गुरुवार, 7 नवंबर 2013

छठ तो ठीक है, पर गंगा को क्यों भूले

रोहित कुमार सिंह
छठ बिहारियों के लिए कितना महत्वपूर्ण है, यह बताना शायद समय बरबाद करने
जैसा है. बिहार का यह पहला व आखिरी लोकपर्व है जो तमाम तरह के बदलावों के
बावजूद अपने संपूर्ण आदि रूप में है. यानी सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक;
किसी तरह का बदलाव इसे प्रभावित नहीं कर पाया. गीतों की पवित्नता से लेकर
आस्था तक सबकुछ अक्ष़्क्षुण है लेकिन एक बात जो बदल गयी वह यह है कि हमने
अपनी निदयों की पवित्नता का ध्यान नहीं रखा. नतीजा जिस गंगा घाट पर छठ
करने को महान धार्मिक कृत्य बताया गया था, आज गंगा घाटों पर गंगा से
ज्यादा गंदगी दिखती है. गंगा की जमीन पर खेती हो रही है, घर (अपार्टमेंट)
बन रहे हैं, बची कसर हम प्लास्टिक, प्लास्टर ऑफ पेरिस व वैसी चीजें गंगा
में फेंक कर पूरी कर रहे हैं, जो सदियों में नष्ट नहीं होती हैं.
दो दिनों की गंगा
लोगों को गंगा अब दो ही दिन याद आती है एक; जब छठ करने के लिए गंगा जल
लाना हो तब या फिर अर्घ देने के वहां जाना हो तब. दूसरा; तब जब किसी
परजिन की अंतेष्टि उसके तट पर करनी हो. पिछले साल देश स्तर का एक आंकड़ा आया
है कि गंगा को गंदा करने (मकसद सफाई था) के नाम पर दो दशकों (लगभग 20
साल) में हजारों करोड़ रु पये नेताओं, इंजीनियरों, ठेकेदारों आदि की जेब
में चले गये. .और इन वर्षो में गंगा की क्या हालत हुई किसी को बताने की
जरूरत नहीं है.
खुद ही बरबाद कर रहे विरासत
मेरे एक मुसलिम मित्न ने मुझसे कहा कि अगर किसी धर्म या समुदाय की
सांस्कृतिक धरोहर, परंपरा या विरासत आदि बरबाद होती है तो उसके लिए वह
स्वयं जिम्मेदार होता है. गंगा की ताजा हालत के संदर्भ में मुङो उसकी यह
बात 100 प्रतिशत सही लगती है. जरा सोचिए जिसके माथे गंगा की सफाई का
जिम्मा रहा होगा, उनमें 90 प्रतिशत तो हिंदू ही रहे होंगे. लेकिन उन
लोगों ने हजारों करोड़ हजम कर गंगा को नाला बनने के लिए उसके हाल पर छोड़
दिया.
एक कोशिश गंगा के नाम
आज गुरुवार है व तारीख है 7 नवंबर, 2013. शुक्रवार की शाम हम अपने परजिनों के साथ
छठ मैया को अर्घ देने के लिए गंगा घाटों पर जरूर जायेंगे. क्या हम हिंदू
होने के नाते कुछ चीजें कर सकते हैं. मसलन, क्या छठ के दिन हम यह प्रण
लेंगे कि हम निदयों में पॉलीथीन, प्लास्टर ऑफ पेरिस आदि नहीं डालेंगे,
गंगा को गंदा करने का कोई काम नहीं करेंगे. विश्वास मानिए
खुद से की गयी पहल ही गंगा को ‘गंगा मैया’ बना सकती है. सदियों से जिसने
हमारी पीढ़यिों का पोषण किया है उसके लिए तो हम इतना कर ही सकते हैं. आप
एक साल ऐसा करिए, यकीनन अगले साल आपको फर्क जरूर दिखेगा.
सभी दोस्तों को छठ पर्व की शुभकामनाएं व बधाईयां. सभी पर भगवान भास्कर व
छठ मैया की कृपा बनी रहे.

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