बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

...अब ये राबर्ट वाड्रा कौन हैं भाई

अगर सवाल किया जाये कि राबर्ट वाड्रा कौन हैं तो जवाब आयेगा कि बेचारे की पहचान यही है कि वे राजीव-सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गांधी के पति हैं. यही उनकी पहली और आखिरी पहचान हैं. आज (बुधवार) को इस बेचारे महाशय ने फरमाया है कि अगर वे राजनीति में आये तो देश में कहीं से भी चुनाव जीत सकते हैं. उनके इस बयान के बाद यह पूरी तरह से स्पस्ट हो गया है कि देश के लोकतंत्र के प्रति कांग्रेस खानदान का क्‌या विचार है. कांग्रेस को भी स्पस्ट करना चाहिए कि क्‌या यह अली बाग से आये व्‌यक्ति का विचार है, यह फिर कांग्रेस भी यही सोचती है. दरअसल कांग्रेस देश में लोक तंत्र के नाम राजतंत्र चला रही है. यहां कोई युवराज है तो कोई मैडम. हद तो यह है कि देश के सभी रजवाड़ों के प्रतिनिधि कांग्रेस में ही शामिल हैं. ऐसी पार्टी से देश को सावधान रहने की जरूŸरत है. हां, एक बात और मुझे राबर्ट वाड्रा के बारे में उपरोक्त जानकारी ही है. क्‌या आप इनके बारे कुछ और जानते हैं.

शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

बचाओ, बचाओ...बिहार को बचाओ

गुरुवार, सात अक्तूबर, 2010 को मैंने लिखा था-इस नकली गांधी से देश को बचाएं. यारों माफ करना, मैं गलत था. देश बाद में पहले उनसे बिहार को बचाने की जरूरत है. साहबजादे बिहार में चुनाव प्रचार करने आये थे. मुंह उठा कर कह गये-बिहार का भविष्‌य कांग्रेस है, यहां अब तक जात-पांत पर वोट पड़ते रहे हैं. कांग्रेस को वोट दें ताकि बिहार देश के साथ कदम से कदम मिला कर चल सके. महोदय कुछ इस तरह फरमा रहे थे मानो कांग्रेस का अवतार हुआ है और वे उसके दूत बन कर आये हैं हमारा उद्धार करने. अब जरा इस गांधी बाबू की कांग्रेस ने बिहार के साथ कब-कब दुष्‌कर्म किया, इसकी एक झलक देखे ।1। जब तक लालू प्रसाद की सरकार अल्‌पमत में रही, इसी कांग्रेस पार्टी ने उसे आक्‌सीजन (अपने विधायकों का समर्थन) देकर जिंदा रखा। 2. 1990 से 2005 तक अपराधियों व भ्रटाचारियों की तूती रही, उस दरम्यान कांग्रेस ने पूरी तरह न सिर्फ सरकार को संरक्षण दिया बल्कि वह सरकार में भी शामिल रही. 3. इन वर्षों में हुई हत्याओं, दुष्‌कर्म, व्‌यापारियों के पलायन के लिए वह जिम्मेवार है क्‌योंकि पापी से ज्‌यादा पापी को बचानेवाला गुनाहनागर होता है. 4. यूपीए पार्ट 1 वन में कांग्रेस ने लालू की क्‌या भूमिका तय की थी, बताने की जरूरत नहीं है. 5. जंगल राज के प्रमुख नायकों को अपनी पार्टी में शामिल कराया है।अब बताएं, ऐसे उद्धारकों का क्‌या किया जाना चाहिए. एक बार मायावती ने कहा था-तिलक, तराजू .....खींच के मारो जूते चार. ऐसे उद्धारकों के लिए यही करना होगा. तभी बिहार बचेगा और जब बिहार बचेगा, तभी देश बचेगा.

मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

जीत मुबारक हो हिंदू सम्राट

गुजरात. भारतीय राजनीति का थर्मामीटर. आज इस गुजरात से बड़ी खबर आ रही है. भाजपा ने निकाय चुनावों में पुन: बड़ी सफलता नरेंद्र भाई मोदी के नेतृत्व में हासिल की है. इस जीत से यह धारणा पुष्ट हुई है कि सत्य हमेशा जीतता है. मोदी को मौत का सौदागर बतानेवाली सोनिया गांधी को गुजरात की जनता ने करारा जवाब दिया है. गुजरात देश के लिए संदेश है कि सच को सच कहें और बुलंदी के साथ आगे बढ़े. गुजरात इसी फॉमूले पर आगे बढ़ रहा है, हमारे संघ के अन्य राज्‌यों को भी उसका अनुकरण करना चाहिए. एक बात और वामपंथी भाई व सेकुलर बंधुओं का इस जीत के संबंध में अब क्‌या कहना है.

