सोमवार, 20 मार्च 2023

जय श्री राम... अब दिन दूर नहीं

श्री राम मंदिर, अयोध्या के पूरे होने में अब आठ महीने ही बाकी हैं। जो कहते थे कि मंदिर वहीं बनाएंगे, पर तिथि नहीं बताएंगे। उनके लिए नरेंद्र मोदी की सरकार ने बड़ा उदाहरण दे दिया है।




रविवार, 2 मार्च 2014

पुन: स्वागत है हिंदू ह्रदय सम्राट

नरेंद्र भाई मोदी सोमवार  मुजफ्फरपुर में रैली •ो संबोधित •रने आएंगे। पिछले छह महीने •े अंदर यह दूसरा मौ•ा होगा, जब वे रैली •रने बिहार आ रहे हैं। आशा है •ि पिछली बार •ी गांधी मैदान, पटना •ी हुं•ार रैली •ी तरह उन्हें •टु अनुभव से नहीं गुजरना होगा और राज्य सर•ार सूबे •ो शर्मिंदा नहीं होने देगी। ऐसा मैं इसलिए लिख रहा हूं •ि क्यों•ि ए• पत्र•ार होने •े नाते मैं रैली में उन•ा भाषण सुनने •े लिए गया था और मेरा अनुभव •टु व पीड़ादाय• रहा था।
२८ अक्तूबर •ो हुई रैली में मैं उन्हें सुनने •े लिए गांधी मैदान गया था।  घर से नि•ला तो माहौल ठी•-ठा• था, •िंतु रैली स्थल गांधी मैदान जाते-जाते माहौल •ाफी खराब हो चु•ा था।  मेरे ए• दोस्त ने फोन •र बताया •ि भई गांधी मैदान मत जाना । इस पर मैंने उनसे पूछा •ि क्यों क्या बात हुई, चलना तो आप•ो भी था और आप ऐसी बात •र रहे हैं। इस पर उन्होंने •हा •ि पटना स्टेशन पर बम फटे हैं, टीवी पर खबर चल रही है •ि और बम मिले हैं। इस पर मैंने •हा •ि मैं तो उन्हें सुनने जाऊंगा ही। मित्र महोदय से मोबाइल पर बात •रते-•रते मैं उद्योग भवन •े समीप पहुंच गया। तभी आरबीआई छोर पर जोरदार धमा•ा हुआ और धुंए •ा ऊंचा गुबार उठा। मन थोड़ा डरा पर इरादा नहीं। मैं पैदल चलते-चलते रैली स्थल पर बनी मीडिया गैलरी त• पहुंच गया, तब शायद दो या तीन और धमा•े हुए। मीडिया गैलरी पूरी भरी थी सो मैंने तय •िया •ि नई गांधी मूर्ति •े पास खड़े हो•र उन•ा भाषण सुना जाए। रैली में आए लोगों में सुरक्षा इंतजामों •ो ले•र गुस्सा तो था, पर फट रहे बमों •े बीच वे अंतिम त• बने रहे क्यों•ि मेरी याद •े हिसाब से मोदी ही अंतिम वक्ता थे। मैंने उन•ा पूरा भाषण सुना और फिर पैदल अपने अखबार •े दफ्तर पहुंचा। साथियों •ो अपनी लाइव रिपोर्ट बताई। रैली •ा सार बताया। हालां•ि तब त• रैली में आतं•ी घटना •ी बात सामने नहीं थी ले•िन अगले घंटे भर में यह साफ हो गया •ि रैली व उस•े आस-पास फटनेवाले बम शरारती तत्वों •े सुतली बम नहीं बल्•ि आतं•ियों •े बम थे। इस खबर ने पूरे पटना •ो सन्न •र रख दिया •ि राज्य •ी नीतीश सर•ार आखिर •र क्या रही थी।  फिर तो रैली •े बाद भी गांधी मैदान में दो-तीन दिनों त• बम मिलते रहे व राज्य सर•ार •ी नामा•ियों •े •ारण सूबे •ी जनता शर्मिंदा होती रही।
खैर, यह सब पुरानी बातें हैं। आशा है •ि मोदी जी देश व बिहार •ो ले•र खा•ा प्रस्तुत •रेंगे व यहां से ४० सीटों पर अजेय जीत •ा आशीर्वाद ले•र जाएंगे।  देश व राज्य •ो •थित सुशासन से मुक्ति दिलाना बहुत जरूरी हो गया है। ऐसे में मोदी जी ही देश •ी पहली व आखिरी उम्मीद हैं।

