बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

गोधरा....सत्यमेव जयते


कहा जाता है कि सच नंगा व एसिड के समान होता है इसे चाहे लाख परदों में लपेट दो, कुछ समय बाद यह स्वतंत्र रूप से सामने आ जाता है. गोधरा के शहीदों की पुण्यतिथि के कुछ दिन पहले कोर्ट के आये फैसले ने इसकी पुष्टि की है. कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि आग लगी नहीं, लगायी गयी थी और रामसेवकों सहित पूरे ट्रेन को जलाने की साजिश थी. तमाम विविधताओं के बाद भारत की न्याय प्रक्रिया ऐसी है कि तमाम विरोधों के बाद भी सच सूर्य के समान चमकते हुए बाहर आ जाता है. अयोध्या मामले में कोर्ट का फैसला भी इस मत की प्रतिपुष्टि करता है.याद कीजिए 27 फरवरी, 2002 का वह खौफनाक व कायराना दिन, जिस दिन हिजड़ों की नपुंसक फौज ने अपने धर्म के जेहाद के फितूर में निर्दोष कारसेवकों को जला कर मार डाला था. बजाय 59 कारसेवकों के परिवारों के आंसू पोंछने के, बात चल निकली कि आग भाजपावालो ने ही लगवायी है. आग अंदर से लगी थी. यह भाजपा की राजनीति थी. आदि-आदि. मतल ब 59 लोगो की जान की कीमत हमारे देश के चौगले बुद्धिजीवी व हरामी वामपंथी ऐसे लगा रहे थे मानों वे इस देश के मुजरिम हों. (ऐसे ही हरामियों की पैदाइश आजकल कसाब को अपना दामाद बनाने की प्रतियोगिता कर रहे हैं). मतलब साफ था कुछ भी कर के भाजपा व उसके सहयोगियों को बदनाम करो. आजकल हिंदू आतंकवाद का नाम लेकर भी यही खेल खेला जा रहा है. मैं इस 1.10 अरब की आबादीवाले इस देश के लोगों ने जानना चाहता हूं कि इन हरामियों की पैदाइश के लिए कुछ सजा क्‌यों नहीं तय की जा रही है. क्‌या हम सदियों की मुसलिम व ईसाई गुलामी झेलते-झेलते ऐसे हो गये हैं कि जायज चीजों पर भी प्रतिक्रिया न करें. हमें शुरुआत करनी होगी सच को सच व गलत को गलत ठहराने की. इसमें कोई इफ बट की जगह नहीं होनी चाहिए. हां, शुरुआत करने से पहले जयचंदों की औलादों को अपने में चुन कर सामाजिक रूप से बहिष्‌कृत करें. तो बताएं आप कब शुरुआत कर रहे हैं सच को सच कहने की ............ बुरा लगे तो माफ़ करना

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

भाजपा...तूने क्‌या किया

भाई साहब, आडवाणी क्‌या चीज हैं, अब तक मेरी समझ में नहीं आ रही है. बहुत दिन नहीं हुए इस शख्‌स ने कहा था कि मुझे मनमोहन सिंह पर दया आती है. जनाब ने दया करते-करते सोनिया मैडम से माफी भी मांग ली . कहा कि सोनिया बता देतीं कि उनके अथवा उनके पति का स्विस बैंक में एकाउंट नहीं है तो वे ऐसा बयान नहीं देते. आज की तारीख में वह कैसी राजनीति कर रहे हैं, यह लोगो के समझ के परे है. अगर यह उम्र का असर है तो स्वभाविक रूप से मेरी कोई प्रतिक्रिया नहीं है, लेकिन यह अगर राजनीति है तो आडवाणी को पुन: पाकिस्तान जाकर किसी चूल्‌लू भर पानी वाले गड्ढे में डूब मरना चाहिए. आज की तारीख में आडवाणी एंड कंपनी ने भाजपा की जो हालत कर दी है, वह उसके इतिहास में कभी नहीं थी. सामने पाने को विशाल साम्राज्‌य है लेकिन भाजपा की पूरी टीम आपस में लड़ने व सत्ता की चाश्नी चाटने में लगी हुई है. देश में महंगाई बेकाबू है, जनता भ्रष्‌टाचार से त्राहि-त्राहि कर रही है लेकिन वह कान में तेल डाल कर सो रही है. मुझे तो लगता है कि कांग्रेस को कोसते-कोसते वह कांग्रेस की फोटोकॉपी बन गयी है. 1996-2000 के बीच भाजपा की तीन सरकारें महज प्‌याज व टमाटर की कीमतें बढ़ने के कारण चली गयी थीं, लेकिन आज वही भाजपा उससे लाख गुना रद्दी स्थिति होने के बावजूद कुछ नहीं कर पा रही है। यह उसका लिजलिजापन ही दरसाता है।हाल में जम्मू-कश्मीर के लाल चौक पर वह झंडा फहराने का अभियान लेकर निकली थी, लेकिन राजनीति की अवैध संतान (उमर अबदुलला ) के हाथों पूरी पार्टी हार गयी. झंडा नहीं फहराया जा सका. इसके बाद लोगों को लगा कि पार्टी कुछ करेगी लेकिन इस बार भी वही ठंडी प्रतिक्रिया देखने को मिली . यह हाल रहा तो दो से शुरू हुई पार्टी 182 भाया 144 भाया 116 होते हुए -2 हो जायेगी. आज भाजपा को दलालों व व्‌यापारियों से मुक्त कराना जरूरी हो गया है. इसके लिए आरएसएस को पूरी सक्रियता से आगे आना होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह पार्टी इंटरनेट का एक आंकड़ा बन कर रह जायेगी.