रविवार, 27 नवंबर 2011
कसाब सरकारी दामाद कब तक
रविवार, 30 अक्टूबर 2011
सोमवार, 10 अक्टूबर 2011
कार्टून का मतलब बताओ तो जानें
रविवार, 25 सितंबर 2011
7600 हिटस के लिए धन्यवाद
सोमवार, 19 सितंबर 2011
नरेंद्र मोदी ने ठीक किया
बुधवार, 7 सितंबर 2011
माफ कर दें मनमोहन
कांग्रेस के नरम रवैये का नतीजा है आतंकी हमला
कॉमन मैन की कार्रवाई
शुक्रवार, 26 अगस्त 2011
आखिरकार युवराज ने मुंह खोला
अन्ना के आंदोलन परकहा कि इस तरह के विरोध प्रदर्शन से खतरनाक परंपरा की शुरुआत होगी जो हमारी संसदीय प्रणाली को कमजोर करेगा। भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए नियम कानून जरूरी हैं। लोकसभा से निकलने के बाद संसद परिसर में जब राहुल गांधी से पूछा गया कि आप इतने दिन इस मुद्दे पर क्यों चुप थे? तो उन्होंने जवाब दिया कि मैं सोच समझकर बोलता हूं।
गुरुवार, 25 अगस्त 2011
एक र्इमानदार पीएम को यह करना चाहिए
सोमवार, 22 अगस्त 2011
सही में राहुल गांधी कहां हैं
रविवार, 21 अगस्त 2011
लोकतंत्र की दुश्मन है कांग्रेस
गुरुवार, 18 अगस्त 2011
वंदे मातरम

(संस्कृत मूल गीत)
वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलां मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।१।।
शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदां वरदां मातरम् । वन्दे मातरम् ।।२।।
कोटि-कोटि (सप्तकोटि) कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि (द्विसप्तकोटि) भुजैर्धृत खरकरवाले,
अबला केनो माँ एतो बॉले (के बॉले माँ तुमि अबले),
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।३।।
तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वं हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम् ।।४।।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।५।।
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्,
धरणीं भरणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।६।।>
यह भी जानें.
स्वाधीनता संग्राम में निर्णायक भागीदारी के बावजूद जब राष्ट्र-गान के चयन की बात आयी तो
वंदे मातरम
के स्थान पर सन् १९११ में इंग्लैण्ड से भारत आये जार्ज पंचम् की प्रशस्ति में रवीन्द्र नाथ ठाकुर द्वारा लिखे व गाये गये गीत जण-गण-मण अधिनायक जय हे को वरीयता दी गयी। इसकी वजह यही थी कि कुछ मुसलमानों को ‘वन्दे मातरम्’ गाने पर आपत्ति थी, क्योंकि इस गाने में देवी दुर्गा को राष्ट्र के रूप में देखा गया है। इसके अलावा उनका यह भी मानना था कि यह गीत जिस ‘आनन्द मठ’ उपन्यास से लिया गया है वह मुसलमानों के खिलाफ लिखा गया है। इन आपत्तियों के मद्देनजर सन् १९३७ में कांग्रेस ने इस विवाद पर गहरा चिन्तन किया। जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में गठित समिति जिसमें मौलाना अब्दुल कलाम आजाद भी शामिल थे, ने पाया कि इस गीत के शुरूआती दो पद तो मातृभूमि की प्रशंसा में कहे गए हैं, लेकिन बाद के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का जिक्र होने लगता है; इसलिये यह निर्णय लिया गया कि इस गीत के शुरुआती दो पदों को ही राष्ट्र-गीत के रूप में प्रयुक्त किया जायेगा। इस तरह गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर के जन-गण-मन अधिनायक जय हे को यथावत राष्ट्रगान ही रहने दिया गया और मोहम्मद अल्लामा इकबाल के कौमी तराने सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा के साथ बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा रचित प्रारम्भिक दो पदों का गीत वन्दे मातरम् राष्ट्रगीत स्वीकृत हुआ।
भारत माता की जय. वंदे मातरम
बुधवार, 17 अगस्त 2011
यह सरकार और तीन साल नहीं...
