बुधवार, 30 मार्च 2011

पाकिस्तान...एक गलती और

क्‌या आपने देखा है अथवा सुना है कि बराक हुसैन ओबामा ने ओसामा बिन लादेन के साथ बैठ कर डिनर किया है, या उन्हें आमंत्रित कर मैच दिखाया गया है. इस प्रश्न के जवाब में सामान्य-सा उत्तर मिलेगा : नहीं यार. यह मजाक है क्‌या. (जवाब देनेवालो में वामपंथियों को शामिल नहीं किया गया है क्‌योंकि उनके चरित्र की तरह उत्तर भी त्रिअर्थी था), पर मित्रों आम आदमी की रहनुमाई का दावा करनेवाली सरकार ने इससे बड़ा कारनामा कर दिखाया है. हमारे हुक्‌मरानों ने न सिर्फ विश्व के खतरनाक आतंकवादियों के साथ बैठ कर खाना खाया बल्कि छह घंटे से ज्‌यादा समय तक मैच भी देखा. इस पूरे तिकड़म; जिसे क्रिकेट डिप्‌लोमेसी का नाम दिया गया, उसमें न सिर्फ संसद हमले के शहीदों का मजाक उड़ा, बल्कि 9/11 में मारे गये लोगों के परिवारों को बेइ‚जत किया गया. सामान्य-सा सूत्र दिया जाता है कि खेल को खेल भावना से देखा या जाना जाना चाहिए. लेकिन हाइ वोल्‌टेज मैच में सरकार ने क्‌या किया इस पर गौर फरमाएं. पाकिस्तान के पीएम को बुलाने के बारे में कहा गया कि इससे दोनों देशों के बीच संबंध सुधार की पहल होगी. विश्व समुदाय के सामने मैसेज देने की कोशिश की गयी कि भारत बड़ा उदार है, हालाकि इस प्रकार के मैसेज देनेवाले भूल गये कि एक जनाब भरी बुढ़ारी में बस लेकर मित्रता करने चले गये थे लेकिन बदले में देश को कारगिल जैसा युद्ध झेलना पड़ा, जिसमें बेमतलब में मारे जवानों ने अपने ही देश में लड़ाई लड़ी व शहीद हुए. बस इतना भर ही नहीं हुआ. देशवासियों को इस थोपे गये युद्ध का खर्च कुछ वर्षों तक कर (टैक्‌स) के रूप में भुगतना पड़ा. देश आज तक इस बात को नहीं समझ पा रहा है कि गलतियां पर गलतियां हो रही है और कोई कुछ सीखने को तैयार क्‌यों नहीं है. अखबार के पन्ने गवाह हैं कि जब-जब इस देश में आतंकी घटनाएं हुई हैं हमारे हुक्‌मरानों ने 11-11 गज की घोषणाएं की हैं कि पाकिस्तान के साथ तब तक संबंध नहीं, जब तक वह आतंक की राह नहीं छोड़ देता. पर आज तक हुआ क्‌या है, सबको पता है. हम बात करते हैं आतंकवाद से पीड़ित होने की, इससे लड़ने की लेकिन कर क्‌या रहे हैं. दरअसल हम अपने दुश्मन स्वयं बन गये हैं तभी हमारी यह गत बनी है. आतंक से लड़ने का अमेरिकी मॉडल भले ही कई मौकों पर मानवता के विरुद्ध दिखता है लेकिन यह बात उतनी ही सत्य है कि हमारी नीति को विश्व के 196 देशों में शायद ही कोई जानना/सुनना पसंद करता है. पहले पाकिस्तान के साथ हमारा विवाद केवल कश्मीर को लेकर था, पर आज कश्मीर के साथ वाली फेहरिश्त लबी हो चुकी है. इसमें आतंकवाद, जाली मुद्रा, घुसपैठ, जेहाद आदि-आदि कई शाखाएं जुड़ चुकी हैं. ऐसे में सवाल तो मौजूं ही है कि आखिरकार आम नागरिकों की कीमत पर पाकिस्तान के साथ प्रयोग कब तक होता रहेगा. माना कि हमारे यहां अतिथियों को भगवान कह उनका स्वागत करने की परिपाटी है, लेकिन हमारा मेहमान कौन हो, यह तो तय करने का अधिकार हमें उसी परिपाटी ने दिया है. इस तेज भागती दुनिया में भारत में एक्‌सपेरिमेंट करने का समय दशकों पहले बीत चुका है, यह बात हमारे नीति नियंताओं को समझने होगी. हमारे पास अब भी समय है कि हम आतंकवाद विरोधी अमेरिकी मॉडल को भारतीय रूप में अपना ले अन्यथा यह जो पाकिस्तान नाम का कबीला है, वह हमारे लिए भस्मासुर बन जायेगा। अंत में भारत को पाकिस्तान को हरा कर फाइनल में पहुंचने के लिए सवा अरब बधाईयां.

जीत के लिए सुभकामनाए दे

मित्रो टीम इंडिया संकट में है । आप खुल कर उसका समर्थन करे ताकि वह इतिहास बना सके ।

मंगलवार, 29 मार्च 2011

...दे घुमा के, भारत को शुभकामनाएं


सबसे पहले भारतीय जीत को जीत के लिए शुभकामनाएं. दरअसल , आज विश्वकप के सेमीफाइनल का वह मैच है, जिसका विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्‌या इंतजार कर रही है. यों तो खेल , केवल खेल होना चाहिए पर भारत-पाकिस्तान के मैच में यह धारणा टूट जाती है. सुनने में आ रहा है कि पाकिस्तान के हुक्‌मरान भी मैच देखने आ रहे हैं. खैर आ रहे हैं तो भारतीय संस्कृति के हिसाब से उनका स्वागत है, लेकिन वे किस मुंह से आ रहे हैं , यह जांच का विषय है। लोगो को पाकिस्तान का ९-११ का तोहफा अब तक याद है । भारतीय टीम से यही आशा है कि वे बिन बुलाये (नियमत:) मेहमानों को जबरदस्त हार का तोहफा दे कर विदा करें. आशा है धोनी एंड कंपनी इसकी तैयारी कर चुकी है. एक बात और छूट रही है. सचिन शतकों का शतक पाकिस्तान के खिलाफ बना दें तो यह इतिहास में महाभारत के किसी अध्याय की तरह दर्ज हो जायेगा.

बुधवार, 23 मार्च 2011

सच से डरे हुए शासक


विकिलीक्स के खुलासे पर प्रधानमंत्री के बयान को देश को गुमराह करने वाला बता रहे हैं तरुण विजय (लेखक राज्यसभा के सदस्य हैं)

