यूरोप के देशों में इन दिनों बुर्क़े के विरोध की लहर सी चल रही है। अप्रेल में फ़्रांस के पड़ोसी बेल्जियम की संसद ने भारी बहुमत के साथ बुर्क़े पर इसी तरह की पाबंदी लगाने वाला विधेयक पास किया था। उसके बाद जून में स्पेन की सेनेट ने बुर्क़ा पाबंदी विधेयक पास किया। लेकिन फ़्रांस यूरोप की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश है।
फ़्रांस की लोकसभा एसेंबली नेत्सियोनाल ने बुर्क़ा पहनने पर पाबंदी लगाने वाला विधेयक भारी बहुमत के साथ पास कर दिया है। लगभग एक सप्ताह की बहस के बाद मंगलवार की शाम को हुए मतदान में एसेंबली नात्सियोनाल के कुल 557 सांसदों में से 335 ने इस विधेयक के पक्ष में और केवल एक सांसद ने विरोध में मत डाला। जैसी कि संभावना थी, विपक्षी समाजवादी पार्टी और ग्रीन पार्टी के सांसदों ने नारीवादियों के दबाव और फ़्रांस के जनमत के रुझान को देखते हुए मतदान का बहिष्कार किया।यह विधेयक फ़्रांस के सार्वजनिक स्थलों और सड़कों पर बुर्क़ा पहनने पर पाबंदी लगाता है। फ़्रांस की एसंबली नेत्सियोनाल में पारित हो जाने के बाद अब यह फ़्रांसीसी संसद के उच्च सदन सेनेट के पास भेजा जाएगा जहाँ इसका सितंबर तक अनुमोदन हो जाने की संभावना है। सेनेट से अनुमोदन मिलने के बाद इसे कानून का दर्जा मिल जाएगा। लेकिन इसे लागू करने से पहले छह महीने तक बुर्क़ा पहनने के ख़िलाफ़ एक जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। इसलिए बुर्क़े पर वास्तविक पाबंदी अगले मार्च से पहले लागू नहीं हो सकेगी। बुर्क़ा पाबंदी कानून के लागू हो जाने के बाद सार्वजनिक स्थानों पर चेहरा ढाँपने वाला बुर्क़ा या नक़ाब पहनने वाली महिला पर लगभग दस हज़ार रुपए का जुर्माना किया जा सकेगा। यही नहीं, किसी महिला या लड़की को बुर्क़ा पहनने पर मजबूर करने वाले व्यक्ति को एक साल तक की जेल की सज़ा और बीस लाख रुपए तक का जुर्माना भुगतना पड़ेगा।यूरोप के देशों में इन दिनों बुर्क़े के विरोध की लहर सी चल रही है। अप्रेल में फ़्रांस के पड़ोसी बेल्जियम की संसद ने भारी बहुमत के साथ बुर्क़े पर इसी तरह की पाबंदी लगाने वाला विधेयक पास किया था। उसके बाद जून में स्पेन की सेनेट ने बुर्क़ा पाबंदी विधेयक पास किया। लेकिन फ़्रांस यूरोप की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश है। फ़्रांस में बसने वाले लगभग पचास लाख मुसलमान उसके अल्जीरिया और मोरोक्को जैसे उपनिवेशों से आए हैं और कई पीढ़ियों से फ़्रांस में हैं। इनमें कट्टरपंथियों की संख्या बहुत कम रही है इसलिए बुर्क़ा पहनने वाली महिलाओं की संख्या पिछले साल तक कुछ सौ से अधिक नहीं थी। लेकिन विडंबना की बात यह है कि पिछले कुछ महीनों के दौरान उनकी संख्या बढ़कर दो हज़ार के लगभग हो गई है जो कट्टरपंथ की लहर होने की बजाए बुर्क़े के ख़िलाफ़ शुरू हुए अभियान की प्रतिक्रिया अधिक लगती है।इसलिए फ़्रांस का मुस्लिम समाज बुर्क़े पर पाबंदी लगाने वाले विधेयक का विरोध कर रहा है। फ़्रांस की मुस्लिम परिषद के अध्यक्ष मोहम्मद मुसावी ने कहा है, “हमारे विचार में बुर्क़े पर इस तरह की आम पाबंदी लगाना कोई समाधान नहीं है।” एमनेस्टी इंटरनेशनल ने यूरोप के सांसदों से बुर्क़े पर पाबंदी लगाने वाले कानूनों का विरोध करने की अपील की है। एमनेस्टी का कहना है कि ये कानून बुर्क़ा पहनने वाली महिलाओं के अधिकारों का हनन करते हैं और उनको समाज से और अलग-थलग करेंगे।मानवाधिकारों के मामले पर फ़्रांस के बुर्क़ा विरोधी कानून को यूरोपीय संघ की स्ट्रासबर्ग स्थित मानवाधिकार अदालत में चुनौती दी जा सकती है और अगर यूरोपीय अदालत इस कानून के ख़िलाफ़ फ़ैसला सुनाती है तो फ़्रांसीसी सरकार को उसे मानना होगा। लेकिन उस से पहले इस कानून पर फ़्रांस की ही सर्वोच्च वैधानिक संस्था राष्ट्रीय परिषद विचार करेगी। यह परिषद पहले ही इस कानून के ग़ैर-संवैधानिक होने की संभावना व्यक्त कर चुकी है।इन सारी संभावित अड़चनों के बावजूद भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से जूझ रही राष्ट्रपति निकला सार्कोज़ी की दक्षिणपंथी यूएमपी सरकार बुर्क़ा विरोधी कानून लागू करने पर तुली हुई है। विधेयक के एसेंबली नेत्सियोनाल में पारित होने के बाद फ़्रांस की कानून मंत्री मिशेल एलियट-मरी ने कहा, “यह उन फ़्रांसीसी मूल्यों की जीत है जो लोगों नीचा दिखाने वाले हर तरह के दमन से मुक्ति की और पुरुषों और महिलाओं के बीच बराबरी का पक्ष लेते हैं, जो असमानता और अन्याय को बढ़ावा देने वालों का विरोध करते हैं।” वैसे यह पहली बार नहीं है कि फ़्रांस में सार्वजिनक स्थलों पर धार्मिक वेषभूषा को लेकर विवाद उठा हो। फ़्रांस अपने धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का किसी आधुनिक धर्म की तरह पालन करना चाहता है। इसलिए वहाँ के स्कूलों में धार्मिक आस्था का प्रतीक समझी जाने वाली वेषभूषा और प्रतीकों के पहनने पर रोक है। इसी के चलते 2005 में फ़्रांस के स्कूलों में सिख छात्रों की पगड़ी को लेकर विवाद छिड़ा था और एक अदालत के फ़ैसले के बाद पगड़ी पहनने वाले कई सिख छात्रों को स्कूलों से निकाल दिया गया था।
लेखक - शिवकान्त लंदन से
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