नीरेंद्र नागर
तब इंदिरा गांधी सत्ता में थीं, आज सोनिया गांधी हैं। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और सोनिया गांधी प्रधानमंत्री की बॉस हैं यानी सुपर प्रधानमंत्री। आप और हम पीएम का मतलब प्राइम मिनिस्टर समझते हैं। लेकिन सोनिया गांधी के लिए पीएम का मतलब है पर्सनल मैनेजर। पुराने ज़माने में होता था कि जब तक बाबा बड़ा न हो जाए तब तक राजपाट की हिफाज़त एक वफादार नौकर करता था। अब भी कोशिश यही है कि बाबा राहुल गांधी के बाल थोड़े पक जाएं और वह वोटरों के सामने अगले प्रधानमंत्री के तौर पर पेश किए जाने लायक हो जाएं, तब तक मनमोहन सिंह पीएम पद पर बने रहें।
आज अन्ना हज़ारे के अनशन के दिन मैं यह मनमोहन पुराण लेकर क्यों बैठा हूं? इसलिए कि मन में बहुत गुस्सा है। पहले भी कई दफे इस तरह गुस्सा आया था। 1975 में जब इमर्जेंसी लगाकर सारे देश को बंदी बना दिया गया था, 1984 में जब आंध्र प्रदेश में एन. टी. रामाराव की बहुमत वाली सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था, फिर उसी साल जब इंदिरा गांधी के हत्या के बाद सिखों को चुन-चुनकर मारा गया था, 1992 में जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी, 2002 में जब गुजरात के गोधरा स्टेशन में ट्रेन जलाई गई और उसके बाद राज्य सरकार की देखरेख में हज़ारों लोग दंगों में मारे गए थे।
आज फिर गुस्सा आ रहा है। गुस्सा मनमोहन सिंह पर नहीं है। (कठपुतली पर गुस्सा करके क्या कर लोगे!) गुस्सा मुझे पूरी कांग्रेस पार्टी पर आ रहा है जिसने तय कर रखा है कि वह करप्ट लोगों को फटाफट सज़ा दिलवानेवाला लोकपाल बिल कभी नहीं लाएगी। उसकी पूरी कोशिश है कि एक ढीलाढाला-सा बिल आ जाए जिसमें न प्रधानमंत्री फंसें न सांसद और न ही निचले स्तर के सरकारी कर्मचारी। इस पिलपिले बिल को लाने से उसकी मंशा साफ हो जाती है और आज अन्ना हजारे को अनशन से पहले गिरफ्तार करने से भी स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेसियों की वफादारी किसके साथ है – भ्रष्टाचारियों के साथ।
कांग्रेस भ्रष्टाचारियों के साथ और जनता अन्ना हज़ारे के साथ। सबको नज़र आ रहा है लेकिन कांग्रेस को नहीं दिख रहा है। उसके नेता चिदंबरम, कपिल सिब्बल और अंबिका सोनी ने आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस सारे मामले को ऐसा रूप देने की कोशिश की कि यह बस एक आदमी की ज़िद है जो कह रहा है कि मेरा वाला बिल पास करो वरना मैं अनशन करता हूं। मेरी समझ में यह मामले को उलझाने की बहुत बड़ी चाल है। आखिर अन्ना किसी बात की जिद कर रहे हैं? क्या वह जिस बिल की मांग कर रहे हैं, उससे उनको कोई राजगद्दी मिल जाएगी? अगर अन्ना के बिल में कोई कमी है तो आज तक सरकार के किसी भी मंत्री ने क्यों नहीं कहा कि इस बिल में यह कमी है। और जब कमी नहीं है तो उसको पास करने में क्या दिक्कत है?
