मंगलवार, 28 जून 2011

सोनिया गांधी की यात्रा का खर्च 1850 करोड़

इतना खर्चा तो प्रधानमंत्री का भी नहीं है : पिछले तीन साल में सोनिया की सरकारी ऐश का सुबूत, सोनिया गाँधी के उपर सरकार ने पिछले तीन साल में जीतनी रकम उनकी निजी बिदेश यात्राओ पर की है उतना खर्च तो प्रधानमंत्री ने भी नहीं किया है ..एक सुचना के अनुसार पिछले तीन साल में सरकार ने करीब एक हज़ार आठ सौ अस्सी करोड रूपये सोनिया के विदेश दौरे के उपर खर्च किये है ..कैग ने इस पर आपति भी जताई तो दो अधिकारियो का तबादला कर दिया गया ।अब इस पर एक पत्रकार रमेश वर्मा ने सरकार से आर टी आई के तहत निम्न जानकारी मांगी है : सोनिया के उपर पिछले तीन साल में कुल कितने रूपये सरकार ने उनकी विदेश यात्रा के लिए खर्च की है ?क्या ये यात्राये सरकारी थी ?अगर सरकारी थी तो फिर उन यात्राओ से इस देश को क्या फायदा हुआ ?भारत के संबिधान में सोनिया की हैसियत एक सांसद की है तो फिर उनको प्रोटोकॉल में एक राष्ट्रअध्यछ का दर्जा कैसे मिला है ?सोनिया गाँधी आठ बार अपनी बीमार माँ को देखने न्यूयॉर्क के एक अस्पताल में गयी जो की उनकी एक निजी यात्रा थी फिर हर बार हिल्टन होटल में चार महगे सुइट भारतीय दूतावास ने क्यों सरकारी पैसे से बुक करवाए ?इस देश के प्रोटोकॉल के अनुसार सिर्फ प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ही विशेष विमान से अपने लाव लश्कर के साथ विदेश यात्रा कर सकते है तो फिर एक सांसद को विशेष सरकारी विमान लेकर विदेश यात्रा की अनुमति क्यों दी गयी ?सोनिया गाँधी ने पिछले तीन साल में कितनी बार इटली और वेटिकेन की यात्राये की है ?मित्रों कई बार कोशिश करने के बावजूद भी जब सरकार की ओर से कोई जबाब नहीं मिला तो थक हारकर केंद्रीय सुचना आयोग में अपील करनी पड़ी. केन्द्रीय सूचना आयोग प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय के गलत रवैये से हैरान हो गया .और उसने प्रधानमंत्री के उपर बहुत ही सख्त टिप्पडी की केन्द्रीय सूचना आयोग ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी दौरों पर उस पर खर्च हुए पैसे को सार्वजनिक करने को कहा है। सीआईसी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को इसके निर्देश भी दिए हैं। हिसार के एक आरटीआई कार्यकर्ता रमेश वर्मा ने प्रधानमंत्री कार्यालय से सोनिया गांधी के विदेशी दौरों, उन पर खर्च, विदेशी दौरों के मकसद और दौरों से हुए फायदे के बारे में जानकारी मांगी है।26 फरवरी 2010 को प्रधानमंत्री कार्यालय को वर्मा की याचिका मिली, जिसे पीएमओ ने 16 मार्च 2010 को विदेश मंत्रालय को भेज दिया। 26 मार्च 2010 को विदेश मंत्रालय ने याचिका को संसदीय कार्य मंत्रालय के पास भेज दिया। प्रधानमंत्री कार्यालय के इस ढ़ीले रवैए पर नाराजगी जताते हुए मुख्य सूचना आयुक्त सत्येन्द्र मिश्रा ने निर्देश दिया कि भविष्य में याचिका की संबंधित मंत्रालय ही भेजा जाए। वर्मा ने पीएमओ के सीपीआईओ को याचिका दी थी। सीपीआईओ को यह याचिका संबंधित मंत्रालय को भेजनी चाहिए थी।आखिर सोनिया की विदेश यात्राओ में वो कौन सा राज छुपा है जो इस देश के " संत " प्रधानमंत्री इस देश की जनता को बताना नहीं चाहते ? !
यूथ अगेंस्ट कŸरप्‌शन के मेल पर आधारित जानकारी । अपनी टिपण्णी निचे के मेल पर भी भेजे ।
info@youthagainstcorruption.net

