शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

आखिरकार युवराज ने मुंह खोला

रोहित कुमार सिंह

राहुल ने संसद में मुंह खोला तो कांग्रेस की आधिकारिक टिप्पणी देश को मिल गयी. जिस लच्छेदार तरीके सेराहुल ने लोकपाल के मुददे को किनारा करने की कोशिश की, उससे साफ है कि कल प्रधानमंत्री ने देश की संसद में झूठा बयान देकर देश को गुमराह किया था. राहुल का यह कहना कि लोकपाल से भी भ्रष्टाचार नहीं रूकेगा, यह स्पष्ट करता है कि कांग्रेस की समय लेकर बडे से बडे मुददे को रसातल में डालने की नीति खत्म नहीं होनेवाली है.

राहुल का पूरा बयान देखें
लोकपाल बिल के मुद्दे पर कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने शुक्रवार को पहली बार अपनी राय सार्वजनिक तौर पर जाहिर की। लोकसभा में शून्‍य काल में इस मुद्दे पर बोलते हुए राहुल ने अन्‍ना के आंदोलन पर निशाना साधा। राहुल ने कहा, भ्रष्टाचार से लड़ना आसान नहीं है। प्रभावी लोकपाल भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सिर्फ एक हथियार भर है। सिर्फ इसी कानून से भ्रष्टाचार नहीं मिटेगा। मैं चाहता हूं कि चुनाव आयोग की तरह लोकपाल को संवैधानिक संस्था बनाया जाए। मेरे खयाल से लोकपाल भी भ्रष्ट हो सकता है।मैं चाहता हूं कि भ्रष्टाचार पर बहस का स्तर और ऊपर उठा दिया जाए।'

अन्ना के आंदोलन परकहा कि इस तरह के विरोध प्रदर्शन से खतरनाक परंपरा की शुरुआत होगी जो हमारी संसदीय प्रणाली को कमजोर करेगा। भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए नियम कानून जरूरी हैं। लोकसभा से निकलने के बाद संसद परिसर में जब राहुल गांधी से पूछा गया कि आप इतने दिन इस मुद्दे पर क्यों चुप थे? तो उन्होंने जवाब दिया कि मैं सोच समझकर बोलता हूं।

अगर यह राहुल की सोच -समझ कर कही गयी बात है तो यह अंदाजा लगाने लायक है कि राहुल की सोच का स्तर क्या है. राहुल को यह मानना होगा कि कम से कम कांग्रेस या स्वयं उनका जो स्टैंड है उससे भ्रष्टाचार का बाल भी बांका नहीं होगा.

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

एक र्इमानदार पीएम को यह करना चाहिए

रोहित कुमार सिंह

आज, गुरूवार को मैं प्रधानमंत्री को सुन रहा था. वे लोकपाल बनाम जनलोकपाल बिल पर अपना वक्तव्य दे रहे थे. पीएम मनमोहन सिंह शुरू हुए -मैं र्इमानदार हूं. मेरी संपतित की जांच करा ली जाये. मुझे मुरली मनोहर जोशी के भ्रष्टाचार की गंगोत्री बतायेजाने के आरोप से दुख हुआ है. मैंने देश को 20 वर्षों के राजनीतिक जीवन मेंजो भी हुआ , बेहतरी के साथ सेवा की. कुल मिला कर उन्होंने अपनी मजबूरी गिनायी, बेचारगी जतायी. माननीय प्रधानमंत्री जी ने सबकुछ बताया पर यह बताने से परहेज किया कि घोटाले दर घोटाले होते रहे, इस दौरान उनकी क्या भूमिका रही.

क्या पीएम साहब को इस बात से इनकार है कि ए राजा के खिलाफ सरकार तभी कार्रवार्इ के लिए आगे बढी, जब मामला कोर्ट-कचहरी में पहुंच गया. जबकि राजा के खिलाफ आवेदन सबूत के साथ दोवर्षों सेउनके पीएमओमें लावारिस पडा था.

इसमें कोर्इ दो राय नहीं है कि वे र्इमानदार हैंपर एक बात यह भी है कि उन्होंने राजधर्म का पालन नहीं किया. जिस देश में 300 करोड में बननेवाला स्टेडियम 3000 करोड बना, कौडियों के भाव टू जी स्पेक्ट्रम के लाइसेंस बांट कर ए राजा ने करोडों बनाये ,अरबों का आदर्श सोसाइटी घोटाला हुआ, उस देश के प्रधानमंत्री इस्तीफा देकर संसद से बाहर क्यों नहीं है, यह सबसे बडे आश्चर्य की बात है. प्रधानमंत्री ने अपनी सब बातें बतायीं पर प्रधानमंत्री बने रहने की मजबूरी नहीं बतायी. मैं क्या पूरा भारत उसे नंबर वन र्इमानदार मानता है पर ऐसी र्इमानदारी किस काम की, जो देश के लिए किसी काम की नहीं हो. यह एक दिन की बात नहीं है. यूपीए 1 की सरकार में वोट फार नोट कांड हुआ, र्इमानदारी का तकाजा तो यही बनता था कि पीएम मामला आते ही इस्तीफा देकर किनारे हो जाते. क्या प्रधानमंत्री ऐसा करेंगे, अगर पीएम ऐसा करते हैं तो जिस उच्च लोकतांत्रिक की बात हमारे देश में होती है अथवा कांग्रेसी करते हैं वह एक बार फिर स्थापित होगी.

वंदे मातरम, भारत माता की जय

सोमवार, 22 अगस्त 2011

सही में राहुल गांधी कहां हैं

रोहित कुमार सिंह

अन्ना के आंदोलन का आज छठा दिन है. तिहाड जेल से लेकर रामलीला मैदान तक देशभकित नारों की धूम इन दिनों देखने को मिली. इन्हीं नारों में एक सवाल पूछा जा रहा है कि देश का युवा यहां है, राहुल गांधी कहां है. 70 साल के अन्ना हजारे के एक आहवान पर देश का युवा वर्ग सडकों पर है, ऐसे में यह सवाल तो जायज ही है कि स्वयं को युवाओं का कर्णधार बतानेवाले राहुल गांधी कहां हैं. शनिवार को इस युवा राहुल गांधी से प्रेस ने पूछने यह पूछने की कोशिश की कि अन्ना के आंदोलन के बारे में आपकी क्या राय है. इस पर इस कथित युवा तुर्क ने अपने होंठ सिल लिये. ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी संकट के पहले मौके पर चुप रहे हैं. इससे पहले भी कर्इ मौके पर वे अपनी चुप्पी दिखा चुके हैं. चाहे कालाधन का मुददा हो या फिर भ्रष्टाचार से निबटने का मामला या फिर लोकतांत्रिक आंदोलन को दबाये जाने का मामला. राहुल ने अपनी चुप्पी से दिखा दिया कि देश की जनता की समस्याओंसे उन्हें कोर्इ मतलब नहीं है.

दरअसल राहुल की राजनीति की इंटर्नशिप चल रही है. वे कभी से राजनेता नहीं हैं. उन्हें गरीबों के घर नाइट हाल्ट करने व उनके नंगे -भूखे बच्चों के साथ फोटो खिांचाने में ही बहादुरी दिखती है. क्या राहुल ने कांग्रेस से पूछने की कोशिश की है कि 60 साल के आजाद भारत में उसने कैसे शासन किया कि देश की यह हालत हो गयी. किसानों की बात करनेवाले राहुल उनके मुददों के साथ मेडिकल इंटर्न स्टूडेंट की तरह ही बिहेव कर रहे हैं. अन्ना का आंदोलन राहुल गांधी के लिए यह मौका है कि वह अंगरेजों की नाजायज औलाद कांग्रेस से पिंड छुडा कर या कहें तो अपना मोह त्याग कर देश की आवाज के कार्यकर्ता बनें व युवाओं के इस आंदोलन से जुडें अगर वे ऐसा करते हैं तो देश की जनता उन्हें माफ कर देगी . क्या राहुल ऐसा कर सकते हैं़?????

