गुरुवार, 30 सितंबर 2010

हिन्दुओ का कलंक धुला

विजय मुबारक

सत्यमेव जयते
सत्य सदा जीतता है
जीत के लिए भारतवर्ष को बधाई
जय श्री राम

बुधवार, 29 सितंबर 2010

देश के नाम सन्देश

जय श्री राम , जय श्री राम , जय श्री राम
जब तक आप इस पोस्ट को पढ़ रहे होंगे , देश की अस्मिता से जुड़े एक महत्व पूर्ण मामले में फैसला आ चुका होगा । कहा जा रहा है कि फैसला देश के सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ सकता है , पर जरा सोचे क्या ऐसा होना चाहिये । फैसला कुछ भी आये देश को राम मंदिर के लिए आगे आना चाहिये , ताकि इस विवाद का सदा के लिए अंत होता सके । मंदिर बनाने में जो भी विरोध है वो हमारे देश के कुछ दोगले नेताओ के दिमाग कि उपज है । तारीफ कि बात यह है कि देश के ९९ परसेंट मुसलमान भी येही चाहते है कि वहा मंदिर बना कर मामले का सदा के लिए निबटा दिया जाये । हिन्दुओ को भी चाहिये कि अयौध्या में मंदिर से २ किलोमीटर दूर मुसलमानों के लिए अपने पैसे से मस्जिद बनबा दे । भारत में भले ही तमाम धर्मो के लोग रहते है , पर या तो उनका मूल हिन्दू धर्म है या वे धरामान्त्रित है ।

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

बिहार चुनावों में क्‌या अयोध्या मुद्दा बन जायेगा?


रोहित कुमार सिंह

बिहार में चुनावी बिगुबज चुका है। इसके साथ जदयू, राजद, भाजपा, कांग्रेस व लोजपा स्वयं को चुनावी महासमर में झोंक चुके हं। जाहिर है अब दौर आरोप-प्रत्यारोप का है, जम कर चुनावी तीर च रहे हैं. वैसे मुद्दों की तलाश जारी है, जो हवा का रुख बदल सकें. लिहाजा , हवा में उड़नेवाली हर बात संभावनाएं तलासी जा रही हैं. इस बीच उत्तर प्रदेश से आ रही एक खबर ने बिहार के नेताओं की नींद खराब कर दी है. खबर यह है कि कोर्ट विवादित भूमि के मामले में 28 सितंबर को सुनवाई कर फैसला देगा. सो अब तक नेपथ्य में चल रहा मुस्लिम व हिंदू वोट बैंक का मुद्दा टैक पर बहुत तेजी से बढ़ता दिख रहा है. हलाकि चौकड़ी इस मुद्दों पर मुंह नहीं खोल रही है किंतु अंदरखाने में यह रणनीति जोरों पर बन रही है कि अगर मंदिर के पक्ष में फैसला आया तो क्‌या करना होगा और अगर कोर्ट ने मसजिद के पक्ष में आदेश दिया तो कौन-कौन कदम उठाने होंगे. देखा जाये तो इन नेताओं की चिंता जायज भी है. विवादित भूमि प्रकरण का इतिहास-भूगोल भारत में किसी को बताने की जरूरत नहीं है. 90 के दशक की पूरी राजनीति इसी के इर्द-गिर्द घूमती रही थी. सो यह ऐसा मुद्दा है, जिसे “बकरी के बच्चे की तरह टोकरी के नीचे नहीं छिपाया जा सकता है. इस बात को यहां के राजनेता पूरी तरह समझ रहे हैं. सो अगर अयोध्या यहां मुद्दा बना तो तमाम दल की रणनीति इसकी सूनामी में बह जायेगी, यह बात पक्‌की है. बिहार धार्मिक रूप से ज्‌यादा संवेदनशील नहीं माना रहा है. यहां अब तक मंडल वाद की राजनीति का डंका रहा है. “कमंडल ‘ (मंदिर आन्दोलन ) की आंधी में भी यहां मंडल का किला मजबूत रहा था. लेकिन यह बात भी उतनी ही सत्य है कि अब बिहार की सियासी स्थिति बदल चुकी है. बिहार में भी इन दो दशकों में बांगला देशी घुसपैठ, आतंकवाद, सरकारी तुटी करण आदि मुद्दे बन चुके हैं. 1991 से 2001 के बीच बिहार के 12 जिलो में मुसलमानो की जनसंख्‌या तेजी से बढ़ी है. अररिया, पूर्णिया, बेतिया, सीतामढ़ी, बक्‌सर, नवादा, किशनगंज, कटिहार, शिवहर, पटना, जहानाबाद, जमुई में मुसलिम जनसंख्‌या की वृद्धि दर लगभग 30 प्रतिशत की रही है, जाहिर है वोट बैंक की राजनीति करनेवाले इसकी अनदेखी किसी कीमत पर नहीं कर सकते हैं. इस बदलाव से 243 सदस्यीय विधानसभा की 35-40 सीटें मुसलिम जनसंख्‌या बहुल हो गयीं हैं. सो इस हॉट केक के बीच अयोध्या मसला आयेगा तो राजनीति का ऊंट करवट लेगा ही. इसके साथ राजनीति के पटल पर नरेंद्र मोदी के उदय ने नया समीकरण बना दिया है. विकास के साथ हिंदुत्व का फार्मूला जो अब पूरे देश के युवाओं को आकर्षित कर रहा है. मानें या न मानें मोदी देश के युवाओं के आइकॉन बन कर उभरे हैं. अभी हाल में भाजपा की राजधानी में हुई रैली में उन्हें सुनने के के लिए जो भीड़ जुटी थी, वह बता रही है कि इस बार मंदिर-मसजिद के बयार से बिहार अछूता नहीं रहने जा रहा है. लिहाजा गेम प्लान बदलना राजनीतिक दल की मजबूरी बन सकती है.