शनिवार, 11 जनवरी 2014

अच्छे दिन तो आ ही रहे हैं

मोदी ने कहा है कि देश के अच्छे दिन आनेवाले हैं। सच ही कहा है चार राज्यों के विधनसभा चुनावों में कांग्रेस को जनता उसका हिसाब किताब दिखा चुकी है और रही सही कसर केजरीवाल की आप ने पूरी कर दी है। अब जो हालात बने हैं उसमें तो तय हैं कि देश में अब डमी सरकार नहीं चलेगी। न ही कोई इंटर्न नेता देश का प्रधानमंत्री बनने की सोचेगा।

गुरुवार, 7 नवंबर 2013

छठ तो ठीक है, पर गंगा को क्यों भूले

रोहित कुमार सिंह
छठ बिहारियों के लिए कितना महत्वपूर्ण है, यह बताना शायद समय बरबाद करने
जैसा है. बिहार का यह पहला व आखिरी लोकपर्व है जो तमाम तरह के बदलावों के
बावजूद अपने संपूर्ण आदि रूप में है. यानी सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक;
किसी तरह का बदलाव इसे प्रभावित नहीं कर पाया. गीतों की पवित्नता से लेकर
आस्था तक सबकुछ अक्ष़्क्षुण है लेकिन एक बात जो बदल गयी वह यह है कि हमने
अपनी निदयों की पवित्नता का ध्यान नहीं रखा. नतीजा जिस गंगा घाट पर छठ
करने को महान धार्मिक कृत्य बताया गया था, आज गंगा घाटों पर गंगा से
ज्यादा गंदगी दिखती है. गंगा की जमीन पर खेती हो रही है, घर (अपार्टमेंट)
बन रहे हैं, बची कसर हम प्लास्टिक, प्लास्टर ऑफ पेरिस व वैसी चीजें गंगा
में फेंक कर पूरी कर रहे हैं, जो सदियों में नष्ट नहीं होती हैं.
दो दिनों की गंगा
लोगों को गंगा अब दो ही दिन याद आती है एक; जब छठ करने के लिए गंगा जल
लाना हो तब या फिर अर्घ देने के वहां जाना हो तब. दूसरा; तब जब किसी
परजिन की अंतेष्टि उसके तट पर करनी हो. पिछले साल देश स्तर का एक आंकड़ा आया
है कि गंगा को गंदा करने (मकसद सफाई था) के नाम पर दो दशकों (लगभग 20
साल) में हजारों करोड़ रु पये नेताओं, इंजीनियरों, ठेकेदारों आदि की जेब
में चले गये. .और इन वर्षो में गंगा की क्या हालत हुई किसी को बताने की
जरूरत नहीं है.
खुद ही बरबाद कर रहे विरासत
मेरे एक मुसलिम मित्न ने मुझसे कहा कि अगर किसी धर्म या समुदाय की
सांस्कृतिक धरोहर, परंपरा या विरासत आदि बरबाद होती है तो उसके लिए वह
स्वयं जिम्मेदार होता है. गंगा की ताजा हालत के संदर्भ में मुङो उसकी यह
बात 100 प्रतिशत सही लगती है. जरा सोचिए जिसके माथे गंगा की सफाई का
जिम्मा रहा होगा, उनमें 90 प्रतिशत तो हिंदू ही रहे होंगे. लेकिन उन
लोगों ने हजारों करोड़ हजम कर गंगा को नाला बनने के लिए उसके हाल पर छोड़
दिया.
एक कोशिश गंगा के नाम
आज गुरुवार है व तारीख है 7 नवंबर, 2013. शुक्रवार की शाम हम अपने परजिनों के साथ
छठ मैया को अर्घ देने के लिए गंगा घाटों पर जरूर जायेंगे. क्या हम हिंदू
होने के नाते कुछ चीजें कर सकते हैं. मसलन, क्या छठ के दिन हम यह प्रण
लेंगे कि हम निदयों में पॉलीथीन, प्लास्टर ऑफ पेरिस आदि नहीं डालेंगे,
गंगा को गंदा करने का कोई काम नहीं करेंगे. विश्वास मानिए
खुद से की गयी पहल ही गंगा को ‘गंगा मैया’ बना सकती है. सदियों से जिसने
हमारी पीढ़यिों का पोषण किया है उसके लिए तो हम इतना कर ही सकते हैं. आप
एक साल ऐसा करिए, यकीनन अगले साल आपको फर्क जरूर दिखेगा.
सभी दोस्तों को छठ पर्व की शुभकामनाएं व बधाईयां. सभी पर भगवान भास्कर व
छठ मैया की कृपा बनी रहे.