विकिलीक्स ने एक बार फिर भारत के भ्रष्ट और झूठे नेताओं के चेहरे बेनकाब कर दिए हैं और सत्ता पक्ष के पास अपनी निर्लज्जता छिपाने के लिए लोकोक्ति के अनुसार सूखे पत्ते तक का सहारा नहीं बचा है। विकिलीक्स के केबल भले ही दुनिया में गलत आचरण करने वाले शासकों के महलों में खलबली मचा रहे हों, लेकिन आज तक किसी ने भी उनकी सत्यता या प्रमाणिकता पर संदेह नहीं किया। केवल भारत के प्रधानमंत्री डॉ। मनमोहन सिंह ने एक हास्यास्पद बयान दिया, जिसमें न केवल उन्होंने विकिलीक्स पर संदेह किया, बल्कि यह तक कह दिया कि सांसदों को रिश्वत देने के मामले की जांच के लिए गठित समिति ने यह निष्कर्ष निकाला था कि सांसदों को रिश्वत देने का कोई प्रमाण नहीं मिला है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि यह मामला 14वीं लोकसभा से जुड़ा था। उसके बाद इसी मुद्दे को लेकर जो दल चुनाव में उतरे वे जनादेश प्राप्त नहीं कर सके और कांग्रेस को उनसे ज्यादा सीटें मिलीं। यह एक हारे हुए तथा हताश प्रधानमंत्री का ही बयान हो सकता है क्योंकि यह तर्क कौन स्वीकार करेगा कि यदि कोई अपराधी चुनाव में जीत जाए तो उसकी जीत उसके अपराधों को खत्म कर देती है। प्रधानमंत्री ने सांसदों को रिश्वत देने के मामले की जांच के लिए बिठाई समिति की रपट का निष्कर्ष भी गलत उद्धृत किया। हालांकि इस समिति के चार सदस्य वे थे जिन्होंने सदन में विश्वास मत पर सरकार का समर्थन किया था। इसके बावजूद इस सात सदस्यीय जांच समिति के तीन सदस्यों ने स्पष्ट रूप से कहा था कि कुछ सांसदों को रिश्वत दिए जाने का स्पष्ट मामला सिद्ध होता है। जबकि शेष चार सदस्यों के बहुमत के कारण समिति की रपट में माना गया था कि संजीव सक्सेना चाहे-अनचाहे रिश्वत देने वाले थे इसलिए वह संविधान के अनुच्छेद 105 (2) के अंतर्गत संरक्षण पाने के पात्र नहीं हैं। इसके अलावा रेवती रमन सिंह के व्यवहार पर भी समिति ने संदेह व्यक्त करने वाली स्पष्ट टीका की थी। संसदीय जांच समिति ने कहीं भी यह नहीं कहा कि सांसदों को रिश्वत देने का मामला प्रमाणित नहीं होता है। इसके विरुद्ध उसके निष्कर्ष में लिखा गया कि रिश्वत देने वाले सक्सेना का बयान असंतोषजनक और सत्य से परे है। यानी समिति ने यह स्पष्ट रूप से माना था कि सक्सेना चाहे-अनचाहे रिश्वत देने वाले तो थे ही और इस संदर्भ में पूरी छानबीन की आवश्यकता है। मनमोहन सिंह ने इन तमाम तथ्यों की अनदेखी की। उस देश का क्या होगा जहां का प्रधानमंत्री सांसदों को रिश्वत देकर अपनी सत्ता और सरकार बचाने की कोशिश करे! क्या ऐसा देश अपनी सीमाओं की सुरक्षा कर सकता है? क्या ऐसे देश के परमाणु संयंत्र सुरक्षित रह सकते हैं? क्या ऐसे देश के छात्र और युवा बलिदान देने के लिए तत्पर सैनिक या जनता के हित की रक्षा के लिए सब कुछ दांव पर लगा देने वाले अफसर बनने की प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं? पूर्व संचार मंत्री ए। राजा के विरुद्ध कार्रवाई के लिए समूचे विपक्ष और मीडिया को एकजुट