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

इस नकली गांधी से देश को बचाएं

वे युवराज कहे जाते हैं. उनका घूमना खबर है. हद यह है कि उनका कहीं खाना-नहाना भी खबर है. पिछले 10 वर्षों से राजनीति में इंटर्नशिप कर रहे हैं. (आम कार्यकर्ता को 10 दिन का भी समय नहीं मिलता है). कहीं दौरे पर गये और संयोग से वह सीट निकल गयी तो " मैजिक' कहलाता है, किंतु जब उनकी वंशवादी पार्टी हार जाती है तो कहा जाता है पार्टी का संगठन कमजोर रहने की वजह से ऐसा हुआ. उनका अराजकता, जंगल राज आदि को लेकर अलग-अलग मानक रहता है. जब तक वामपंथियों के सहयोग से केद्र में उनकी पार्टी की दुकानदारी चल रही थी, बाबू साहब को सबकुछ हरा-हरा नजर आ रहा था, लेकिन अब उन्हें बंगाल सबसे रद्दी लग रहा है. इनकी एक और आदत है वे राजनीति में बिना सोचे समझे बयान जारी करते हैं. हाल में साहब ने कह दिया, संघ और सिमी एक जैसे हैं. अब ऐसे लोग बयान देंगे तो भांग की बू आनी स्वभाविक है. देश को उनकी इस बात पर उतना ही आश्चर्य है, जितना कि उनका गांधी होना. नकली गांधी नकली बयान ही देंगे. साहबजादे से भारत की चौहद्दी पूछी जायेगी तो मुंह बना कर खड़े हो जायेंगे. इतिहास-भूगोल का पता नहीं, संघ पर डिक्‌टेशन दे रहे हैं. मुझे तो लगता है वे हमारे उदार संविधान द्वारा दिये गये बोलने की स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग कर रहे हैं. मुझे अगर ऐसा दुरुपयोग करने का अवसर मिला तो मैं भी कह सकता हूं कि सिमी और भाई साहब का परिवार एक समान है, जो देश को दिनोंदिन रसातल (ठेठ बिहारी शब्‌दों में तेल हंडा) में ले जा रहा हैं. हलाकि मैं मानसिक दिवालियापन का शिकार नहीं हूं सो मैं अपने अधिकार का दुरुपयोग नहीं करूंगा. एक बात और चुभती है. भाई साहब हमारे देश की मीडिया भी ऐसी है जो घंटी-अगरबत्ती, लड्डू लेकर हर समय उनकी वंदना करती रहती है, जबकि उसे इस नकली गांधी से बचाने के लिए आगे आना चाहिए. (पाठक स्वयं इस नकली गांधी का नाम तय कर ले )

शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

मंदिर की मान्यता की पुष्टि



यह श्री सुभाष कश्यप का आलेख है । जो उन्होंने दैनिक जागरण के लिए लिखा है । यह फैसले पर विशेष प्रकाश डालता है। हम इसे साभार प्रकाशित कर रहे है।