मंगलवार, 5 नवंबर 2013

पटना की रैली में मोदी शब्दश:

भारत माता की जय. भाजपा की यह महारैली नहीं है. यह तो भारत की महाशक्ति का अनुष्ठान है. वीर कुंवर सिंह के धरती के प्रणाम. देश में कउनो परिवर्तन बिहार के माटी के बिना संभव नइखे. भारत के जो स्वर्णिम इतिहास बा उ पूरा के पूरा बिहार से बा. चाहे नंद वंश के काल होखे, मौर्य वंश के काल होखे या गुप्त वंश के काल.
बिहार ओहे भूमि हई जहां सूर्य के देव के रूप में पूजा होव हइ. सूर्योदय के पूजा होव हइ, सूर्यास्त के पूजा होव हइ. बिहार के लोग अवसरवादी न होखेला, कुछ अपवाद के छोड़ के. मैं जानता हूं आप क्या सुनना चाहते हैं.
बिहार क समस्या कर जड़ सीमांचल छइ.पूरा मिथिलांचल बाढ़ से त्रस्त रहइ छइ, कुसहा कर समस्या कर समाधान हो जइतइ त बिहार खुशहाल भ-जैतइ.
भाइयों और बहनों, अगर रामायण काल की याद करें तो माता सीता की याद आती है. महाभारत काल की याद करें तो कर्ण की याद आती है. गुप्तकाल में चंद्रगुप्त की राजनीति प्रेरणा देती है. वैशाली का गणतंत्र भी याद आता है. आज राजा अशोक के बाद कोई सम्राट नजर नहीं आता. पाटलिपुत्र में पटना की गली-गली याद आती है. नालंदा की बात करें तो विक्रमशिला और..की याद आती है.
    भाइयों और बहनों, देश की आजादी के दो पड़ाव हुए. पहला गांधी का चंपारण सत्याग्रह और दूसरा गुजरात में डांडी यात्र.
    ये हुंकार हिंदुस्तान के करोड़ों लोगों की है, जो बिहार से उठा है. ये सीता माता की भूमि है और मैं जब स्मरण करता हूं- जब माता सीता का अपहरण हुआ था तो सारे वानर उन्हें खोजने चले थे. उनको कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. कहां जाये, कैसे जाये, कैसे खोजे. सभी अधर में थे. तभी जामवंत की नजर हनुमान पर गयी. जामवंत ने हुनमान से उनके पूर्वजों की शक्ति का एहसास कराया और कहा- पवन तनय बल पवन समाना, काज चुप साधि रहेहु बलवाना. ये हुंकार रैली भी यही मंत्र है. देश हुंकार करना चाहता है. देश को प्रेरणा देने का काम बिहार की धरती से हो रहा है. बिहार की विशेषता है कि जब-जब देश को इसकी जरूरत पड़ी, बिहार ने दिया है. गौतम बुद्ध की जरूरत थी तो बुद्ध ने दिया, महावीर की जरूरत थी तो महावीर ने दिया, गुरु गोविंद सिंह की जरूरत थी तो गुरु गोविंद सिंह को दिया. जब देश भ्रष्टाचार में डूब रहा था,तब यही बिहार है,जिसने जय प्रकाश नारायण को दिया था. भाइयों और बहनों मैं भाग्यशाली नहीं हूं, जिसे जेपी की उंगली पकड़ने का मौका मिला, लेकिन मैं अपने आप को भाग्यशाली मानता हूं कि मुङो उनकी चरणों में अंगूठे के पास बैठकर सीखने वालों के साथ काम करने और सीखने को मिला है. यहां पर हमारे मित्र मुख्यमंत्री हैं (नीतीश का नाम लिये बिना). यहां के सीएम हमारे मित्र हैं. मेरे जानने वालों ने मुझसे पूछा आपके मित्र ने आपको क्यों छोड़ दिया? मैंने कहा कि जो जेपी को छोड़ सकता है, वो बीजेपी को क्यों नहीं छोड़ सकता. भाइयों और बहनों राम मनोहर लोहिया ने देश को कांग्रेस से छुड़ाने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. अपना जीवन दे दिया, लेकिन उनके चेलों ने क्या किया, उनकी पीठ पर खंजर घोपा है. जयप्रकाश और लोहिया की आत्मा उन्हें कभी माफ नहीं करेगी. 