ऐसा नहीं कि सरकार और कांग्रेस पार्टी को आज करप्शन के खिलाफ उमड़ा जनाक्रोश नहीं दिख रहा। उन्हें सब दिख रहा है लेकिन उनको यह भी पता है कि चुनाव अभी तीन साल दूर हैं। लेकिन जैसा कि लोहिया ने कहा था – ज़िंदा कौमें पांच साल तक इंतज़ार नहीं करतीं।
आज के दिन मेरे मन में यही विचार आ रहा है – यह सरकार और तीन साल नहीं चलनी चाहिए। यह दादागीरी और तीन साल नहीं चलनी चाहिए। यह तानाशाही और नहीं चलनी चाहिए.
नहीं बदल सकता है कांग्रेस का चरित्र
बुधवार, 27 जुलाई 2011
पाकिस्तान क हिना "बम'
शनिवार, 9 जुलाई 2011
राहुल गांधी की किसान महापंचायत-1
राहुल गांधी ने यूपी में तीन दिनों तक पदयात्रा की. किसानों से मिले, उनकी समस्याएं सुनीं, उनके सवालों पर गौर फरमाया-इन उपक्रमों के बाद कहा, हम आपके साथ हैं. चौथे दिन किसान महापंचायत बुलायी जाती है, चार मंच बनाये जाते हैं, जनाब किसानों से मुखातिब होते हैं. तरह-तरह के आश्वासन दिये जाते हैं. मीडिया कहती है कि "" आजादी के 60 वर्षों में पहली बार किसी नेता ने शिद्दत के साथ किसानों के लिए सोची है, लकिन वह (मीडिया) इस बात को नहीं बताती है कि इन 60 वर्षों में 45 साल से भी ज्यादा इसी कांग्रेस का राज रहा है. यह तो है कि किसानों की सोची जा रही है, पर उसका मकसद किसान कतई नहीं हैं. राहुल को मंच पर जब किसान हल भेंट करते हैं तो वह इशारों से पूछते हैं-इसे पकड़ा कैसे जाता है. यानी इतिहास-भूगोल जाने बिना किसानों का उद्धार किये जाने की तैयारी है. इस हल प्रकरण ने बिहार में 70-80 के दशक में घटित घटना की याद दिला दी. तब हुआ यों था कि एक बड़े नेता (अब दिवंगत हो चुके हैं और देश के प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं) बिहार के दौरे पर आये. किसानों से मिलने उनके खेतों में गये. मिर्च की फसल का समय था. वहां उन्होंने हरी व लाल मिर्च देखी. पूछा इसमें महंगी कौन है. किसानों ने कहा-लाल मिर्च. इस पर महोदय का जवाब था-तब आप केवल लाल मिर्च की ही खेती क्यों नहीं करते हैं. कहने का मतलब कि कांग्रेस से किसी भी तरह की बेहतरी की उम्मीद करना अलकायदा का जेहाद न करने जैसा ही है. इस महापंचायत के बहाने एक और चीज हुई. पूरे उत्तर प्रदेश के सांसदों व दिग्गज नेताओं को एक साथ लया गया व अगले साल होनेवाले विधानसभा चुनाव के लिए अनौपचारिक अभियान की शुरुआत कर दी गयी. सो यह कहना कि पूरी कवायद किसानों के लिए है, आशाओं के अंधेरे कुएं में कूदने जैसा ही है. यह पूरी तरह से युवराज वाया कांग्रेस की राजनीतिक वासना है.
(दूसरी किस्त में कल पढ़ें -देश के किसानों का हाल व यूपीए का रवैया)
मंगलवार, 28 जून 2011
सोनिया गांधी की यात्रा का खर्च 1850 करोड़
यूथ अगेंस्ट कŸरप्शन के मेल पर आधारित जानकारी । अपनी टिपण्णी निचे के मेल पर भी भेजे ।
info@youthagainstcorruption.net
सोमवार, 13 जून 2011
इन सवालो के जवाब दें
२। आज चुनाव हुए तो कांग्रेस को आप वोट देना चाहेंगे ।३। अगर मनमोहन ईमानदार हैं, सोनिया ईमानदार हैं, राहु ल ईमानदार हैं तो बेईमान कौन है।4। कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के मंत्री एक-एक कर जेल जा रहे हैं। ऐसे में सरकार पर विश्वास करना चाहिए।5. कांग्रेस व भाजपा में भरोसेमंद कौन है।इन सवालो के जवाब देश को चाहिए. क्या पाठक इन सवालो का उत्तर देकर देश का मूड बताने की कृपा करेंगे. आपके उत्तर का इंतजार है.
रविवार, 12 जून 2011
बाबा रामदेव मामले में बुद्धिजीवियों से सवाल
भारत में एक बात है जो सदियों से इसका पीछा नहीं छोड़ रही है। आप निर्जीव पड़े रहें, आपके सामने दुनिया के कुकर्म होते रहें और आप कुछ न करें तो कोई आपसे यह पूछने नहीं आयेगा कि आपने ऐसा क्यों किया, लेकिन जैसे ही आप मुख्यधारा में आकर समाज के लिए कुछ बेहतर करने की सोचेंगे तो लोग आलोचनाओं की तलवार लेकर पीछे पड़ जायेंगे. यह क्यों किया, यह आपको नहीं करना चाहिए था आदि-आदि. हद तो यह है कि इसमें कांग्रेस व इसकी पिछलग्गू पार्टियों के साथ इसके पोसे-पाले पत्रकार तक शामिल हो जाते हैं. ताजा उदाहरण बाबा रामदेव का है. बाबा ने नौवें दिन अपना अनशन तोड़ दिया. उनका अनशन काला धन वापस लेन व भ्रïटाचार के विरोध में था. देश के स्व कथित बुद्धिजीवी संविधान द्वारा दिये गये वाक स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग करते हुए बाबा से पूछ रहे हैं-आप आंदोलन छोड़ कर भागे क्यों.-आपने महिलाओं ने कपड़े पहन कर पुलिस से अपनी जान क्यों बचायी.-अनशन क्यों तोड़ा. ऐसे सवाल करनेवालो से एक सवाल -क्या आपको ऐसे सवाल पूछने का नैतिक हक है. बाबा रामदेव तो नौ दिनों तक अनशन पर रहे पर एसी कमरों में बैठ कर पांच टाइम नाश्ता-भोजन करनेवाले अन्न के दुश्मन ऐसे पाखंडी बुद्धिजीवियों ने देश के लिए क्या किया है. क्या उन्होंने देश के लिए पांच मिनट का भी समय दिया है. खुद पांच मिनट समय नहीं दे सकते और दूसरों से उम्मीद करते हैं कि वह उनकी ज्ञान वासना के लिए शहीद हो जाये. यह कौन-सी बात हुई. वर्तमान में काला धन व भ्रटाचार के मुद्दे पर प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि उनसे कुछ भी नहीं होनेवाला है (संक्षेप में समझें की सोनिया की कांग्रेस कंपनी उन्हें कुछ करने नहीं देगी.) ऐसे में बाबा अगर काला धन व भ्रटाचार के मामले में कोई आंदोलन या विचार देश तक पहुंचाना चाहते हैं तो उनकी प्रशंसा होनी चाहिए या आलोचना. देश में इन दोनों मसलो का हाल पत्रकारिता जगत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर सुरेंद्र किशोर ने प्रभात खबर के 30 मई, 2011 के अंक अपने कॉलम कानोंकान में लिखा है-(आज इस देश मे¨ कितना कड़ा लोकपाल विधेयक बनाने की जरूरत है, यह बात इसी से साबित होती है कि टू जी स्पेक्टम घोटाले मे¨ ए राजा तभी जेल जा सके, जब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हे¨ ऐसा करने के लिए बाध्य कर दिया. ए राजा के खिलाफ डॉ सुब्रहमण्यम स्वामी का शिकायत पत्र उससे पहले दो साल तक प्रधानम¨त्री सचिवालय मे¨ पड़ा रहा था.)ऐसी सरकार से क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि वह देश के लिए बेहतर सोचेगी. कांग्रेस में बड़ी-बड़ी चर्चा होती है-इंटर्नशिप कर रहे युवराज सबकुछ ठीक कर देंगे. लोग पूछ रहे हैं-इस संजीदा मामले में वे कहां हैं. कहां है उनका देश के प्रति जज्बा. बाबा व अन्ना हजारे के आंदोल नों ने एक बात तो की है-देश जाग गया है और इसका रिजल्ट आनेवाले समय में दिखेगा.
