कहा जाता है कि सच नंगा व एसिड के समान होता है इसे चाहे लाख परदों में लपेट दो, कुछ समय बाद यह स्वतंत्र रूप से सामने आ जाता है. गोधरा के शहीदों की पुण्यतिथि के कुछ दिन पहले कोर्ट के आये फैसले ने इसकी पुष्टि की है. कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि आग लगी नहीं, लगायी गयी थी और रामसेवकों सहित पूरे ट्रेन को जलाने की साजिश थी. तमाम विविधताओं के बाद भारत की न्याय प्रक्रिया ऐसी है कि तमाम विरोधों के बाद भी सच सूर्य के समान चमकते हुए बाहर आ जाता है. अयोध्या मामले में कोर्ट का फैसला भी इस मत की प्रतिपुष्टि करता है.याद कीजिए 27 फरवरी, 2002 का वह खौफनाक व कायराना दिन, जिस दिन हिजड़ों की नपुंसक फौज ने अपने धर्म के जेहाद के फितूर में निर्दोष कारसेवकों को जला कर मार डाला था. बजाय 59 कारसेवकों के परिवारों के आंसू पोंछने के, बात चल निकली कि आग भाजपावालो ने ही लगवायी है. आग अंदर से लगी थी. यह भाजपा की राजनीति थी. आदि-आदि. मतल ब 59 लोगो की जान की कीमत हमारे देश के चौगले बुद्धिजीवी व हरामी वामपंथी ऐसे लगा रहे थे मानों वे इस देश के मुजरिम हों. (ऐसे ही हरामियों की पैदाइश आजकल कसाब को अपना दामाद बनाने की प्रतियोगिता कर रहे हैं). मतलब साफ था कुछ भी कर के भाजपा व उसके सहयोगियों को बदनाम करो. आजकल हिंदू आतंकवाद का नाम लेकर भी यही खेल खेला जा रहा है. मैं इस 1.10 अरब की आबादीवाले इस देश के लोगों ने जानना चाहता हूं कि इन हरामियों की पैदाइश के लिए कुछ सजा क्यों नहीं तय की जा रही है. क्या हम सदियों की मुसलिम व ईसाई गुलामी झेलते-झेलते ऐसे हो गये हैं कि जायज चीजों पर भी प्रतिक्रिया न करें. हमें शुरुआत करनी होगी सच को सच व गलत को गलत ठहराने की. इसमें कोई इफ बट की जगह नहीं होनी चाहिए. हां, शुरुआत करने से पहले जयचंदों की औलादों को अपने में चुन कर सामाजिक रूप से बहिष्कृत करें. तो बताएं आप कब शुरुआत कर रहे हैं सच को सच कहने की ............ बुरा लगे तो माफ़ करना
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