सोमवार, 13 जून 2011

इन सवालो के जवाब दें

1. क्‌या कांग्रेस को देश पर राज करने का हक रह गया है
२। आज चुनाव हुए तो कांग्रेस को आप वोट देना चाहेंगे ।३। अगर मनमोहन ईमानदार हैं, सोनिया ईमानदार हैं, राहु ल ईमानदार हैं तो बेईमान कौन है।4। कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के मंत्री एक-एक कर जेल जा रहे हैं। ऐसे में सरकार पर विश्वास करना चाहिए।5. कांग्रेस व भाजपा में भरोसेमंद कौन है।इन सवालो के जवाब देश को चाहिए. क्‌या पाठक इन सवालो का उत्तर देकर देश का मूड बताने की कृपा करेंगे. आपके उत्तर का इंतजार है.

रविवार, 12 जून 2011

बाबा रामदेव मामले में बुद्धिजीवियों से सवाल

रोहित कुमार सिंह
भारत में एक बात है जो सदियों से इसका पीछा नहीं छोड़ रही है। आप निर्जीव पड़े रहें, आपके सामने दुनिया के कुकर्म होते रहें और आप कुछ न करें तो कोई आपसे यह पूछने नहीं आयेगा कि आपने ऐसा क्‌यों किया, लेकिन जैसे ही आप मुख्‌यधारा में आकर समाज के लिए कुछ बेहतर करने की सोचेंगे तो लोग आलोचनाओं की तलवार लेकर पीछे पड़ जायेंगे. यह क्‌यों किया, यह आपको नहीं करना चाहिए था आदि-आदि. हद तो यह है कि इसमें कांग्रेस व इसकी पिछलग्गू पार्टियों के साथ इसके पोसे-पाले पत्रकार तक शामिल हो जाते हैं. ताजा उदाहरण बाबा रामदेव का है. बाबा ने नौवें दिन अपना अनशन तोड़ दिया. उनका अनशन काला धन वापस लेन व भ्रïटाचार के विरोध में था. देश के स्व कथित बुद्धिजीवी संविधान द्वारा दिये गये वाक स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग करते हुए बाबा से पूछ रहे हैं-आप आंदोलन छोड़ कर भागे क्‌यों.-आपने महिलाओं ने कपड़े पहन कर पुलिस से अपनी जान क्‌यों बचायी.-अनशन क्‌यों तोड़ा. ऐसे सवाल करनेवालो से एक सवाल -क्‌या आपको ऐसे सवाल पूछने का नैतिक हक है. बाबा रामदेव तो नौ दिनों तक अनशन पर रहे पर एसी कमरों में बैठ कर पांच टाइम नाश्ता-भोजन करनेवाले अन्न के दुश्मन ऐसे पाखंडी बुद्धिजीवियों ने देश के लिए क्‌या किया है. क्‌या उन्होंने देश के लिए पांच मिनट का भी समय दिया है. खुद पांच मिनट समय नहीं दे सकते और दूसरों से उम्मीद करते हैं कि वह उनकी ज्ञान वासना के लिए शहीद हो जाये. यह कौन-सी बात हुई. वर्तमान में काला धन व भ्रटाचार के मुद्दे पर प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि उनसे कुछ भी नहीं होनेवाला है (संक्षेप में समझें की सोनिया की कांग्रेस कंपनी उन्हें कुछ करने नहीं देगी.) ऐसे में बाबा अगर काला धन व भ्रटाचार के मामले में कोई आंदोलन या विचार देश तक पहुंचाना चाहते हैं तो उनकी प्रशंसा होनी चाहिए या आलोचना. देश में इन दोनों मसलो का हाल पत्रकारिता जगत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर सुरेंद्र किशोर ने प्रभात खबर के 30 मई, 2011 के अंक अपने कॉलम कानोंकान में लिखा है-(आज इस देश मे¨ कितना कड़ा लोकपाल विधेयक बनाने की जरूरत है, यह बात इसी से साबित होती है कि टू जी स्पेक्‌ट­म घोटाले मे¨ ए राजा तभी जेल जा सके, जब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हे¨ ऐसा करने के लिए बाध्य कर दिया. ए राजा के खिलाफ डॉ सुब्रहमण्यम स्वामी का शिकायत पत्र उससे पहले दो साल तक प्रधानम¨त्री सचिवालय मे¨ पड़ा रहा था.)ऐसी सरकार से क्‌या यह उम्मीद की जा सकती है कि वह देश के लिए बेहतर सोचेगी. कांग्रेस में बड़ी-बड़ी चर्चा होती है-इंटर्नशिप कर रहे युवराज सबकुछ ठीक कर देंगे. लोग पूछ रहे हैं-इस संजीदा मामले में वे कहां हैं. कहां है उनका देश के प्रति जज्‌बा. बाबा व अन्ना हजारे के आंदोल नों ने एक बात तो की है-देश जाग गया है और इसका रिजल्‌ट आनेवाले समय में दिखेगा.

