रोहित कुमार सिंह
देश का हॉल इन दिनों बहुत बुरा है. आतंकवादी-दर-आतंकवादी जेल में जमा होते जा रहे हैं और सरकार है कि उन्हें फांसी देने की सोच भी नहीं रही है. अब देखिये न सुना है दिल्ली हाइकोर्ट के बाहर कुछ धमाका-वमाका हुआ है. इसके आलावा नामुराद आतंकवादियों का जहां मन होता है, घुस आते हैं और तबाही मचा कर लौट जाते हैं. इधर, सरकार ऐसे "बिहेव' करने लगती है, मानो कुछ हुआ ही न हो. सरकार के मंत्री कहते हैं कि बड़े-बड़े शहरों में छोटी-छोटी घटनाएं हो जाती हैं. बताइए साहब, आदमी की जान की कीमत है कि नहीं. जब मंत्री महोदयों के साथ ऐसी "छोटी-मोटी' घटनाएं होंगी तो समझ में आयेगा कि जान की कीमत क्या होती है. इन्हीं सब बातों को लेकर मैं दिल्ली की सड़कों पर "चिंता' करते हुए घूम रहा था. सोच रहा था कि भगवान इस देश का क्या होगा. कैसे चेलगा खटोला . इतने में मुझे लगा कि कोई मुझे चिल्ला चिल्ला कर रुकने को कह रहा है. मुझे लगा कि इस "हस्तिनापुर' में मुझे जाननेवाला कौन हो सकता है. इतने मे मैंने देखा कि मुझे बुलानेवाला कोई और नहीं स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हैं. मुझे शंका हुई तो मैंने उन्हें इशारा कर पूछा कि कौन मैं? उधर से आवाज आयी-ओ हां यार तुम ही, रुको तो. मैं रुक गया. अब सामने मनमोहन सिंह थे. जब मैंने उन्हें प्रणाम किया तो उन्होंने कहा कि-अरे मैं कांग्रेस का कॉमन मैन हूं. कॉमन मैन मतलब आम आदमी. और जब मैं आम आदमी हूं तो ताकुल्ल्फ़ कैसी. मैं भारत की पदयात्रा पर अकेले निकला हूं. मुझे जानना है कि देशवासियों का दिन इन दिनों कैसे गुजर रहा है. मैंने सोचा कि अब मेरे सामने प्रधानमंत्री नहीं कॉमन मैन है, सो मौका बढ़िया है, दिल की भड़ास निकल ली जाये. तक ताकुल्ल्फ़छोड़ते हुए मैंने भी शुरू किया क्या कॉमन मैन की बात करते हैं. आज देश में जो कॉमन मैन की गत है, उससे तो ज्यादा मजे में सड़कों पर रहनेवाले आवारा कुत्ते हैं. कम-से-कम वे आतंक व महंगाई जैसी चीजों से बचे हुए हैं. आपके कॉमन मैन की हालत यह है कि घर के बाहर उसे आतंक का खौफ है तो घर के अंदर महंगाई का. बेचारा न जी रहा है, न मर रहा है. बीच में टोकते हुए मनमोहन सिंह ने कहा-यह आप क्या और कैसे कह रहे हैं. आतंक को रोकने के लिए हम लगातार लगातार लगातार पाकिस्तान के संपर्क में हैं, हमने आतंकियों की लिस्ट उसे सौंपी है. रही बात महंगाई की तो आप लगता है अपडेट नहीं हैं. महंगाई दर ऐसे गिर रही है, जैसे वह पहाड़ से फिशल गयी हो. मैंने भी उनकी बात काटते हुए कहा-लिस्ट सौंप दी तो कौन-सा बड़ा तीर मार लिया। लिस्ट को उसने बाथरूम पेपर के रूप में इस्तेमाल करफेेंक दिया. सभी जानते हैं कि आप 60 वर्षों से आतंकवाद-आतंकवाद चिल्ला रहे हैं, पर हो क्या रहा है-यह पूरा देश नंगी आंखों से देख रहा है. आतंकवादी हमें घर में घुस कर मार रहे हैं और आप अफजल व कसाब जैसों को जेल में पाल -पोस कर बड़ा कर रहे हैं. जहां तक महंगाई दर की बात है तो महंगाई दर तो गिर रही है, पर दाम जस-के-तस हैं. ऐसे में दर कैसे गिर रही है, इसकी तो सीबीआइ जांच करायी जानी चाहिए. मनमोहन सिंह ने छूटते ही कहा-देखो भाई युद्ध-वुद्ध से कुŸछ हासिल नहीं होगा. तुम जिस भाजपा की बोली बोल कर मेरे कानों में शीशा घोल रहे हो, उसी भाजपा से क्यों नहीं पूछते हो कि जब संसद पर हमले हुए तो उसने पाकिस्तान से भीड़ कर हिसाब बराबर क्यों नहीं कर लिया था. मैंने कहा-किसने क्या किया. इससे मुझे मतलैब नहीं है. आप अभी कुर्सी पर हैं, सो आप बतायें कि आप पाकिस्तान का क्या करनेवाले हैं. मनमोहन सिंह ने सफाई देनी शुरू कि मैंने गृहमंत्री को बदल दिया क्योंकि वे ज्यादा कपड़े बदला करते थे. पाकिस्तान को आतंकवादियों की सूची सौंप उसकी हमने पावती रसीद ली है ताकि बाद में हमें कोई यह न कहे कि हमने सूची सौंपी ही नहीं है. इसके अलावा हम पूरे विश्व को बता रहे हैं कि पाकिस्तान गंदा बच्चा है. बताइये यह कम है क्या. मनमोहन bole जा रहे थे, पर मुझे लगा कि भाई साहब सब बात करेंगे पर मुद्दे पर नहीं आयेंगे. उनसे विदा लेकर अपने प्रश्न पर सोचता आगे निकल गया।
(यह मेरी अप्रकाशित रचना है जो कुछ कारणों से अखबार या किसी पत्रिका में प्रकाशित नहीं हो सकी).....रोहित
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