लड़ना पड़ा। ए. राजा के सहयोगी सादिक बाशा की रहस्यमय मृत्यु हो गई, जबकि वह सीबीआई के सामने पेश होने की तैयारी में था। बाशा का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर ने इस्तीफा दे दिया। हर दिन एक नए घोटाले का खुलासा हो रहा है। ऐसी स्थिति में भारत के परमाणु संयंत्र और यूरेनियम भंडार माओवादी या तालिबानी आतंकवादियों के हाथों में नहीं जा सकते क्या इसकी कोई गारंटी ले सकता है? विकिलीक्स के सर्जक और संचालक जूलियन असांजे ने एक भारतीय चैनल को इंटरव्यू देते हुए कहा कि भारत के प्रधानमंत्री विकिलीक्स के मामले में जनता को गुमराह कर रहे हैं। विकिलीक्स ने जो केबल भारत के संदर्भ में उद्घााटित किए वे अमेरिकी राजनयिकों द्वारा वाशिंगटन में अपने विदेश विभाग को भेजे गए थे। असंाजे का कहना है कि भारत में अमेरिकी राजदूत या अन्य राजनयिकों को अपने ही विदेश मंत्रालय से झूठ बोलने की क्या जरूरत हो सकती है? अगर ऐसा होता है तो यह अमेरिका में बहुत बड़ा अपराध है। अभी कुछ समय पहले तक भारत सूचना-प्रौद्योगिकी के कीर्तिमान, भारतीय डॉक्टरों, इंजीनियरों तथा विश्वव्यापी औद्योगिक बहुराष्ट्रीय कंपनियों के गौरवशाली उद्योगपतियों के कारण पूरी दुनिया में प्रतिष्ठा और ख्याति अर्जित कर रहा था, वह आज जिंदा भ्रष्ट देश के नाते जाना जा रहा है। दुनिया के हर कोने में भारत के नेताओं के शर्मनाक भ्रष्टाचार, संसद में इन मुद्दों को लेकर चल रहे लगातार गतिरोध तथा सत्ता पक्ष द्वारा विपक्ष को इस प्रकार के विषय उठाए जाने की अनुमति न देने के समाचार उन सभी करोड़ों भारतीयों का सिर शर्म से झुका रहे हैं जो कल तक गौरवशाली भारतीय के नाते रह रहे थे। वे जानते हैं भारत भ्रष्ट देश नहीं है। न ही भारत कायर और ठगों का देश है। सिर्फ कुछ नेता भारत की राजनीति और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उनकी आंखों में भारत है ही नहीं। सत्ता में बैठे लोग एक विदेशी मूल की उस महिला के हाथों में भारत की तकदीर दे बैठे हैं जिनका भारत के चित्त, मर्म और आत्मा के साथ कोई संबंध ही नहीं रहा। इसीलिए क्वात्रोची के खाते खुलवाए, सीबीआई को कांग्रेस की घरेलू शैतानी मशीनरी का पुर्जा बना दिया गया, हिंदुओं को आतंकवाद से जोड़कर पूरे देश की हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता को लांछित करने का प्रयास किया गया और अब मध्य प्रदेश से एक ही किस्म और एक ही आस्था से जुड़े मामले एनआइए को सौंपकर मुस्लिम वोट बैंक को रिझाने का प्रयास किया गया है। मानो इस देश के मुसलमान हिंदुओं पर आघात से खुश होकर कांग्रेस को वोट दे देंगे। यह गलत धारणा है। मुस्लिम समाज जिसे भी वोट देता है अपनी बुद्धि से सोच कर देता है, यह बिहार और गुजरात के मुसलमानों ने सिद्ध किया है। लेकिन समाज को जाति और मजहब के आधार पर बांटकर अंग्रेजों को भी लज्जित करने वाले भ्रष्टाचारी यदि सत्ता का संरक्षण पाने लगें तो फिर संसद की लड़ाई सड़क तक ले जाने के सिवाय और कोई विकल्प बचता नहीं।