गुरुवार, 9 जून 2011

कांग्रेस का असली चेहरा




रामलीला मैदान की कार्रवाई को केंद्र के दमनकारी रवैये की बानगी मान रहे हैं ए. सूर्यप्रकाश



कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार यदि यह सोच रही है कि रामलीला मैदान से बाबा रामदेव और उनके समर्थकों को आधी रात गद्दाफी की शैली में बलपूर्वक बाहर निकाल देने से वह देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता के आंदोलन को कुचल देगी तो यह उसकी भारी भूल है। आपातकाल के दिनों की याद दिलाने वाली केंद्र सरकार की यह कार्रवाई केवल यही प्रदर्शित करती है कि कांग्रेस पार्टी के भीतर कुछ नहीं बदला है। यह अभी भी एक परिवार विशेष के स्वामित्व वाली प्राइवेट कंपनी की तरह चलाई जा रही है, जिसके प्रमोटरों में न केवल फासीवादी प्रवृत्तियां विद्यमान हैं, बल्कि वे भ्रष्टाचार के आरोपों को तनिक भी सहन नहीं कर पाते। राजधानी के रामलीला मैदान में बाबा रामदेव और उनके समर्थकों को बलपूर्वक निकालने के अलावा कांग्रेस ने योग गुरु के खिलाफ विषवमन का अभियान भी छेड़ दिया है। उन्हें ठग, धोखेबाज जैसी संज्ञाएं दी जा रही हैं और उनके ट्रस्ट के हिसाब-किताब पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। इस सबमें कुछ भी नया नहीं है। ठीक यही हथकंडे अन्ना हजारे और उनकी टीम के खिलाफ भी अपनाए गए थे, जब उन्होंने सख्त लोकपाल बिल के लिए जंतर-मंतर पर अनशन किया था। अब ऐसा ही अभियान कहीं अधिक भद्दे रूप में रामदेव के खिलाफ छेड़ दिया गया है। कांग्रेस का रामदेव के खिलाफ छेड़ा गया दुष्प्रचार किसी काम नहीं आने वाला, क्योंकि यह समय बाबा रामदेव की संपत्तियों की जांच का नहीं है, बल्कि यह जांच करने का है कि काले धन का Fोत क्या है और क्यों मनमोहन सिंह सरकार विदेशी बैंकों में अवैध तरीके से धन जमा कराने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करना चाहती है? नि:संदेह संप्रग सरकार रामदेव के आंदोलन से हिल गई है, क्योंकि उन्होंने भ्रष्टाचार की जड़ पर प्रहार किया है। अन्ना हजारे के आंदोलन का उद्देश्य अपेक्षाकृत सीमित था। उनकी टीम केवल सशक्त लोकपाल संस्था के गठन पर जोर दे रही थी। उच्च पदस्थ लोगों के भ्रष्ट आचरण की निगरानी के लिए लोकपाल संस्था का गठन भ्रष्टाचार के खिलाफ व्यापक लड़ाई का एक हिस्सा भर है। चूंकि भ्रष्टाचार कई सिर वाले एक दैत्य के समान है जिसने राजनीति, शासन और सामान्य जीवन के विभिन्न पहलुओं पर दुष्प्रभाव डाला है इसलिए यह आवश्यक है कि एक व्यापक एजेंडे के साथ भ्रष्टाचार का सामना किया जाए। उदाहरण के लिए धन शक्ति ने निर्वाचन प्रक्रिया को बुरी तरह प्रभावित किया है। विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में किए जाने वाले खर्च ने कुल मिलाकर खर्च की सीमा के निर्वाचन आयोग के प्रावधानों का उपहास ही उड़ाया है। अब काफी समय बाद निर्वाचन आयोग ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए खर्च की सीमा को बढ़ाकर क्रमश: 40 और 16 लाख कर दिया है, लेकिन जो लोग भारतीय राजनीति से परिचित हैं वे जानते हैं कि औसत खर्च इससे कहीं अधिक 3 से 5 करोड़ के आसपास है। यह सारा खर्च काले धन के जरिए किया जाता है। इसमें से कुछ तो देश में ही कमाया जाता है और कुछ स्विट्जरलैंड सरीखे टैक्स चोरी के गढ़ से मंगाया जाता है। लिहाजा स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार विरोधी किसी भी मुहिम की शुरुआत काले धन की समस्या से निपटने के साथ होनी चाहिए। हमें इस ससस्या