2006-07 की घटना है. हमारे मित्र मुख्यमंत्री (नीतीश कुमार) गुजरात आये थे. कथा सुनोगे ? ( कार्यकर्ताओं की आवाज आयी- सुनेंगे), तो चलो ठीक है.. हमारे मित्र मुख्यमंत्री शादी समारोह में आये, हम भी गये थे. एक टेबल पर खाना आया. उन्हें इतना खिलाया-ढोकला खिलाया, गुजराती दाल और गुजराती कढ़ी खिलायी,             कई तरह की मिठाइयां खिलायी.                 पेट और मन उनका दोनों भर गया. मेहमान नवाजी करना हमारे देश की परंपरा है भई.
    सार्वजनिक जीवन के चरित्र होते हैं. लालू प्रसाद मुङो गाली देने का कोई मौका नहीं छोड़ते. कहते थे मोदी को पीएम बनने नहीं दूंगा. लालू जी की अकस्मात तबीयत बिगड़ी. मैंने लालू जी को फोन किया. उनका हाल-चाल पूछा. मैंने मीडिया को कुछ नहीं बताया, मैंने सोचा पर्सनल बात है. इसको मीडिया को क्या बतायी जाये. पर लालू जी ने मीडिया को बुलाया. मीडिया से उन्होंने कहा कि मैं जिसको गाली देता हूं, देखो वो मुङो फोन करता है. लालू जी यदुवंश के राजा कृष्ण द्वारिका में ही बसे थे. आपको कुछ हो जाये तो हमारी चिंता स्वाभाविक है. मैं द्वारिका से आशीर्वाद लेकर आया हूं. अब आपकी (यदुवंशी समाज) चिंता करने का जिम्मा लेता हूं. कृष्ण के काम को हम सब मिलकर करेंगे.
    भाइयों और बहनों, साल में एक-दो बार मुख्यमंत्रियों की बैठक प्रधानमंत्री करते हैं. लंच भी होता है. पांच-छह मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री के साथ एक ही टेबल पर बैठे थे. खाने की प्लेट लगी थी. भोजन परोसा जा रहा था, लेकिन मेरे मित्र मुख्यमंत्री खाना छोड़ इधर-उधर देख रहे थे. मैं कभी प्रधानमंत्री को देख रहा था,तो कभी अपने मित्र मुख्यमंत्री को. मुझसे रहा नहीं गया, मैंने कहा- कोई कैमरे वाला नहीं है, खा लो. हिपोकसी की भी सीमा होती है. बिहार की जनता यह न भूले. भाजपा के वसूल को समङों.
    भाइयों और बहनों, जिस समय बिहार में जंगलराज से मुक्ति का अवसर आया भाजपा के विधायक जदयू से अधिक थे. भाजपा के सुशील कुमार मोदी मुख्यमंत्री बन सकते थे, लेकिन बीजेपी के लिए दल से बड़ा देश होता है. पार्टी ने अधिकार की बली चढ़ा दी. हफ्ते भर में सरकार गिर गयी थी. उसके बाद गंठबंधन की सरकार बनी. अर्थशास्त्री व राजनीतिक पंडितों को मैं आह्वान करता हूं कि जब तक सरकार चली. भाजपा के मंत्रियों ने ही विकास किया,अच्छा काम किया. एक बार सवाल आया कि बिहार में फिर दो-दो चुनाव हुए, मोदी को चुनाव प्रचार के लिए लाया जाये या नहीं. हर नेता का प्यार था कि वे बिहार लाने के लिए आग्रह कर रहे थे. सुशील कुमार मोदी, नंद किशोर जी ने फोन किया, कैलाशपति मिश्र ने आग्रह किया, गिरिराज सिंह का अनुरोध और अश्विनी चौबे का आदेश भी आया. गठबंधन जाने का भी खतरा था. मैंने कहा- हमें ले जाने का आग्रह न करें. बस जंगल राज दोबारा नहीं आना चाहिए. नरेंद्र मोदी बिहार में न जाए कोई बात नहीं, लेकिन जंगल राज नहीं आना चाहिए. इसलिए हमने अपमान सहना पसंद किया. पर हमारे मित्र मुख्यमंत्री का इरादा नेक नहीं था. उनके चेलों ने उन्हें सलाह दी कि कांग्रेस से जुड़ जाओ. प्रधानमंत्री बनने का अवसर है. वे ख्वाब देखने लगे. यह भाजपा के साथ विश्वासघात नहीं है, यह विश्वासघात बिहार की कोटी-कोटी से है.विश्वासघात आपके साथ किया है. विश्वासघात करने वालों को सजा देनी है, उखाड़ना है. उन्हें साफ करना है.
बहनों और भाइयों गांधीजी ने चंपारण में अंगरेज मुक्त भारत की बात कही थी. उसी तरह पटना के इस गांधी मैदान से हम कांग्रेस मुक्त भारत का सपना साकार करेंगे. ऐसा हम यहां से संकल्प लें. कल टीवी देख रहा था. कांग्रेस के मित्र परेशान हैं. नींद नहीं आ रही है. बेचैन हैं. कह रहे हैं मोदी शाहजादा क्यों कह रहा है.अगर उन्हें मेरे शाहजादा कहने पर ऐतराज है तो हमें शाहजादा कहने की नौबत क्यों आयी. अगर आपको बुरा लगता है तो आप वंशवाद, परिवारवाद छोड़ें. हम शाहजादा कहना छोड़ देंगे.  जयप्रकाश नारायण लोकतंत्र के लिए जीये, जूझते रहे, जेल में भी रहने को तैयार हो गये.
    लोकतंत्र के चार दुश्मन हैं.पहला परिवारवाद-वंशवाद,दूसरा जातिवाद का जहर,तीसरा संप्रदायवाद और चौथा अवसरवाद यानी मौकापरस्ती. देश को दुर्भाग्य है कि बिहार की राजनीति में सभी चीजें उभर कर आ गयी हैं. चारों चीजें यूपीए के राज में उभरी है. भारत सरकार के दस साल पूरा होने को है. शुरू में ही यूपीए ने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाया. घोषणा हुई कि 100 दिन में महंगाई कम कर देंगे. महंगाई कम नहीं हुई. महंगाई और बढ़ी. अब उनको घर भेजने की तैयारी है. अब यूपीए को उखाड़ फेंकने की बारी है. मैं यूपीए को आह्वान करता हूं कि 2004 व 2009 में सरकार बनायी. देश की भलाई की बात कही, लेकिन 100 दिन के काम करने की घोषणा में 80 फीसदी भी काम नहीं किये गये. क्या देश की जनता उसे माफ करेगी? गंगा की सफाई की बात कही थी. साफ नहीं हुआ. बीमारियों का घर गंगा का तट बन चुका है. रोजगार देने का वादा किया था. क्या रोजगार मिला? गरीबी बड़ी समस्या है. महंगाई के कारण चूल्हा नहीं जलता है. बच्चे रोते-रोते सोते हैं. मां आंसू पिला कर सुलाती हैं. किसान भी महंगाई से मर रहे हैं. किसान को खाद नहीं मिल रहा है और बरौनी कारखाना में ताला लटका हुआ है. देश का नुकसान हो रहा है पर सरकार को इसकी परवाह नहीं है.