रविवार, 21 अगस्त 2011

लोकतंत्र की दुश्मन है कांग्रेस

रोहित कुमार सिंह

सरकार कह रही है कि 30 अगस्त तक लोकपाल बिल पास कराना संभव नहीं है, वहीं टीम अन्ना कह रही है कि अगर सरकार इच्छाशकित दिखाये तो यह संभव है. प्रधानमंत्री भी दुहार्इदे रहे हैं कि लोकतांत्रिक मूल्यों पर आंच नहीं आनी चाहिए. संसदीय मर्यादा का उल्लंधन नहीं होना चाहिए. मेरा सवाल कांग्रेस एंड कंपनी से है कि आपलोग लोकतंत्र के कब से पैरोकार हो गये. ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है. बात तब की है जब सोनिया गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाना था. उन दिनों कांग्रेस गाढेसमय में थी. बेचारे कर्मठता से कांग्रेसी पार्टी को ढो रहे थे. बेआबरू कर उन्हें अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. बेचारे इसी शोक में दुनिया से चले गये. 2003 में सत्ता में आने के बाद के कांग्रेस के लोकतांत्रिक चरित्र को देखें. पार्टी में वैसे नेताआों को तरजीह दी गयी जो चुनाव हारने के लिए जाने जाते रहे थे. मनमोहन सिंह का पीएम बनना इसी की एक कडी थी. मंत्रिमंडल में बेजान व बेगैरत लोगों को जगह दी गयी, जो सुप्रीमो की एक आवाज पर कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे. पता नहींकांग्रेसी किस मुंह से लोकतांत्रिक मूल्यों की बात करते हैं. लोगों को याद होगा , जब सरकार के जमूरे ने पोर्ट ब्लेयर में सिथत एक स्मारक से वीर सावरकर की पटिटका तक नुचवा दी. किताब बदलो अभियान में देशभक्तों को आतंकवादी तक करार दिया गया. आम आदमी की बात करनेवाली इस पार्टी ने आतंकवाद को धार्मिक आधार पर बैलेंस करने की भी कोशिश की. देश में पहली बार तिरंगा फहराने पर गिरफतारी हुर्इ. याद करें तिरंगा यात्रा. अपने स्वार्थ में इस पार्टी ने बिहार को डेढ दशक तक ऐसे व्यकित के हवाले कर दिया जिसकी डिक्शनरी में विकास व विधि-व्यवस्था नाम की कोर्इ चीज नहीं थी.

कांग्रेस के पास इसका क्या जवाब है

बाबा रामदेव के अनशन स्थल पर ऐसी क्या आफत आ पडी कि दो बजे रात में आंसू गैस के गोलों के बीच लोगों को मारपीट कर खदेड दिया गया.

आतंकवादियों पर अरबों रूपये खर्च कर उन्हें सुरक्षित रखनेवाली केंद सरकार अचानक बाबा रामदेव व उनके सहयोगी पर सत्तू -पानी बांध कर पड गयी.

ए राजा का क्यों बचाव किया गया व प्रधानमंत्री ने उन्हें क्यों क्लीन चिट दी.

कामनवेल्थ घोटाला व व आदर्श सोसाइटी घोटालो में प्रधानमंत्री की हैसियत से उन्होंने क्या कार्रवार्इ की.

अन्ना को अनशन से पहले ही क्यों गिरफतार किया गया.

गुरुवार, 18 अगस्त 2011

वंदे मातरम


रोहित कुमार सिंह
आप वंदे मातरम नारे को जानते हैं. इसी नारे को गा-गाकर देश के दीवानों ने हमें आजादी दिलायी थी. हालांकि आजादी के बाद सांप्रदायिक रंग देकर इसे उपेक्षित कर दिया गया, पर देश पर जैसे ही दूसरे आपातकाल के बादल मंडराने लगे, यह अचूक औजार बन कर सामने आया. पूरा देश वंदे मातरम के नारे व तिरंगे से शकित अर्जित कर रहा है और कांग्रेस की कब्र खोद रहा है. इसके बारे में एक जानकारी यह भी है. सही ही कहा गया है-सच कभी टोकरी के नीचे छिपाया नहीं जा सकता है. सत्य की सदा जीत होती हैऔर जिसका जो हक होता है वह उसे समय आने पर खुद ही मिल जाता है. वंदे मातरम के साथ आज की पीढी सही न्याय कर रही है. देश के तथाकथित बुद्धिजीवियोंको यह मान लेना चाहिए कि वंदे मातरम ही देश की आवाज है, क्रांति की सू़त्रधार है. एक बात यह भी है कि कांग्रेस ने ही उसका उसका हक अपने फायदे के लिए नहीं लेने दिया. उसी कांग्रेस की बात हो रही है जिसके व्याभिचार से त्रस्त होकर देश आज अन्ना हजारे के साथ उसके विरोध में खडा है.

२००३ में बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा आयोजित एक अन्तरराष्ट्रीय सर्वेक्षण , जिसमें अब तक के दस सबसे मशहूर गीतों का चयन करने के लिये दुनिया भर से लगभग ७,००० गीतों को चुना गया था, और बी०बी०सी० के अनुसार, १५५ देशों/द्वीप के लोगों ने इसमें मतदान किया था, वन्दे मातरम् शीर्ष के १० गीतों में दूसरे स्थान पर था।
इस गीत की मूल रचना निम्नलिखित है.