गुरुवार, 9 जून 2011
कांग्रेस का असली चेहरा

रामलीला मैदान की कार्रवाई को केंद्र के दमनकारी रवैये की बानगी मान रहे हैं ए. सूर्यप्रकाश
रविवार, 5 जून 2011
बाबा रामदेव प्रकरण से उठते सवाल
बाबा रामदेव को रामलीला मैदान से हटा कर केद्र की कांग्रेस सरकार ने अपनी मानसिकता व मंशा स्पस्त कर दी है। अन्ना हजारे को लोली पॉप दिखा कर आंदोलन के रास्ते से हटाने के बाद कांग्रेस को महसूस हुआ कि बाबा रामदेव का आंदोलन ज्यादा सशक्त है, सो उसने अपनी रंगत दिखा दी. इधर, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ईमानदार बता कर उनकी शान में कसीदे पढ़ रहे बाबा रामदेव को भी “दिव्य ज्ञान‘ की प्राप्ति हो गयी कि कांग्रेस, कांग्रेस क्यों है. अब बाबा कह रहे हैं कि उन्हें जान से मारने की साजिश थी. दरअसल , 60 से अधिक वर्षों से सत्ता का सुख भोग रहे नेहरू परिवार को आंदोलन को कुचलने व भ्रटाचार को बढ़ाने की आदत-सी पड़ गयी है. (वर्तमान में नेहरू की तीसरी पीढ़ी की सोनिया गांधी-मूल नाम सोनिया माइनो के हाथों में इस सरकार की कमान है). इस मुद्दे पर कुछ लिखने अथवा विशलेषण से पहले देख ले कि बाबा की मुख्य मांगें क्या थीं।
काला धन को देश की संपत्ति घोषित किया जाये।
विदेशों में जमा बेहिसाब काला धन वापस लाया जाये।
ऐसे लोगों के लिए मृत्युदंड की सजा हो।
लोगों को उनकी भाषा में पढ़ाया जाये ।
उनकी मांगों पर सरकार (कांग्रेस) ने क्या किया।
सब मांगों में हां-में-हां मिलायी।
आश्वासन-पर-आश्वासन दिया पर कब तक क्या करेंगे, बताने से परहेज किया।
रात के 2.30 बजे घुसपैठियों की भांति शिविर पर हमला कर बाबा को भक्तों सहित वहां से हटा दिया. यह सब तब हुआ, जब देश गहरी निद्रा में सो रहा था।
सोनिया-मनमोहन ने यह नहीं बताया कि दिन के उजाले में यह सब क्यों नहीं हुआ.अब जरा कांग्रेस का चरित्र व चिंतन देखें : टू जी स्पेक्टम, कॉमनवेल्थ, आदर्श सोसाइटी, सांसद रिश्वत कांड सहित घोटालो की सीरीज चला कर देश का खरबों रुपये लूटने के बाद भी इसके नेता शान से कहते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री मिस्टर क्लीन हैं. सूप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद इसके मंत्री गिरफ्तार हो रहे हैं. प्रधानमंत्री चुनावों के पहले तो कहते हैं कि हम काला धन वापस लायेंगे-ऐसे लोगो के नाम उजागर करेंगे, लेकिन जीतने के बाद सुर बदलते देर नहीं लगती-अब इन महोदय का कहना है कि यह संभव नहीं है. असल में वे कुछ कहने की स्थिति में ही नहीं हैं. देश में सबसे अधिक समय तक कांग्रेस का राज रहा है. देश में जीप घोटाले (यह नेहरू के राज में हुआ था और भारत का यह पहला घोटाला माना जाता है) से अब तक हुए घोटालो में कांग्रेस या इसके सहयोगियों की ही भूमिका रही है. ऐसे में उनसे उनके भाई-बंधुओं का नाम उजागर होने से रहा. कुल मिला कर मामला यही है कि जनता के हित की शपथ लेकर चोर-उचक्कों की चौकीदारी की जा रही है. फिर भी इस देश की मीडिया को पता नहीं किस चश्मे से मनमोहन सिंह मिस्टर क्लीन दिखते हैं. इससे शर्मनाक क्या हो सकता है कि देश की जनता त्राहि-त्राहि कर रही है और कांग्रेस महंगाई को कोई मुद्दा ही नहीं मान रही है. तिस पर से पेटोल की कीमतें सुरसा की तरह बढ़ती जा रही है. अनाज के बिना जनता दुबली हो रही है, अनाज में सट्टा-जुआ हो रहा है, महंगाई के कारण जीना मुहाल हो गया है, 10 प्रतिशत लोग पूरी अर्थव्यवस्था को बंदर की माफिक नचा रहे हैं और कांग्रेस “...हो रहा भारत निर्माण‘ के गीत गा रही है. भाजपा तो लगता है कि मुख्य विपक्षी पार्टी बन कर अपने आदर्शों तक को दफना चुकी है, देश बरबादी के कगार पर है और उसके नेता घरों व मीडिया कांफ्रेंस रूम की शोभा बढ़ा रहे हैं. कभी सड़कों पर आंदोलन कर अपनी पहचान बनानेवाली भाजपा आज सड़क से संसद तक गायब है. देश में उसके रहने व न रहने का कोई मतलब ही नहीं रह गया है. यह सही है कि अन्ना हजारे व बाबा रामदेव के आंदोलनों को जनता का पूरा समर्थन मिल रहा है, पर यह भी सही है कि अंगरेजों की बनायी व्यवस्था में उनके आंदोलन देर-सबेर दम तोड़ देंगे क्योंकि यहां की राजनीति कांग्रेस ने काफी गंदी कर दी है. अंतिम विकल्प यही है कि नेपथ्य से राजनीति को दिशा देनेवाले ये दोनों नेता मुख्यधारा में आयें व देश की बागडोर संभाले । देश इसका बेसब्री से इंतजार कर रहा है. ...... क्या उन तक एक अरब 20 करोड़ लोगों की आवाज पहुंच रही है.
सोमवार, 18 अप्रैल 2011
भरोसेमंद नेतृत्व की तलाश
शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011
क्या अन्ना ने गलती कर दी
बुधवार, 30 मार्च 2011
पाकिस्तान...एक गलती और
जीत के लिए सुभकामनाए दे
मंगलवार, 29 मार्च 2011
...दे घुमा के, भारत को शुभकामनाएं

बुधवार, 23 मार्च 2011
सच से डरे हुए शासक

मंगलवार, 22 मार्च 2011
अब तो नरेन्द्र मोदी को पहचानो
ओवन ने भाजपा और आरएसएस के कई नेताओं से बातचीत के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि मोदी आज नहीं तो कल देश की केंद्रीय राजनीति में आएंगे ही, इसलिए अमेरिका को अभी से उनसे अच्छे रिश्ते बनाना शुरू कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमेरिका को मोदी से बातचीत करनी चाहिए और हम इस दौरान उनसे मानवाधिकार हनन और 2002 के दंगों के मुद्दों पर भी अपनी बात रख पाएंगे।ओवन ने 2 नवंबर 2006 की तारीख में लिखे इस गोपनीय संदेश में कहा है, 'हालांकि अमेरिका ने गुजरात दंगों में मोदी की सक्रिय भूमिका के कारण 2005 में उनको वीजा देने से इनकार कर दिया था लेकिन मोदी की लगातार उपेक्षा करना अमेरिकी हितों के खिलाफ होगा क्योंकि अगर आनेवाले सालों में मोदी को देश की राष्ट्रीय राजनीति में प्रमुख भूमिका मिली तो अमेरिका को उनकी जरूरत पड़ेगी। इसलिए बाद में भाजपा के सामने झेंपने से अच्छा है कि हम अभी से नरेंद्र मोदी से अच्छे रिश्ते बनाना शुरू कर दें।'
गुरुवार, 17 मार्च 2011
...मन्नू जी अब माफ करिए
बुधवार, 23 फ़रवरी 2011
गोधरा....सत्यमेव जयते