को ऊंची प्राथमिकता देने की जरूरत है। भ्रष्टाचार का दूसरा महत्वपूर्ण Fोत है सरकारी सौदे। यह किसी से छिपा नहीं कि सरकार चलाने वाले लोगों और सत्ताधारी दल से जुड़े लोगों को प्रत्येक सरकारी सौदे में दलाली मिलती है। आजादी के बाद शुरुआती दशकों में रिश्वत, दलाली और कमीशन का भुगतान रुपये में किया जाता है, लेकिन इंदिरा गांधी के 1980 में सत्ता में वापस आने के बाद कांग्रेस पार्टी ने अंतरराष्ट्रीय सौदों में दलाली की रकम को चंदे के रूप में स्विट्जरलैंड सरीखे स्थानों में जमा कराने का नया रास्ता खोज लिया। प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गांधी के कार्यकाल में कैबिनेट सचिव का पद संभालने वाले बीजी देशमुख सरीखे वरिष्ठ नौकरशाह ने बताया है कि 1980 के बाद से कांग्रेस पार्टी को भारतीय उद्योगपतियों-व्यवसायियों की तुलना में अंतरराष्ट्रीय सौदों में विदेशी कंपनियों से कमीशन लेना अधिक सुविधाजनक लगा। ऐसा करने से कांग्रेस को अपने देश में किसी उद्योगपति अथवा व्यवसायी को लाभान्वित करने के आरोपों से बचने की सहूलियत मिली। इससे कांग्रेस देश में भ्रष्टाचार की चर्चा के आरोपों से भी बच गई। कांग्रेस की यह शानदार योजना हालांकि तब तार-तार हो गई जब स्वीडन के ऑडिट ब्यूरो ने खबर दी कि हथियार निर्माता कंपनी बोफोर्स ने 1986 में भारत को तोप बेचने के सौदे में कुछ लोगों को दलाली दी थी। इस खुलासे से कांग्रेस न केवल शर्मसार हुई, बल्कि उसे चुनावों में पराजय भी झेलनी पड़ी, लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस के रवैये में कोई परिवर्तन नहीं आया है। यही कारण है कि वह विदेशी बैंकों में काला धन जमा कराने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए तनिक भी तैयार नहीं। काले धन के मसले पर जब उच्चतम न्यायालय का दबाव बहुत बढ़ गया तो केंद्र सरकार ने बड़ी चतुराई से एक उच्च अधिकार प्राप्त समिति बना दी। समिति के संदर्भ में कहा गया है कि यह समस्या का परीक्षण करेगी और काले धन को वापस लाने की कार्ययोजना के संदर्भ में अपने सुझाव देगी। सरकार ने ऐसा ही झुनझुना बाबा रामदेव को भी थमाने की कोशिश की थी। उसने काले धन को वापस लाने के लिए कानून का मसौदा तैयार करने के लिए एक समिति बनाने का प्रस्ताव दिया था। इस समिति के गठन का प्रस्ताव करने के बाद सरकार ने दावा किया कि उसने बाबा रामदेव की सभी मांगें पूरी कर दी हैं और अब उन्हें अनशन समाप्त कर देना चाहिए। जब योग गुरु ने ऐसा करने से मना कर दिया तो केंद्र सरकार अत्यंत निर्ममता से बाबा रामदेव और उनके समर्थकों पर टूट पड़ी। ठीक यही इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण के अभियान के खिलाफ 36 वर्ष पहले किया था। आपातकाल लगाने के पहले की परिस्थितियों और आज के हालात में अनेक समानताएं हैं। जेपी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना आंदोलन एक राज्य से शुरू किया था। बाद में इसने व्यापक रूप लिया। तब भी सरकार ने उसे कुचलने की कोशिश की थी। रामलीला मैदान की कार्रवाई से यह साबित हो गया कि मनमोहन सिंह सरकार भी उसी राह पर है। संयोग यह भी है कि इंदिरा गांधी ने आपातकाल रामलीला मैदान में ही विपक्ष की विशाल रैली के बाद लगाया था और तब भी जून का ही महीना था। साफ है, चीजें चाहे जितनी बदल जाएं, कांग्रेस का रवैया नहीं बदलता है। जिन्हें भी लोकतंत्र की चिंता है उन्हें मनमोहन सिंह सरकार की कार्रवाई से सचेत हो जाना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

यह लेख दैनिक जागरण के नौ जून २०११ के अंक से साभार लिया गया है।

रविवार, 5 जून 2011

बाबा रामदेव प्रकरण से उठते सवाल

रोहित कुमार सिंह
बाबा रामदेव को रामलीला मैदान से हटा कर केद्र की कांग्रेस सरकार ने अपनी मानसिकता व मंशा स्पस्त कर दी है। अन्ना हजारे को लोली पॉप दिखा कर आंदोलन के रास्ते से हटाने के बाद कांग्रेस को महसूस हुआ कि बाबा रामदेव का आंदोलन ज्‌यादा सशक्त है, सो उसने अपनी रंगत दिखा दी. इधर, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ईमानदार बता कर उनकी शान में कसीदे पढ़ रहे बाबा रामदेव को भी “दिव्‌य ज्ञान‘ की प्राप्ति हो गयी कि कांग्रेस, कांग्रेस क्‌यों है. अब बाबा कह रहे हैं कि उन्हें जान से मारने की साजिश थी. दरअसल , 60 से अधिक वर्षों से सत्ता का सुख भोग रहे नेहरू परिवार को आंदोलन को कुचलने व भ्रटाचार को बढ़ाने की आदत-सी पड़ गयी है. (वर्तमान में नेहरू की तीसरी पीढ़ी की सोनिया गांधी-मूल नाम सोनिया माइनो के हाथों में इस सरकार की कमान है). इस मुद्दे पर कुछ लिखने अथवा विशलेषण से पहले देख ले कि बाबा की मुख्‌य मांगें क्‌या थीं।
काला धन को देश की संपत्ति घोषित किया जाये।
विदेशों में जमा बेहिसाब काला धन वापस लाया जाये।
ऐसे लोगों के लिए मृत्युदंड की सजा हो।
लोगों को उनकी भाषा में पढ़ाया जाये ।
उनकी मांगों पर सरकार (कांग्रेस) ने क्‌या किया।
सब मांगों में हां-में-हां मिलायी।
आश्वासन-पर-आश्वासन दिया पर कब तक क्‌या करेंगे, बताने से परहेज किया।
रात के 2.30 बजे घुसपैठियों की भांति शिविर पर हमला कर बाबा को भक्तों सहित वहां से हटा दिया. यह सब तब हुआ, जब देश गहरी निद्रा में सो रहा था।
सोनिया-मनमोहन ने यह नहीं बताया कि दिन के उजाले में यह सब क्‌यों नहीं हुआ.अब जरा कांग्रेस का चरित्र व चिंतन देखें : टू जी स्पेक्‌ट­म, कॉमनवेल्‌थ, आदर्श सोसाइटी, सांसद रिश्वत कांड सहित घोटालो की सीरीज चला कर देश का खरबों रुपये लूटने के बाद भी इसके नेता शान से कहते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री मिस्टर क्लीन हैं. सूप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद इसके मंत्री गिरफ्‌तार हो