अयोध्या में विवादित ढांचे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिया गया फैसला एक ऐतिहासिक निर्णय है। भारत के इतिहास में पिछले 500-600 साल से यह मसला विवादों में रहा था और करीब 60 वर्ष से यह मामला अदालत में चल रहा था। अदालत द्वारा जो निर्णय दिया गया है वह बहुत लंबा-चौड़ा है, जिसे अच्छी तरह समझने की आवश्यकता है और इस काम में वक्त लगेगा। फिर भी मोटा-मोटा जो निष्कर्ष अभी सामने है वह यही है कि अयोध्या में हिंदुओं के आराध्य रामलला का मंदिर होने का दावा सही है और इस स्थल पर मुसलमानों द्वारा जो दावा किया जा रहा है वह साक्ष्य की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। इस आधार पर अब यह साफ है कि हिंदुओं द्वारा वर्षो से किया जा रहा दावा सही है और यह बात अब न्यायालय में भी साबित हो गई है। यहां एक बात और महत्वपूर्ण है कि जिन आधारों पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपना दावा जताया था उसे न्यायालय ने 2-1 के निर्णय से खारिज कर दिया। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि न्यायालय के सामने सुनवाई के लिए तकरीबन 100 बिंदु विचारार्थ रखे गए थे, जिनमें से तकरीबन 27-28 मुद्दे महत्वपूर्ण थे। न्यायालय ने सभी बिंदुओं की सूक्ष्म विवेचना दिए गए साक्ष्यों और अदालत में रखे गए तर्को के आधार पर की। अदालत में रखे गए प्रमुख बिंदुओं में तीन सवाल अत्यधिक महत्वपूर्ण थे। इनमें पहला सवाल यह था कि क्या भगवान राम का जन्म विवादित ढांचे से संबंधित उसी स्थान पर हुआ था, जिस बारे में हिंदू वर्षो से दावा करते आ रहे हैं? इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण सवाल के उत्तर में तीन जजों वाली पीठ ने एक मत से यह स्वीकार किया कि हां, सही है कि भगवान राम का जन्म उसी स्थान पर हुआ था जिस पर अभी तक हिंदू समाज द्वारा दावा किया जाता रहा है। इसी तरह दूसरा एक और महत्वपूर्ण सवाल यह था कि जिस स्थान पर लगभग पांच सौ साल पहले बाबरी मस्जिद बनाई गई, क्या उससे पहले वहां राम मंदिर बना हुआ था? इस प्रश्न के उत्तर के लिए अदालत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट में दिए गए सबूत और वहां बाबरी मस्जिद से पहले बने हुए मंदिर के ढांचे के हिस्सों को देख-समझकर इस निष्कर्ष पर पहुंची कि वहां सबसे पहले मंदिर बना हुआ था और बाद में मस्जिद के ढांचे का निर्माण किया गया। इस आधार पर अदालत ने राम मंदिर के दावे को सही माना और मस्जिद होने के तर्क को खारिज कर दिया। यह निर्णय सभी जजों ने एक मत से लिया और इस बात पर किसी को मतभेद भी नहीं था। इसी तरह तीसरा सवाल यह था कि जहां बाबरी मस्जिद या मंदिर है, क्या वहां नमाज अथवा पूजा आदि होती आ रही थी? इस बिंदु के उत्तर में भी यही निष्कर्ष निकल कर आया कि वहां नमाज नहीं हो सकती, क्योंकि इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक पूर्व में स्थित किसी ढांचे के खंडहर पर पवित्र मस्जिद का निर्माण ही नहीं किया जा सकता और ऐसे स्थान पर नमाज अदा करना शरीयत के खिलाफ जाता है। इसी आधार पर तीन जजों वाली हाईकोर्ट की पीठ ने विवादित धार्मिक स्थल को तीन हिस्सों में बांटने का निर्णय लिया ताकि भविष्य में हमेशा के लिए इस मामले का समाधान हो जाए। रामजन्मभूमि के तीन हिस्से में एक तिहाई हिस्सा भगवान रामलला जिन्हें स्वयं वादकार बनाया गया था, को दिया गया है और तिहाई हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को देने का निर्णय हुआ और एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को देने की बात कही गई है। निर्णय के तहत परिसर का आंतरिक हिस्सा हिंदुओं को मिलेगा और सीता रसोई तथा राम चबूतरा का हिस्सा निर्मोही अखाड़े को मिलना है तथा शेष हिस्सा मुसलमानों को दिया जाएगा, जिसमें वह मस्जिद बना सकते हैं अथवा नमाज अदा कर सकते हैं। इस फैसले के मुताबिक दोनों पक्षों को तीन महीने का समय दिया गया है ताकि वह अपने-अपने पक्ष को दोबारा अदालत में रख सकें, तब तक इस स्थान पर कोई निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता। कुल मिलाकर आस्था से जुड़े हुए इस सबसे बड़े अदालती निर्णय में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस तरह अंगे्रज भारत को आजाद करते समय इसे भारत और पाकिस्तान नामक दो हिस्सों में बांट गए थे, कुछ वैसा ही इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय रहा। जब सभी साक्ष्य, सबूत और तर्क वहां मंदिर होने के पक्ष में थे तो फिर क्यों परिसर का एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को देने का निर्णय क्यों हुआ? यदि साक्ष्य मस्जिद के पक्ष में होते तो क्या तब भी ऐसा ही निर्णय आता? अब इसी आधार पर दोनों पक्ष एक बार फिर से सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे और दूसरे पक्ष को गलत साबित करने और अपने पक्ष को सही मानने के लिए तर्क पेश करेंगे। इस कार्य में पुन: एक साल, दो साल या फिर कई साल लगेंगे। इस फैसले से जुड़ा हुए एक और मुद्दा यह है कि अब जबकि अदालत का फैसला आ चुका है तो किसी भी तरह का राजनीतिकरण इन मसलों को लेकर नहीं किया जाना चाहिए और अदालत के फैसले का सम्मान सभी को करना चाहिए। इस समय मूल बात यही है कि जो भी पक्ष निर्णय को जिस हद तक स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं उनके आधार पर उन्हें सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए। जो तथाकथित सेकुलर लोग हैं उन्हें इस फैसले का सांप्रदायीकरण करने से बचना चाहिए। यह मामला अब कानून के दायरे में है और इस संदर्भ में अदालत जो भी फैसला करे वह सभी के लिए स्वीकार्य होना चाहिए। उच्च न्यायालय के फैसले के गुण-दोष का निर्धारण सुप्रीम कोर्ट को करना है। (लेखक संविधान मामलों के विशेषज्ञ हैं)

