रोहित कुमार सिंह
राहुल गांधी ने यूपी में तीन दिनों तक पदयात्रा की. किसानों से मिले, उनकी समस्याएं सुनीं, उनके सवालों पर गौर फरमाया-इन उपक्रमों के बाद कहा, हम आपके साथ हैं. चौथे दिन किसान महापंचायत बुलायी जाती है, चार मंच बनाये जाते हैं, जनाब किसानों से मुखातिब होते हैं. तरह-तरह के आश्वासन दिये जाते हैं. मीडिया कहती है कि "" आजादी के 60 वर्षों में पहली बार किसी नेता ने शिद्दत के साथ किसानों के लिए सोची है, लकिन वह (मीडिया) इस बात को नहीं बताती है कि इन 60 वर्षों में 45 साल से भी ज्यादा इसी कांग्रेस का राज रहा है. यह तो है कि किसानों की सोची जा रही है, पर उसका मकसद किसान कतई नहीं हैं. राहुल को मंच पर जब किसान हल भेंट करते हैं तो वह इशारों से पूछते हैं-इसे पकड़ा कैसे जाता है. यानी इतिहास-भूगोल जाने बिना किसानों का उद्धार किये जाने की तैयारी है. इस हल प्रकरण ने बिहार में 70-80 के दशक में घटित घटना की याद दिला दी. तब हुआ यों था कि एक बड़े नेता (अब दिवंगत हो चुके हैं और देश के प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं) बिहार के दौरे पर आये. किसानों से मिलने उनके खेतों में गये. मिर्च की फसल का समय था. वहां उन्होंने हरी व लाल मिर्च देखी. पूछा इसमें महंगी कौन है. किसानों ने कहा-लाल मिर्च. इस पर महोदय का जवाब था-तब आप केवल लाल मिर्च की ही खेती क्यों नहीं करते हैं. कहने का मतलब कि कांग्रेस से किसी भी तरह की बेहतरी की उम्मीद करना अलकायदा का जेहाद न करने जैसा ही है. इस महापंचायत के बहाने एक और चीज हुई. पूरे उत्तर प्रदेश के सांसदों व दिग्गज नेताओं को एक साथ लया गया व अगले साल होनेवाले विधानसभा चुनाव के लिए अनौपचारिक अभियान की शुरुआत कर दी गयी. सो यह कहना कि पूरी कवायद किसानों के लिए है, आशाओं के अंधेरे कुएं में कूदने जैसा ही है. यह पूरी तरह से युवराज वाया कांग्रेस की राजनीतिक वासना है.
(दूसरी किस्त में कल पढ़ें -देश के किसानों का हाल व यूपीए का रवैया)
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