रहे हैं. प्रधानमंत्री चुनावों के पहले तो कहते हैं कि हम काला धन वापस लायेंगे-ऐसे लोगो के नाम उजागर करेंगे, लेकिन जीतने के बाद सुर बदलते देर नहीं लगती-अब इन महोदय का कहना है कि यह संभव नहीं है. असल में वे कुछ कहने की स्थिति में ही नहीं हैं. देश में सबसे अधिक समय तक कांग्रेस का राज रहा है. देश में जीप घोटाले (यह नेहरू के राज में हुआ था और भारत का यह पहला घोटाला माना जाता है) से अब तक हुए घोटालो में कांग्रेस या इसके सहयोगियों की ही भूमिका रही है. ऐसे में उनसे उनके भाई-बंधुओं का नाम उजागर होने से रहा. कुल मिला कर मामला यही है कि जनता के हित की शपथ लेकर चोर-उचक्‌कों की चौकीदारी की जा रही है. फिर भी इस देश की मीडिया को पता नहीं किस चश्मे से मनमोहन सिंह मिस्टर क्लीन दिखते हैं. इससे शर्मनाक क्‌या हो सकता है कि देश की जनता त्राहि-त्राहि कर रही है और कांग्रेस महंगाई को कोई मुद्दा ही नहीं मान रही है. तिस पर से पेटोल की कीमतें सुरसा की तरह बढ़ती जा रही है. अनाज के बिना जनता दुबली हो रही है, अनाज में सट्टा-जुआ हो रहा है, महंगाई के कारण जीना मुहाल हो गया है, 10 प्रतिशत लोग पूरी अर्थव्‌यवस्था को बंदर की माफिक नचा रहे हैं और कांग्रेस “...हो रहा भारत निर्माण‘ के गीत गा रही है. भाजपा तो लगता है कि मुख्‌य विपक्षी पार्टी बन कर अपने आदर्शों तक को दफना चुकी है, देश बरबादी के कगार पर है और उसके नेता घरों व मीडिया कांफ्रेंस रूम की शोभा बढ़ा रहे हैं. कभी सड़कों पर आंदोलन कर अपनी पहचान बनानेवाली भाजपा आज सड़क से संसद तक गायब है. देश में उसके रहने व न रहने का कोई मतलब ही नहीं रह गया है. यह सही है कि अन्ना हजारे व बाबा रामदेव के आंदोलनों को जनता का पूरा समर्थन मिल रहा है, पर यह भी सही है कि अंगरेजों की बनायी व्‌यवस्था में उनके आंदोलन देर-सबेर दम तोड़ देंगे क्‌योंकि यहां की राजनीति कांग्रेस ने काफी गंदी कर दी है. अंतिम विकल्‌प यही है कि नेपथ्य से राजनीति को दिशा देनेवाले ये दोनों नेता मुख्‌यधारा में आयें व देश की बागडोर संभाले । देश इसका बेसब्री से इंतजार कर रहा है. ...... क्‌या उन तक एक अरब 20 करोड़ लोगों की आवाज पहुंच रही है.