आस्था पर अदालती मुहर


यह श्री रविशंकर प्रसाद का आलेख है । जो उन्होंने दैनिक जागरण के लिए लिखा है । यह फैसले पर विशेष प्रकाश डालता है। हम इसे साभार प्रकाशित कर रहे है।

इससे अधिक बेहतर और कुछ नहीं हो सकता कि अयोध्या में विवादित स्थल को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पीठ ने एक मत से यह विचार व्यक्त किया कि करोड़ों हिंदू जिस स्थान को श्रीराम के जन्मस्थान के रूप में मान्यता देते हैं वह वास्तव में वही स्थान है जहां उनका जन्म हुआ। इतना ही महत्वपूर्ण अदालत का यह फैसला भी है कि जिस ढांचे को बाबरी मस्जिद बताया जा रहा है उसके संदर्भ में यह साबित नहीं होता कि उसका निर्माण बाबर अथवा उसके सेनापति मीर बकी ने कराया था। अयोध्या मामले में उच्च न्यायालय की पीठ के तीनों न्यायाधीशों ने मूल रूप से अलग-अलग फैसला दिया है, लेकिन जिन सवालों पर उन्होंने एक राय से उत्तर दिया है वे कुल मिलाकर यह स्पष्ट करते हैं कि रामजन्मभूमि परिसर ही भगवान श्रीराम का जन्मस्थल है। इस मामले में यह ध्यान रखना जरूरी है कि मुसलमान कभी भी इस तथ्य को विवादित नहीं मानते थे कि अयोध्या में भगवान श्रीराम का जन्म हुआ और न ही उन्हें इस पर आपत्ति रही है कि अयोध्या हिंदुओं के लिए पवित्र स्थल है। उनके लिए विवादित तथ्य यह रहा है कि जिस स्थान को हिंदुओं की ओर से भगवान श्रीराम का जन्मस्थान बताया जा रहा है वहां उनका जन्म नहीं हुआ और वह वास्तव में एक मस्जिद है। इसी बिंदु पर न्यायाधीशों ने एक मत से यह फैसला दिया है। हमने जिस मुख्य बिंदु पर अदालत में बहस की थी वह यह कि हिंदू दर्शन में देव की कल्पना है और वह साक्षात ईश्वर का स्वरूप होता है। ईश्वर ही आदि है, अनंत है। हिंदू समाज वायु और अग्नि की पूजा करता है। जिस प्रकार ये दोनों निराकार हैं उसी प्रकार ईश्वर भी निराकार हैं। आस्था में स्थान का महत्व होता है। गंगा पूरे देश में पूजनीय हैं, लेकिन गंगा का जो महत्व हरिद्वार में है वह अन्य स्थानों पर नहीं हो सकता। हमारा प्रश्न यह है कि हिंदू चिंतन में मंदिर क्यों होता है? मंदिर का अर्थ ईश्वर की उपस्थिति है, ईश्वर की अनुभूति है। मंदिर का अर्थ ईश्वर के आशीर्वाद की आंकाक्षा है। रामजन्म स्थान हिंदुओं के लिए आराध्य स्थल है-इसलिए है, क्योंकि वहां भगवान श्रीराम का जन्म हुआ। यह हमारी मान्यता भी है, श्रद्धा भी है और आस्था भी। यह करोड़ों हिंदुओं का विश्वास है। उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों ने यह पाया है कि हिंदुओं का यह विश्वास पूरी तरह सही है। जिस स्थल के स्वामित्व का फैसला होना है वह वही स्थान है जहां भगवान श्रीराम का जन्म हुआ। इसलिए यह स्थान हिंदुओं के लिए देवतुल्य है, पूजनीय है, पवित्र है। इस संदर्भ में वैसे तीनों न्यायाधीशों की राय एक है, लेकिन जस्टिस एसयू खान ने इसे एकदम स्पष्ट नहीं किया है। न्यायमूर्ति शर्मा ने समूचे विवादित स्थल के मालिक भगवान राम को बताया है। न्यायमूर्ति खान और न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने निर्णय दिया है कि विवादित स्थल को तीन बराबर हिस्सों में बांटकर सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़े और रामलला विराजमान को सौंप दिया जाए। न्यायमूर्ति खान ने भी निर्णय दिया है कि वास्तविक बंटवारे के समय बीच वाले गुंबद के नीचे जिस स्थान पर रामलला का अस्थाई मंदिर बना है वह हिंदुओं को ही दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया जाएगा, जिसमें राम चबूतरा और सीता रसोई शामिल रहेंगे। जहां तक बाबर द्वारा मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाए जाने की बात है तो इसको लेकर तीनों जजों की राय अलग-अलग रही। न्यायमूर्ति अग्रवाल ने विचार व्यक्त किया कि विवादित ढांचे का निर्माण एक गैर-इस्लामी इमारत अर्थात मंदिर के विध्वंस के बाद कराया गया था। इसी प्रकार न्यायमूर्ति शर्मा ने निर्णय दिया कि विवादित ढांचे का निर्माण हिंदू धार्मिक इमारत को ढहाकर कराया गया था। उन्होंने आगे लिखा है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने साबित किया है कि मस्जिद के निर्माण से पहले वहां विशाल हिंदू धार्मिक ढांचा था। दूसरी ओर न्यायमूर्ति खान का विचार है कि मस्जिद बनवाने के लिए किसी मंदिर को नहीं ढहाया गया। उनके अनुसार मस्जिद का निर्माण मंदिर के खंडहर के ऊपर कराया गया था। वह मंदिर बाबरी मस्जिद के निर्माण से काफी पहले खंडहर में तब्दील हो चुका था। अब जब अयोध्या विवाद पर अदालत का फैसला सामने आ गया है तब दूध का दूध और पानी का पानी हो चुका है। उच्च न्यायालय ने राम जन्मभूमि स्थल के पक्ष में अपना फैसला सुनाया है। फिर भी मैं न तो भाजपा नेता के रूप में और न ही वकील के रूप में कुछ कहना चाहूंगा, बल्कि मैं एक भारतीय के रूप में इस फैसले को लेकर यह अपील करना चाहूंगा कि इस फैसले को सही परिप्रेक्ष्य में देखा जाए। विवाद का जो मुख्य बिंदु था कि संबंधित स्थल राम के जन्म का स्थान है या नहीं उस पर अदालत ने अपना अभिमत स्पष्ट रूप से सुना दिया है। इस फैसले को सभी पक्षों को विनम्रता से स्वीकार करना चाहिए। अगर हम ऐसा करने में सफल रहे तो इस देश में एक नई मिसाल कामय कर सकते हैं। वस्तुत: यही वह तरीका है जिससे हम शांति-सद्भाव के एक नए युग का सूत्रपात कर सकते हैं। अयोध्या का मामला समाधान बिंदु के एकदम करीब आ गया है। उच्च न्यायालय के फैसले से असहमत पक्ष अथवा पक्षों के लिए उच्चतम न्यायालय जाने का विकल्प खुला हुआ है, लेकिन समय ने हमें समाधान का जो अवसर उपलब्ध कराया है उसे व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। अब यह हमारे ऊपर है कि हम इस विवाद को और अधिक लंबा खींचकर उसे अन्य जटिलताओं में बांध देना चाहते हैं या समाधान के साथ एकता-भाईचारे का नया आयाम स्थापित करना चाहते हैं? दशकों पुराने विवाद को हमेशा के लिए समाप्त करना अब अधिक मुश्किल नहीं रह गया है, लेकिन यह तभी संभव है जब हम सभी समझदारी का परिचय दें। (लेखक भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं)