शनिवार, 18 अगस्त 2012

मोदी पर विवाद क्यों


15 अगस्त की दोपहर तक खबरों का बाजार ठंडा था. अचानक देश की प्रतिषिठत पत्रिका द वीक के हवाले से एक खबर निकली. इसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हवाले से कहा गया कि अगर भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया गया तो वे गंठबंधन तोड देेंगे. बवाल मचा तो नीतीश कुमार ने इंटरव्यू से ही इनकार कर दिया. कहा-मैंने कोर्इ इंटरव्यू नहीं दिया और न ही नरेंद्र मोदी का नाम लिया. ऐसा नही है कि मामला पहली बार सामने आया है. नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी का नाम लिये बिना उनकी पीएम पद की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे हैं. बीमारी वही है-देश में सेकुलर प्रधानमंत्री होना चाहिए, लेकिन सेकुलर की क्या परिभाषा है यह कोर्इ बताने को तैयार नहीं है. इस देश में सेकुलर का मतलब एक ही है-हिंदुओं की कीमत, हक पर मुसलमानों का तुषिटकरण करो. तभी तो प्रधानमंत्री भी यह कह गुजरते हैं कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है.
नरेंद्र मोदी पर निशाना साधनेवाले नीतीश कुमार यह भूल जाते हैं कि वे लोकतांत्रिक व्यवस्था में जी रहे हैं. नरेंद्र मोदी भी इसी भारत के एक राज्य गुजरात के चुने हुए मुख्यमंत्री हैं. उन पर सवाल उठाना देश पर सवाल उठाने जैसा है.

कोई टिप्पणी नहीं: