अन्ना के आंदोलन परकहा कि इस तरह के विरोध प्रदर्शन से खतरनाक परंपरा की शुरुआत होगी जो हमारी संसदीय प्रणाली को कमजोर करेगा। भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए नियम कानून जरूरी हैं। लोकसभा से निकलने के बाद संसद परिसर में जब राहुल गांधी से पूछा गया कि आप इतने दिन इस मुद्दे पर क्यों चुप थे? तो उन्होंने जवाब दिया कि मैं सोच समझकर बोलता हूं।
शुक्रवार, 26 अगस्त 2011
आखिरकार युवराज ने मुंह खोला
अन्ना के आंदोलन परकहा कि इस तरह के विरोध प्रदर्शन से खतरनाक परंपरा की शुरुआत होगी जो हमारी संसदीय प्रणाली को कमजोर करेगा। भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए नियम कानून जरूरी हैं। लोकसभा से निकलने के बाद संसद परिसर में जब राहुल गांधी से पूछा गया कि आप इतने दिन इस मुद्दे पर क्यों चुप थे? तो उन्होंने जवाब दिया कि मैं सोच समझकर बोलता हूं।
गुरुवार, 25 अगस्त 2011
एक र्इमानदार पीएम को यह करना चाहिए
सोमवार, 22 अगस्त 2011
सही में राहुल गांधी कहां हैं
रविवार, 21 अगस्त 2011
लोकतंत्र की दुश्मन है कांग्रेस
गुरुवार, 18 अगस्त 2011
वंदे मातरम

(संस्कृत मूल गीत)
वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलां मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।१।।
शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदां वरदां मातरम् । वन्दे मातरम् ।।२।।
कोटि-कोटि (सप्तकोटि) कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि (द्विसप्तकोटि) भुजैर्धृत खरकरवाले,
अबला केनो माँ एतो बॉले (के बॉले माँ तुमि अबले),
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।३।।
तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वं हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम् ।।४।।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।५।।
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्,
धरणीं भरणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।६।।>
यह भी जानें.
स्वाधीनता संग्राम में निर्णायक भागीदारी के बावजूद जब राष्ट्र-गान के चयन की बात आयी तो
वंदे मातरम
के स्थान पर सन् १९११ में इंग्लैण्ड से भारत आये जार्ज पंचम् की प्रशस्ति में रवीन्द्र नाथ ठाकुर द्वारा लिखे व गाये गये गीत जण-गण-मण अधिनायक जय हे को वरीयता दी गयी। इसकी वजह यही थी कि कुछ मुसलमानों को ‘वन्दे मातरम्’ गाने पर आपत्ति थी, क्योंकि इस गाने में देवी दुर्गा को राष्ट्र के रूप में देखा गया है। इसके अलावा उनका यह भी मानना था कि यह गीत जिस ‘आनन्द मठ’ उपन्यास से लिया गया है वह मुसलमानों के खिलाफ लिखा गया है। इन आपत्तियों के मद्देनजर सन् १९३७ में कांग्रेस ने इस विवाद पर गहरा चिन्तन किया। जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में गठित समिति जिसमें मौलाना अब्दुल कलाम आजाद भी शामिल थे, ने पाया कि इस गीत के शुरूआती दो पद तो मातृभूमि की प्रशंसा में कहे गए हैं, लेकिन बाद के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का जिक्र होने लगता है; इसलिये यह निर्णय लिया गया कि इस गीत के शुरुआती दो पदों को ही राष्ट्र-गीत के रूप में प्रयुक्त किया जायेगा। इस तरह गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर के जन-गण-मन अधिनायक जय हे को यथावत राष्ट्रगान ही रहने दिया गया और मोहम्मद अल्लामा इकबाल के कौमी तराने सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा के साथ बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा रचित प्रारम्भिक दो पदों का गीत वन्दे मातरम् राष्ट्रगीत स्वीकृत हुआ।
भारत माता की जय. वंदे मातरम
बुधवार, 17 अगस्त 2011
यह सरकार और तीन साल नहीं...
नीरेंद्र नागर
तब इंदिरा गांधी सत्ता में थीं, आज सोनिया गांधी हैं। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और सोनिया गांधी प्रधानमंत्री की बॉस हैं यानी सुपर प्रधानमंत्री। आप और हम पीएम का मतलब प्राइम मिनिस्टर समझते हैं। लेकिन सोनिया गांधी के लिए पीएम का मतलब है पर्सनल मैनेजर। पुराने ज़माने में होता था कि जब तक बाबा बड़ा न हो जाए तब तक राजपाट की हिफाज़त एक वफादार नौकर करता था। अब भी कोशिश यही है कि बाबा राहुल गांधी के बाल थोड़े पक जाएं और वह वोटरों के सामने अगले प्रधानमंत्री के तौर पर पेश किए जाने लायक हो जाएं, तब तक मनमोहन सिंह पीएम पद पर बने रहें।
आज अन्ना हज़ारे के अनशन के दिन मैं यह मनमोहन पुराण लेकर क्यों बैठा हूं? इसलिए कि मन में बहुत गुस्सा है। पहले भी कई दफे इस तरह गुस्सा आया था। 1975 में जब इमर्जेंसी लगाकर सारे देश को बंदी बना दिया गया था, 1984 में जब आंध्र प्रदेश में एन. टी. रामाराव की बहुमत वाली सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था, फिर उसी साल जब इंदिरा गांधी के हत्या के बाद सिखों को चुन-चुनकर मारा गया था, 1992 में जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी, 2002 में जब गुजरात के गोधरा स्टेशन में ट्रेन जलाई गई और उसके बाद राज्य सरकार की देखरेख में हज़ारों लोग दंगों में मारे गए थे।
आज फिर गुस्सा आ रहा है। गुस्सा मनमोहन सिंह पर नहीं है। (कठपुतली पर गुस्सा करके क्या कर लोगे!) गुस्सा मुझे पूरी कांग्रेस पार्टी पर आ रहा है जिसने तय कर रखा है कि वह करप्ट लोगों को फटाफट सज़ा दिलवानेवाला लोकपाल बिल कभी नहीं लाएगी। उसकी पूरी कोशिश है कि एक ढीलाढाला-सा बिल आ जाए जिसमें न प्रधानमंत्री फंसें न सांसद और न ही निचले स्तर के सरकारी कर्मचारी। इस पिलपिले बिल को लाने से उसकी मंशा साफ हो जाती है और आज अन्ना हजारे को अनशन से पहले गिरफ्तार करने से भी स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेसियों की वफादारी किसके साथ है – भ्रष्टाचारियों के साथ।
कांग्रेस भ्रष्टाचारियों के साथ और जनता अन्ना हज़ारे के साथ। सबको नज़र आ रहा है लेकिन कांग्रेस को नहीं दिख रहा है। उसके नेता चिदंबरम, कपिल सिब्बल और अंबिका सोनी ने आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस सारे मामले को ऐसा रूप देने की कोशिश की कि यह बस एक आदमी की ज़िद है जो कह रहा है कि मेरा वाला बिल पास करो वरना मैं अनशन करता हूं। मेरी समझ में यह मामले को उलझाने की बहुत बड़ी चाल है। आखिर अन्ना किसी बात की जिद कर रहे हैं? क्या वह जिस बिल की मांग कर रहे हैं, उससे उनको कोई राजगद्दी मिल जाएगी? अगर अन्ना के बिल में कोई कमी है तो आज तक सरकार के किसी भी मंत्री ने क्यों नहीं कहा कि इस बिल में यह कमी है। और जब कमी नहीं है तो उसको पास करने में क्या दिक्कत है?
ऐसा नहीं कि सरकार और कांग्रेस पार्टी को आज करप्शन के खिलाफ उमड़ा जनाक्रोश नहीं दिख रहा। उन्हें सब दिख रहा है लेकिन उनको यह भी पता है कि चुनाव अभी तीन साल दूर हैं। लेकिन जैसा कि लोहिया ने कहा था – ज़िंदा कौमें पांच साल तक इंतज़ार नहीं करतीं।
आज के दिन मेरे मन में यही विचार आ रहा है – यह सरकार और तीन साल नहीं चलनी चाहिए। यह दादागीरी और तीन साल नहीं चलनी चाहिए। यह तानाशाही और नहीं चलनी चाहिए.