सोमवार, 26 अप्रैल 2010

आईएसआई ने भी रचा था विवादित ढांचा ढहाने का षडयंत्र

अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाने की साजिश तो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने भी रची थी। कारसेवकों की मौजूदगी में इस कारनामे को अंजाम देकर आईएसआई देश और प्रदेश में अशांति फैलाना चाहती थी। यह खुलासा ढांचा ध्वंस मामले की सीबीआई की नौवीं गवाह तत्कालीन एएसपी फैजाबाद अंजू गुप्ता ने शुक्रवार को रायबरेली न्यायालय में जिरह के दौरान किया। उनके इस बयान से प्रकरण में नया मोड़ आ गया है।
शुक्रवार को शासन बनाम लालकृष्ण आडवाणी आदि के मामले में सीबीआई ने बतौर गवाह तत्कालीन एएसपी व वर्तमान में डायरेक्टर कैबिनेट सचिवालय भारत सरकार अंजू गुप्ता को पेश किया। बचाव पक्ष के अधिवक्ता हरिदत्त शर्मा के प्रश्नों के उत्तर में उन्होंने कहा कि पांच दिसंबर 1992 को छह दिसंबर के प्रस्तावित कारसेवा के मद्देनजर पुलिस अफसरों की समीक्षा बैठक में तत्कालीन आईजी जोन एके सरन ने कहा था कि खुफिया एजेंसियों से जो सूचनाएं मिली हैं, उसमें विवादित ढांचे पर हमले और उसके साथ तोड़फोड़ की आशंका व्यक्त की गई है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और इसके गुर्गो से भी खतरे की आशंका है। वैसे ज्यादा बड़ा खतरा स्थानीय स्तर पर कारसेवकों की ही तरफ से है। अंजू गुप्ता ने बताया कि खुफिया एजेंसियों से यह भी जानकारी दी थी कि शायद आईएसआई के गुर्गे अयोध्या पहुंच गये हैं और स्थानीय लोगों से मिल कर अथवा अन्य तरीके से वे विवादित ढांचे को क्षति पहुंचा सकते हैं, ताकि कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़े।
बयान में सुधार 'थे' की जगह 'थी'
साथ ही 26 मार्च को दिये बयान पर पूछे गये प्रश्न में सुधार करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने पेज नंबर सात पर जो बयान दिया था उसमें 'थे' की जगह 'थी' कहा था। पिछली गवाही के दौरान दिये बयान में श्रीमती गुप्ता ने कहा था कि जब गुंबद गिर रहे थे, ढांचा टूट रहा था। उस समय मंच पर जो नेता बैठे थे, वह बहुत खुश लग रहे थे। वे एक दूसरे से गले मिल रहे थे। मिठाइयां बंट रही थीं, एक जश्न का माहौल था और कारसेवकों को प्रेरित किया जा रहा था। सुश्री उमा भारती व ऋतंभरा बहुत प्रसन्न थीं और वहां मौजूद आडवाणी समेत सभी नेताओं से गले मिल रहीं थीं। दोनों मंच से लगातार ढांचा गिराने के लिए प्रेरित कर रहे थे।
बचाव पक्ष को राहत न देते हुए अंजू गुप्ता ने कहा कि उन्होंने जो बयान मुख्य परीक्षण में दिये हैं, वही उन्होंने सीआईडी व मामले के जांच अधिकारी को भी दिये थे। वे किसी के दबाव में बयान नहीं दे रहीं हैं। बचाव पक्ष ने लगभग तीन घंटे की जिरह के दौरान अंजू से सीबीसीआईडी के सामने दिये गये उनके बयान और अदालत में दर्ज कराये उनके बयानों में अंतर होने के बारे में सवाल करते हुए कुछ खास बिंदुओं का उल्लेख किया और उन पर जिरह की।
बचाव पक्ष के इस सवाल पर कि क्या उन्होंने सीबीसीआईडी को दर्ज कराये अपने बयान में यह जानकारी नहीं दी थी कि गुम्बद पर चढ़े लोगों को गिरकर घायल होने से चिंतित आडवाणी लोगों को उतारने के लिए उनके पास जाना चाहते थे, जैसी कि जानकारी उन्होंने अदालत में दी, इस पर अंजू का कहना था कि उन्होंने सीबीसीआईडी के सामने अपने बयान में हर उस बात का उल्लेख किया है, जो अदालत के सामने दर्ज कराये अपने बयान में कही है। सीबीसीआईडी को धारा 161 के तहत दर्ज कराये अपने बयान में उन्होंने हर बात का उल्लेख किया है। इसी तरह उमा भारती और ऋतंभरा द्वारा छह दिसंबर को दिये गये भड़काऊ भाषणों के बारे में सीबीसीआईडी के दिये बयानों में उल्लेख न होने के बारे में बचाव पक्ष ने अंजू से सवाल किया। उस पर उन्होंने दोहराया कि उन्होंने सीबीसीआईडी को हर बात बतायी थी, जिसे विवेचनाधिकारी ने लिखा भी था और अब वह दर्ज कैसे नहीं है, यह तो जांच अधिकारी बता सकता है।
बचाव पक्ष के इस सवाल पर कि क्या उन्होंने इस अदालत में विचाराधीन मुकदमे 198/92 के बारे में सीबीआई को कोई बयान दिया था, अंजू ने कहा कि उन्होंने विवादित ढांचे के विध्वंस के बारे में सीबीआई को बयान दिया था मगर यह नहीं जानती कि सीबीआई ने उसका उपयोग किस मुकदमे में किया। 12 पेज की जिरह के बाद न्यायालय ने शेष जिरह के लिए 29 अप्रैल की तिथि नियत कर दी है।
रिपोर्ट दैनिक जागरण की खबरों पर

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