(संस्कृत मूल गीत)

वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलां मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।१।।

शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदां वरदां मातरम् । वन्दे मातरम् ।।२।।

कोटि-कोटि (सप्तकोटि) कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि (द्विसप्तकोटि) भुजैर्धृत खरकरवाले,
अबला केनो माँ एतो बॉले (के बॉले माँ तुमि अबले),
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।३।।

तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वं हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम् ।।४।।

त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।५।।

श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्,
धरणीं भरणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।६।।>

यह भी जानें.

स्वाधीनता संग्राम में निर्णायक भागीदारी के बावजूद जब राष्ट्र-गान के चयन की बात आयी तो

वंदे मातरम

के स्थान पर सन् १९११ में इंग्लैण्ड से भारत आये जार्ज पंचम् की प्रशस्ति में रवीन्द्र नाथ ठाकुर द्वारा लिखे व गाये गये गीत जण-गण-मण अधिनायक जय हे को वरीयता दी गयी। इसकी वजह यही थी कि कुछ मुसलमानों को ‘वन्दे मातरम्’ गाने पर आपत्ति थी, क्योंकि इस गाने में देवी दुर्गा को राष्ट्र के रूप में देखा गया है। इसके अलावा उनका यह भी मानना था कि यह गीत जिस ‘आनन्द मठ’ उपन्यास से लिया गया है वह मुसलमानों के खिलाफ लिखा गया है। इन आपत्तियों के मद्देनजर सन् १९३७ में कांग्रेस ने इस विवाद पर गहरा चिन्तन किया। जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में गठित समिति जिसमें मौलाना अब्दुल कलाम आजाद भी शामिल थे, ने पाया कि इस गीत के शुरूआती दो पद तो मातृभूमि की प्रशंसा में कहे गए हैं, लेकिन बाद के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का जिक्र होने लगता है; इसलिये यह निर्णय लिया गया कि इस गीत के शुरुआती दो पदों को ही राष्ट्र-गीत के रूप में प्रयुक्त किया जायेगा। इस तरह गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर के जन-गण-मन अधिनायक जय हे को यथावत राष्ट्रगान ही रहने दिया गया और मोहम्मद अल्लामा इकबाल के कौमी तराने सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा के साथ बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा रचित प्रारम्भिक दो पदों का गीत वन्दे मातरम् राष्ट्रगीत स्वीकृत हुआ।


भारत माता की जय. वंदे मातरम

बुधवार, 17 अगस्त 2011

यह सरकार और तीन साल नहीं...


नीरेंद्र नागर
आज सुबह वही हुआ जिसका कल से अंदेशा था। सरकार ने अन्ना हजारे को जेपी पार्क में अनशन करने की इजाज़त नहीं दी। आज जेपी यानी जयप्रकाश नारायण ज़िंदा होते तो व्यथित होकर यही कहते – कांग्रेस पार्टी 36 साल में भी नहीं बदली।

तब इंदिरा गांधी सत्ता में थीं, आज सोनिया गांधी हैं। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और सोनिया गांधी प्रधानमंत्री की बॉस हैं यानी सुपर प्रधानमंत्री। आप और हम पीएम का मतलब प्राइम मिनिस्टर समझते हैं। लेकिन सोनिया गांधी के लिए पीएम का मतलब है पर्सनल मैनेजर। पुराने ज़माने में होता था कि जब तक बाबा बड़ा न हो जाए तब तक राजपाट की हिफाज़त एक वफादार नौकर करता था। अब भी कोशिश यही है कि बाबा राहुल गांधी के बाल थोड़े पक जाएं और वह वोटरों के सामने अगले प्रधानमंत्री के तौर पर पेश किए जाने लायक हो जाएं, तब तक मनमोहन सिंह पीएम पद पर बने रहें।

आज अन्ना हज़ारे के अनशन के दिन मैं यह मनमोहन पुराण लेकर क्यों बैठा हूं? इसलिए कि मन में बहुत गुस्सा है। पहले भी कई दफे इस तरह गुस्सा आया था। 1975 में जब इमर्जेंसी लगाकर सारे देश को बंदी बना दिया गया था, 1984 में जब आंध्र प्रदेश में एन. टी. रामाराव की बहुमत वाली सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था, फिर उसी साल जब इंदिरा गांधी के हत्या के बाद सिखों को चुन-चुनकर मारा गया था, 1992 में जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी, 2002 में जब गुजरात के गोधरा स्टेशन में ट्रेन जलाई गई और उसके बाद राज्य सरकार की देखरेख में हज़ारों लोग दंगों में मारे गए थे।

