शनिवार, 20 सितंबर 2008

मुस्लमान और मीडिया

दिल्ली ब्लास्ट के मुजरिमों को पकड़ने गई पुलिस सफल तो रही लेकिन चर्चित इंसपेक्टर मोहन चंद्र शर्मा सहीद हो गए। इस घटना मे दो आतंकबादी भी मारे गए । जब मीडिया उन आतंकबादी के गाव पहुची तो उन्हें बंदक बनाया गया और कहा गया की मीडिया मुसलमानों को आतंकबादी बताती है । अब सवाल उनसे जो यह कहते है की मुसलमानों को आतंकबादी बताया जा रहा है । उन्हें बताना चाहिये की अगर वे आतंकबादी नही थे तो मोहन शर्मा को गोली किसने मारी । हजारो लोगो की मौज़दगी मे ऊपर से पुलिस पर गोली किसने चलाई । वहा दो कमरों मे १२ लोग रह रहे थे , लेकिन लोकल लोगो ने पुलिस को सहयोग नही किया । पुलिस की करवाई का लोगो ने विरोध क्यों किया । इन बयानों और घटनाओ के माध्यम से मुस्लिम समाज क्या संदेश देना चाहता है । अगर मीडिया ने उन्हें दोसी कहा है तो उनकी गतिविधि इसके लिए दोसी है । मुसलमानों ने मीडिया को दोसी कहने से पहले यह क्यो नही याद किया की गोधरा मे उनकी गलती रहने के बाद भी उनका सहयोग किया । आज भी मीडिया इस डर से मुसलमानों के खिलाफ ख़बर नही लिखती है या दिखाती है । यह बात मै मीडिया मे रहने के कारन अच्छी तरीके से जानता हूँ । मुस्लमान अगर चाहते है की उन्हें अताक्बदी की गाली न दी जाए तो उन्हें अपना चरित्र बदलना होगा । उन्हें भारत की खुसी मे अपनी खुसी खोजनी होगी , पाकिस्तान की जगह उन्हें भारत की जय कहना सीखना होगा ।

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