहा है कि मोदी को देश के भावी प्रधानमंत्री के सशक्त उम्मीदवार के रूप में उभरता देख 'सोनिया मंडली' भयाक्रांत है। संघ के मुखपत्र 'पांचजन्य' में आरोप लगाया गया है कि सोनिया मंडली की मदद से राजनीति के इस चक्रव्यूह में मोदी को फंसाने में उनके 'सात महारथी' पिछले सात साल से जुटे हुए हैं। लेकिन इन महारथियों को असफलता के सिवा कुछ हासिल नहीं हुआ।
सात महारथी
तीस्ता सीतलवाड़, शबनम हाशमी, अहमद पटेल, फादर सड्रिक प्रकाश सामिल है , जिनका जन्म ही मोदी विरोध और कांग्रेस की तैल मालिश के लिए हुआ है ।
बिग हिन्दू की ओर से श्रीमान मोदी को इसके लिए सुभकामनाये

रिपोर्ट मीडिया की खबरों पर

गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

उमा-बीजेपी मिलन हिंदुत्व के लिए अच्छा


उमा भारती की अब बीजेपी में वापसी तय हो गई है। जानकारी के अनुसार उमा भारती को जल्दी ही यूपी बीजेपी की बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। वैसे पार्टी भी यूपी के लिए किसी तेज तर्रार चेहरे की तलाश में है, लेकिन फिलहाल प्रदेश का कोई भी नेता इस कसौटी पर खरा नहीं उतर रहा है। उमा भारती ऐसी नेता जो राजनीती कम हिंदुत्व ज्यादा जानती है । एक समय था जब उत्तर प्रदेश भाजपा की पहचान हुआ करता था । आज बीजेपी वहा दोयम दर्जे की पार्टी बन चुकी है । अगर उमा को मुक्त कमान दी गई तो हिन्दुओ का सदीओ पुराना सपना पूरा होता सकता है । उमा अगर वरुण को प्रोमोट करे तो बीजेपी एक बार फिर ८० में ६२ हो सकती है। भाजपा की यह पहल १० साल की सबसे अच्छी पहल कही जा सकती है ।

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

अडवाणी जी अब राम को माफ़ कर दे

यह पोस्ट अशोक सिंघल की बात पर लिखा गया है । पाठक इसका निर्णय स्वयं करे की अडवाणी ने क्या किया ।
मंदिर आंदोलन को नुकसान पंहुचाया आडवानी ने
भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी पर राम मंदिर आंदोलन को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाते हुए विश्व हिंदू परिषद ने आज कहा कि यदि उन्होंने 1989 में रथयात्रा नहीं निकाली होती तो अब तक अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो चुका होता। विहिप प्रमुख अशोक सिंघल ने यहां संवाददाताओं से कहा कि आडवाणी ने उस समय रथयात्रा निकाल कर एक गलत कदम उठाया था। यह रथयात्रा उन्होंने वोट बैंक की खातिर निकाली थी।
उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ने केंद्र की तत्कालीन विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार से समर्थन वापस लेने का रास्ता तैयार करने के मकसद से रथयात्रा निकाली थी। सिंघल ने कहा कि आडवाणी यदि उस समय रथयात्रा नहीं निकालते तो सभी राजनीतिक दलों को बातचीत के जरिए इस मुद्दे पर मनाया जा सकता था। ऐसी स्थिति में अभी तक राम मंदिर का निर्माण हो गया होता।
भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी द्वारा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए मुस्लिमों से सहयोग लेने के सुझाव के बारे में उन्होंने कहा कि गडकरी या भाजपा का इस मुद्दे से कोई लेना-देना नहीं है। भाजपा राम मंदिर के मुद्दे पर अपनी राजनीति नहीं करे। राम मंदिर आंदोलन साधु-संतों ने चलाया है और वही इस मामले में फैसला करेंगे।

दैनिक जागरण की रिपोर्ट पर आधारित

शर्म, शर्म और शर्म

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में नक्सलियों के भीषण हमले में 73 जवानों के मारे जाने की खबर है। जवान सीआरपीएफ कैंपों में राशन पहुंचाने जा रहे थे। नक्सलियों ने छह अलग-अलग जगहों पर घात लगाकर हमला किया। इस हमले के ठीक एक दिन पहले गृहमंत्री ने नक्सलियों को पहला शत्रु करार दिया था।
यह खबर बताती है की अब हमारे सेकुलर नेताओ के प्यारे पाकिस्तान और चीन को हमारे यहाँ केवल हथियार भेजने की जरुरत रह गई है, बाकी काम वो यही के गद्दारों से करवा रहे है । तारीफ है की मानवाधिकार वादी इस मुद्दे { ७२ जवानो की हत्या } पर कुछ बोलने के बजाय अपनी माँ की गोद में जाकर छिप गए है ।
बिग हिन्दू इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा करता है और यह मांग करता है की नक्सल वाद के खिलाफ निर्णायक युद्ध जल्द शुरू किया जाये ।