आज फिर गुस्सा आ रहा है। गुस्सा मनमोहन सिंह पर नहीं है। (कठपुतली पर गुस्सा करके क्या कर लोगे!) गुस्सा मुझे पूरी कांग्रेस पार्टी पर आ रहा है जिसने तय कर रखा है कि वह करप्ट लोगों को फटाफट सज़ा दिलवानेवाला लोकपाल बिल कभी नहीं लाएगी। उसकी पूरी कोशिश है कि एक ढीलाढाला-सा बिल आ जाए जिसमें न प्रधानमंत्री फंसें न सांसद और न ही निचले स्तर के सरकारी कर्मचारी। इस पिलपिले बिल को लाने से उसकी मंशा साफ हो जाती है और आज अन्ना हजारे को अनशन से पहले गिरफ्तार करने से भी स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेसियों की वफादारी किसके साथ है – भ्रष्टाचारियों के साथ।

कांग्रेस भ्रष्टाचारियों के साथ और जनता अन्ना हज़ारे के साथ। सबको नज़र आ रहा है लेकिन कांग्रेस को नहीं दिख रहा है। उसके नेता चिदंबरम, कपिल सिब्बल और अंबिका सोनी ने आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस सारे मामले को ऐसा रूप देने की कोशिश की कि यह बस एक आदमी की ज़िद है जो कह रहा है कि मेरा वाला बिल पास करो वरना मैं अनशन करता हूं। मेरी समझ में यह मामले को उलझाने की बहुत बड़ी चाल है। आखिर अन्ना किसी बात की जिद कर रहे हैं? क्या वह जिस बिल की मांग कर रहे हैं, उससे उनको कोई राजगद्दी मिल जाएगी? अगर अन्ना के बिल में कोई कमी है तो आज तक सरकार के किसी भी मंत्री ने क्यों नहीं कहा कि इस बिल में यह कमी है। और जब कमी नहीं है तो उसको पास करने में क्या दिक्कत है?

ऐसा नहीं कि सरकार और कांग्रेस पार्टी को आज करप्शन के खिलाफ उमड़ा जनाक्रोश नहीं दिख रहा। उन्हें सब दिख रहा है लेकिन उनको यह भी पता है कि चुनाव अभी तीन साल दूर हैं। लेकिन जैसा कि लोहिया ने कहा था – ज़िंदा कौमें पांच साल तक इंतज़ार नहीं करतीं।

आज के दिन मेरे मन में यही विचार आ रहा है – यह सरकार और तीन साल नहीं चलनी चाहिए। यह दादागीरी और तीन साल नहीं चलनी चाहिए। यह तानाशाही और नहीं चलनी चाहिए.

नहीं बदल सकता है कांग्रेस का चरित्र

रोहित कुमार सिंह

अन्ना हजारे को अनशन करने से पहले गिरफतार कर कांग्रेस ने दिखा दिया है कि लोकतंत्र उसके लिए पैर की चप्पल से ज्यादा कुछ भी नहीं है. जिस तरह का बरताव उनके 100 प्रतिशत शुद्ध लोकतांत्रिक आंदोलन के साथ हुआ वह यह बताने के लिए काफी है कि कांग्रेस का चाल,चरित्र व चिंतन कभी नहीं बदल सकता है. इसका इमरजेंसीवाला चेहरा कभी नहीं बदल सकता है. इसके चरित्र की तुलना किसी बदनाम गली की वेश्या से की जा सकती है. हद तो यह है कि बेशर्मी से लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री कानून की दुहार्इ दे रहे है. जनाब कह रहे हैं कि कुछ भी पूर्वाग्रह से नहीं हो रहा है, कानून अपना काम कर रहा है लेकिन देखने की बात यह है कि कानून कैसा काम कर रहा है. ए राजा, कामनवेल्थ घोटाला , शीला दीक्षित प्रकरण में देखा जा चुका है कि मनमोहन का कानून कैसा काम करता है. कांग्रेस क्या है, इसकी एक और नजीर देखें, भटठा पसरौल में धारा 144 का उल्लंघन करनेवाले किसानों पर जब पुलिस ने लाठीचार्ज किया तो राहुल गांधी ने स्वयं को भारतीय कहे जाने पर शर्म आने की बात कही थी, वहीं आज दिल्ली में जब अन्ना हजारे की गिरफतारी होती है , जहां संयोग से धारा 144 का उल्लंघन भी नहीं होता है तो राहुल गांधी शर्म में डूब कर मरने के बजाय मौन धारण कर महान बनने की कोशिश करने लगते हैं. अगर कांग्रेस सोचती है कि वह फिर से देश में इमरजेंसी लागू कर देगी तो वह भ्रम में है.