शनिवार, 25 अगस्त 2012

अब तो बंद करें तुष्टिकरण


रोहित कुमार सिंह
15 अगस्त को एक खबर (अफवाह नहीं) चल निकलती है कि असम में बांग्लादेशी मुसलमान विरोधी दंगों के विरोध में पूरे द ेश में पूवरेत्तर के लोगों को निशाना बन ाया जा रहा है और ईद के बाद पूवरेत्तर के लोगों को मुसलमान काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं. खबर का असर हुआ और कर्नाटक व अन्य दक्षिणी राज्यों से पूवरेत्तर को जानेवाली ट्रेनों में भर-भर कर लोग पलायन करने लगे. देश एकाएक अराजकता की स्थिति में आ गया. देखा जाये  तो पूवरेत्तर के लोगों की चिंता गैर बाजिब नहीं थी. मुंबई के पुणो व झारखंड के रांची की घटनाएं साबित कर चुकी थी कि सबकुछ ठीक नहीं है और बदले की आग मुसलमानों में सुलग रही है. हालत बिगड़ता देख प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आगे आते हैं और सबकुछ ठीक होने का दावा करते हैं और अफवाहों से बचने की सलाह देते हैं. इसके दो दिन बाद इस प्रकरण में केंद्रीय गृह सचिव का बयान आता है कि यह सबकुछ फेसबुक व सोशल नेटवर्किग साइटों द्वारा फै लायी गयी अफवाहों के कारण हुआ है. हालांकि सरकार उनकी सुरक्षा को लेकर पूरी तरह गंभीर है. इसके बाद विश्वास बहाली का दौर शुरू होता है व रूटीन चीजें दोहरायी जाने लगती हैं, लेकिन तभी एक खबर आती है कि पश्चिम बंगाल में ट्रेन से पूवरेत्तर के 18 लोगों को फेंक दिया गया है. चूंकि इस खबर को पूवरेत्तर के लोगों ने स्वयं घटते हुए देखा सो एक बार फिर दहशत कायम हो जाती है. कल तक पूवरेत्तर की सुरक्षा के नाम पर कसमें खा रहे हमारे देश के हुक्मरान बगले झांकने लगते हैं क्योंकि यह बात सामने आती है कि हजारों की संख्या में पलायन करते पूवरेत्तर के लोगों की सुरक्षा के लिए एक सिपाही तक मौजूद नहीं था.
हम पूवरेत्तर के साथ क्या कर रहे हैं
यह 15 अगस्त से 20 अगस्त के बीच की घटनाओं का सार है, जो हमारे सिस्टम पर सवाल-दर-सवाल खड़े करता है. पहला सवाल-हम पूवरेत्तर के साथ क्या कर रहे हैं. गृह मंत्रलय की रिपोर्ट कहती है कि देश में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है और इससे बिहार के सीमावर्ती जिलों व पूवरेत्तर में धार्मिक समीकरण बिगड़ गया है. अल्पसंख्यक अब बहुसंख्यक हो गये हैं और कथित बहुसंख्यक अब अल्पसंख्यक कहे जा रहे हैं. इस बीच दिल्ली और गुवाहाटी में कई सरकारें आयीं और गयीं, पर किसी ने इस देश को स्थायी धर्मशाला बनने से नहीं रोका. पूवरेत्तर के 10 वैध लोगों के लिए दिल्ली से चला पैसा जब असम पहुंचता है तो उसके 100 नाजायज दावेदार हो जाते हैं. यह समस्या बढ़ती जा रही है. स्थानीय लोगों में रोष बढ़ता जा रहा है और कांग्रेस एंड कंपनी वोट बैंक को ध्यान में रख कर सबकुछ चुपचाप देख रही है.
खुफिया तंत्र केवल वीआइपी के लिए !
सरकार कह रही है कि पाकिस्तान ने साइबर क्राइम कर भारत का आंतरिक माहौल खराब किया. सवाल यह नहीं है कि किसने ़क्या किया. सवाल यह है कि जब पाकिस्तान आपकी आजादी के दिन दहशत बम फोड़ने में जुटा हुआ था तो सुरक्षा एजेंसियां क्या अचार लगा रही थी. यह बहुत आसान है कि आप अपनी गलतियों के लिए दूसरों को दोषी ठहरा दें, लेकिन बड़ी बात यह है कि इस मामले में कारगिल कांड की तरह हमारा खुफिया तंत्र फेल रहा. लगता है हमारा खुफिया तंत्र केवल वीआइपी की सुरक्षा के लिए ही सक्रिय होता है.
बोलने की आजादी पर पाबंदी
अब बात घटना के 10 दिन बाद की यानी 25 अगस्त की. सरकार ने कहा कि संघ परिवार व उसकी विचारधारा से जुड़े लोगों के ट्विटर एकाउंट बंद होंगे. इसके साथ ही बल्क एसएमएस भेजने पर पाबंदी जारी रहेगी. पाकिस्तान से जुड़ी साइटों व फेसबुक -ट्विटर को बंद करने अथवा ब्लॉक करने की बात तो समझ में आती है, लेकिन इस बहाने इसे धार्मिक रूप से बैलेंस करने यों कहें कि तुष्टिकरण के लिए संघ परिवार पर निशाना साधने की कार्रवाई तो निश्चय ही इमरजेंसी का दोहराव है. मैं इमरजेंसी के समय पैदा भी नहीं हुआ था किंतु जितना इसके बारे में पढ़ा या सुना उससे तो मुङो यही लगता है कि कांग्रेस ने शुरुआत तो कुछ ऐसे ही की होगी. देश की कांग्रेस सरकार कुछ भी कहे, वह बोलने की आजादी पर पाबंदी लगा रही है, वह इस आरोप से कतई बरी नहीं हो सकती है.

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