चीन की सैन्य तैयारियां और अमेरिकी रिपोर्ट
चीन की सैन्य तैयारियों के बारे में अमेरिकी प्रतिरक्षा मुख्यालय पेंटागन की ताजा रिपोर्ट में कम-से-कम जानकारों के लिए कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं होना चाहिए। चीन ने भारत से जुड़ी सीमाओं पर तैनात पुरानी मिसाइलों को ज्यादा उन्नत मिसाइलों से बदल दिया है। उसने भारतीय सीमाओं पर सैनिकों को जमा करने की आकस्मिक योजना तैयार की हो सकती है। अब उसके निशाने की जद में सिर्फ अपना पास-पड़ोस ही नहीं, पूरी दुनिया है। वह अपनी सैन्य तैयारियों को लेकर भारी गोपनीयता बरत रहा है। सवाल यह है कि आखिर कौन-सा देश है जो यही सब नहीं करेगा या करना चाहेगा।भारत में हमें यह रिपोर्ट पढ़ते हुए भूलना नहीं चाहिए कि यह अमेरिकी रिपोर्ट है। चीन के बढ़ते प्रतिरक्षा खर्च के बारे में हमें वह देश आगाह कर रहा है, जिसका अपना प्रतिरक्षा बजट चीन से काफी अधिक और दुनिया में सबसे ज्यादा है। फिर स्थापित महाशक्ति अमेरिका और उभरती महाशक्ति चीन के बीच अदावत जानी-पहचानी है। इस किस्म की रिपोर्ट से एशिया में चीन की बढ़ती ताकत के प्रति चिंता पैदा करके हथियारों की होड़ को बढ़ावा देना उसका मकसद हो सकता है। इसमें उसका दोहरा फायदा है। वह चीन के खिलाफ उसके ही पड़ोस में चुनौती खड़ी करेगा और हथियार बेचकर मुनाफा भी कमाएगा।पहला सबक तो यह है कि किसी अमेरिकी रिपोर्ट के आधार पर दहशतजदा होने या अपनी रणनीति बनाने के बजाय हम खुद अपनी रिपोर्ट तैयार करें। पिछली सदी के अंत में चीन के उभार को भांपकर अमेरिका ने ऐसी रिपोर्ट तैयार करने के लिए बाकायदे कानून बनाया था। उसी के तहत वर्ष 2000 से हर साल पेंटागन ऐसी रिपोर्ट पेश करता है। हमारे सैन्य प्रतिष्ठान में विभिन्न स्तरों पर चीन की रक्षा तैयारियों पर लगातार निगाह रखने और विश्लेषण करने का काम होता ही होगा। क्या अब समय नहीं आ गया है, जब हम भी ऐसी ही प्रामाणिक रिपोर्ट तैयार करें, संसद में रखें और उस पर सार्वजनिक बहस करें?चीन के साथ हमारा अप्रिय और कटु जंग का इतिहास रहा है। हालांकि 1962 के बाद दोनों तरफ की नदियों में काफी पानी बह चुका है, पर सीमा विवाद अब भी अनसुलझा है। फिर दो महाशक्तियों के उभार के दौरान संबंध कैसे मोड़ लेंगे, कहना कठिन है। इसलिए चीन की बढ़ती ताकत से भयभीत होने की जरूरत नहीं, लेकिन उसकी एकनिष्ठ स्वार्थपरता को गंभीरता से नहीं लेने की गलती भी हमें नहीं करनी चाहिए।
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