रोहित कुमार सिंह
सरकार कह रही है कि 30 अगस्त तक लोकपाल बिल पास कराना संभव नहीं है, वहीं टीम अन्ना कह रही है कि अगर सरकार इच्छाशकित दिखाये तो यह संभव है. प्रधानमंत्री भी दुहार्इदे रहे हैं कि लोकतांत्रिक मूल्यों पर आंच नहीं आनी चाहिए. संसदीय मर्यादा का उल्लंधन नहीं होना चाहिए. मेरा सवाल कांग्रेस एंड कंपनी से है कि आपलोग लोकतंत्र के कब से पैरोकार हो गये. ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है. बात तब की है जब सोनिया गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाना था. उन दिनों कांग्रेस गाढेसमय में थी. बेचारे कर्मठता से कांग्रेसी पार्टी को ढो रहे थे. बेआबरू कर उन्हें अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. बेचारे इसी शोक में दुनिया से चले गये. 2003 में सत्ता में आने के बाद के कांग्रेस के लोकतांत्रिक चरित्र को देखें. पार्टी में वैसे नेताआों को तरजीह दी गयी जो चुनाव हारने के लिए जाने जाते रहे थे. मनमोहन सिंह का पीएम बनना इसी की एक कडी थी. मंत्रिमंडल में बेजान व बेगैरत लोगों को जगह दी गयी, जो सुप्रीमो की एक आवाज पर कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे. पता नहींकांग्रेसी किस मुंह से लोकतांत्रिक मूल्यों की बात करते हैं. लोगों को याद होगा , जब सरकार के जमूरे ने पोर्ट ब्लेयर में सिथत एक स्मारक से वीर सावरकर की पटिटका तक नुचवा दी. किताब बदलो अभियान में देशभक्तों को आतंकवादी तक करार दिया गया. आम आदमी की बात करनेवाली इस पार्टी ने आतंकवाद को धार्मिक आधार पर बैलेंस करने की भी कोशिश की. देश में पहली बार तिरंगा फहराने पर गिरफतारी हुर्इ. याद करें तिरंगा यात्रा. अपने स्वार्थ में इस पार्टी ने बिहार को डेढ दशक तक ऐसे व्यकित के हवाले कर दिया जिसकी डिक्शनरी में विकास व विधि-व्यवस्था नाम की कोर्इ चीज नहीं थी.
कांग्रेस के पास इसका क्या जवाब है
बाबा रामदेव के अनशन स्थल पर ऐसी क्या आफत आ पडी कि दो बजे रात में आंसू गैस के गोलों के बीच लोगों को मारपीट कर खदेड दिया गया.
आतंकवादियों पर अरबों रूपये खर्च कर उन्हें सुरक्षित रखनेवाली केंद सरकार अचानक बाबा रामदेव व उनके सहयोगी पर सत्तू -पानी बांध कर पड गयी.
ए राजा का क्यों बचाव किया गया व प्रधानमंत्री ने उन्हें क्यों क्लीन चिट दी.
कामनवेल्थ घोटाला व व आदर्श सोसाइटी घोटालो में प्रधानमंत्री की हैसियत से उन्होंने क्या कार्रवार्इ की.
अन्ना को अनशन से पहले ही क्यों गिरफतार किया गया.
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