सोमवार, 5 अक्तूबर 2009

यह कैसी भक्ति

दशहरा समाप्त हो गया और आने वाले दीपावली है। हिंदू समाज का सबसे बड़ा पर्व दीपावली है, दीपावली के लिए अब चारों ओर तैयारियां जोरों से आरंभ हो गई है। अपने-अपने घरों को चमकाने के पीछे लोगों का यह तर्क रहता है कि माता लक्ष्मी का घर में सदैव के लिए वास हो और वे धन-धान्य से घर को भर दें। शहरवासी अपने घर में रंग-रोगन तो अनिवार्य रूप से करते तो हैं । इसके साथ पूरे घर की साफ-सफाई भी इसी दौरान करते हैं। घर के सारे खराब सामान को बाहर फेंक उसके स्थान पर नया सामान लाया जाता है। इसी क्रम में रखे मेज के कपड़ों के अलावा दीवारों में लगे पोस्टरों को भी कूड़ा दान में फेंक दिया जाता है। घरों में भगवान की पोस्टर व पूजन स्थल के कपड़े होते है जिन्हें इस साफ-सफाई के दौरान कूड़ो में फेंक दिया जाता है। ऐसे में लोगों की आस्था पर खुद ब खुद सवाल उठ खड़े होते हैं कि वे एक देवी के स्वागत के लिए जहां अपने घर को नया बनाने की होड़ में लगे रहते हैं तो वहीं दूसरी ओर घर में पुराने हो चुके देवी-देवताओं के पोस्टर कचड़े के ढेर में फंेक रहे है।
इन कचरे के पास मवेशी अपना गोबर करते हैं, ऐसी जगहों पर हिंदू धर्म के देवी-देवताओं के प्रतिमूर्ति व वस्त्र पड़े रहना शहरवासियों की श्रद्धा को बता रहे हैं। ऐसी नहीं कि लोगों को इस बारे में जानकारी नहीं हैं पर वे इन्हें रद्दी व बेकार का सामान मानकर अन्य कबाड़ वस्तुओं की श्रेणी में ही गिनते हैं। बहुत कम लोग ऐसे हैं जो अपनी श्रद्धा का परिचय देते हैं और इन दैवीय वस्तुओं को पूरे भक्ति-भाव से विसर्जन करते हैं। धर्म व त्यौहारों के नाम भगवान की वस्तुओं क ो इधर-उधर फेंकने के इस कृत्य पर महर्षी स्कूल के वाईस प्रिंसपल अश्विनी सिंह कहते हैं कि देव का नाम तक पूजनीय होता है ऐसे में उनके पोस्टर व वस्त्रों के साथ इस प्रकार कृत्य वास्तव में हमारी संस्कृति व हमारी आस्था को कलंकित करता है।
< < यह रिपोर्ट मेरे द्वारा नही लिखी गई है । इसे मैंने दैनिक भास्कर से लिया है । इस अखबार की यह रिपोर्ट हमे सोचने को मजबूर करती है की हम क्या कर रहे है । रिपोर्ट के लिए दैनिक भास्कर को पुनः एक बार और धन्यवाद > >
बिग हिंदू

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