यह लेख दैनिक जागरण के २३ मार्च के अंक से साभार लिया गया है ।

मंगलवार, 22 मार्च 2011

अब तो नरेन्द्र मोदी को पहचानो

अंग्रेजी दैनिक ' द हिंदू' की ओर से किए गए विकीलीक्‍स के ताजा खुलासे के मुताबिक 16 नवंबर 2006 को मोदी की मुंबई स्थित अमेरिकी कौंसुल जनरल माइकल एस. ओवन से मुलाकात हुई थी। खुलासे पर प्रतिक्रिया देते हुए मोदी ने मंगलवार को कहा कि अब अमेरिका भी जानता है कि मोदी बिकाऊ नहीं हैं। विकीलीक्‍स ने दो चेहरे दिखाए हैं- एक तो भारत सरकार का और दूसरा, प्रगतिशील गुजरात का। मोदी ने यह भी कहा कि उन्‍हें खुशी है कि अमेरिकी अधिकारियों ने केबल में बातों को तोड़-मरोड़ कर नहीं रखा था। विकीलीक्‍स के खुलासे के मुताबिक अमेरिका की नजर में मोदी की सार्वजनिक और निजी जिंदगी में फर्क है। ओवन ने कहा है कि सार्वजनिक तौर पर मोदी की छवि एक लुभावने और पसंदीदा नेता की है लेकिन निजी जीवन में वह एकाकी और किसी पर भरोसा नहीं करने वाले इंसान हैं। वह एक छोटी-सी सलाहकार मंडली की मदद से राजकाज चलाते हैं। यह मंडली सीएम और उनके कैबिनेट व पार्टी के बीच पुल का काम करती है।
ओवन ने भाजपा और आरएसएस के कई नेताओं से बातचीत के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि मोदी आज नहीं तो कल देश की केंद्रीय राजनीति में आएंगे ही, इसलिए अमेरिका को अभी से उनसे अच्छे रिश्ते बनाना शुरू कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमेरिका को मोदी से बातचीत करनी चाहिए और हम इस दौरान उनसे मानवाधिकार हनन और 2002 के दंगों के मुद्दों पर भी अपनी बात रख पाएंगे।ओवन ने 2 नवंबर 2006 की तारीख में लिखे इस गोपनीय संदेश में कहा है, 'हालांकि अमेरिका ने गुजरात दंगों में मोदी की सक्रिय भूमिका के कारण 2005 में उनको वीजा देने से इनकार कर दिया था लेकिन मोदी की लगातार उपेक्षा करना अमेरिकी हितों के खिलाफ होगा क्योंकि अगर आनेवाले सालों में मोदी को देश की राष्ट्रीय राजनीति में प्रमुख भूमिका मिली तो अमेरिका को उनकी जरूरत पड़ेगी। इसलिए बाद में भाजपा के सामने झेंपने से अच्छा है कि हम अभी से नरेंद्र मोदी से अच्छे रिश्ते बनाना शुरू कर दें।'
सोचो , समझो और भाजपा को वोट करो ।

गुरुवार, 17 मार्च 2011

...मन्नू जी अब माफ करिए

विकीलीक्‌स के खुलासे के बाद अब कहने-सुनने को कुछ भी शेष नहीं रह गया है. सोनिया एंड कंपनी का खेल देश-दुनिया के सामने आ चुका है. सत्ता के लिए महारानी से लेकर युवराज तक निलर्जता के साथ भिड़े हुए हैं. हाला कि लोक तंत्र व आम जनता पर लेख लिखने के लिए इन बंधुओं को कहा जाये तो वे किताबों की एक सीरीज तक लिख सकते हैं. देर से ही सही लोग यह भी जान चुके हैं कि हाथ का साथ उन्हें कितना महंगा पड़ा है. सुप्रीम कोर्ट की फटकार, घोटाले -दर-घोटाले , महंगाई, भ्रटा चार आदि के बाद भी यूपीए-2 शान से राज कर रहा है. इसमें आश्चर्य की बात यह है कि देश की बुद्धिजीवी कौम सुसुप्त -सी दिख रही है. रही-सही कसर भाजपा के नेतृत्ववाले लिजलिजे विपक्ष ने पूरी कर दी है. हालाकि आम जनता में छटपटाहट है इस जंजाल से निकल ने की. अब समय आ गया कि आरएसएस अपने चूके हुए योद्धाओं को वापस लेकर मोरचे पर नयी फौज लगाये, नहीं तो धमाकों व खुलासों के बीच यूपीए देश को बरबाद कर देगा. वैसे तो यह होनेवाला नहीं है लेकिन प्रधानमंत्री को तनिक भी शर्म है तो उन्हें न सिर्फ इस्तीफा दे देना चाहिए व राजनीति से संन्यास भी ले लेना चाहिए.