    केंद्र सरकार की ओर से 20 सूत्री कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. इसे लागू करने वाले पहले पांच राज्यों में भाजपा शासित राज्य हैं. गरीबों की बात करने वाले मेरे मित्र का राज्य बिहार का नंबर 20 वें पायदान पर है. गरीबों का मजाक उड़ा रहे हैं. योजना आयोग 26 रुपये रोज कमाने वालों को गरीब नहीं मानती है. 26 रुपये में तो एक परिवार के लिए चाय भी नहीं मिलती है.कांग्रेस के एक नेता तो 12 रुपये में ही खाना की बात करने लगे. गरीबी क्या है. उन लोगों को पता नहीं है. हमने गरीबी देखी है. गरीब घर में पैदा हुए हैं. बचपन गरीबी में ही बीती. बिहार ने ढेर सारे रेल मंत्री दिये. मैं तो रेल मंत्री का सपना नहीं देखता हूं. मैं रेल डिब्बे में चाय बेचा करता था. कितनी मुसीबत होती थी. टीटीइ व गार्ड को मैनेज करना पड़ता था. मंत्री तक को भी रेल के बारे में  इतनी जानकारी नहीं होगी जितनी मुङो जानकारी है. संप्रदाय को भड़काने का काम राजनेताओं ने किया है. जातिवाद व संप्रदायवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है. चाणक्य का काल स्वर्णिम काल था. छोटे-छोटे राज्यों को भी जोड़ा जाता था. एक होने पर जोर था, लेकिन कांग्रेस ने विभाजन का नारा दिया. जातिवाद को बढ़ावा दिया. जाति के अंदर भी जाति पैदा की. बिहार में फिर से स्वर्णिम काल को लाना है तो हम जोड़ने से आगे बढ़ेंगे, तोड़ने से नहीं. हर जाति-समुदाय को जोड़ना है तभी आगे बढ़ेंगे. जब सिकंदर आया तो विश्व जीत कर आया. इसी बिहार की धरती ने उसे परास्त किया और मार भगाया. इसी भूमि पर वे वीर पैदा हुए थे. वीरों के गौरव की धरती बिहार रही है. हिंदुस्तान की रक्षा करते-करते बिहार के चार जवान शहीद हुए. पाकिस्तान ने चार जवानों को मार गिराया. हिंदुस्तान का हर बच्च शहीद से प्रेरणा लेता है. गौरव करता है तो बिहार के एक मंत्री कहते हैं कि सेना में शहीद होने के लिए ही जवान जाता है. डूब मरो-डूब मरो. यह अपमान सहन करोगे. इनको हमेशा के लिए ऐसा सबक दो कि देश के जवानों की शहादत पर कभी भी कीचड़ न उछालें. मुझ पर चारों ओर से कीचड़ उछाला जा रहा है. कीचड़ उछालने वालों, जितना कीचड़ उछालोगे. कमल उतना ही खिलेगा. विश्वास के साथ आगे बढ़ना है. यही संकल्प लेकर आगे बढ़ना है.
    यह ऐतिहासिक रैली नहीं है. नये इतिहास की नींव रखने वाली रैली है. एक नये विश्वास, नयी उमंग के साथ हम आगे बढ़ें. यह संकल्प लें. बिहार भाजपा ने केंद्र से 50 हजार करोड़ का पैकेज मांगा है. दिल्ली दे या न दे, 200 दिन का सवाल है. बिहार को पैकेज मिलना चाहिए. जो प्यार बिहार ने दिया है, पलक पांवड़े बिछाया है. मुङो नहीं लगता है कि हिंदुस्तान के किसी नेता को ऐसा  सौभाग्य मिला होगा. मैं उसे ब्याज के साथ चुकता जरूर करूंगा. हमारा मंत्र है विकास. सारी जाति का विकास. मुसलिम भाई हज यात्र पर जाते हैं. भारत सरकार ने कोटा तय कर रखा है. गुजरात से 4800 और बिहार से सात हजार से कुछ अधिक. मेरे मित्र के राज्य बिहार से मुश्किल से छह हजार लोग ही हज यात्र पर जा पाते हैं.आवेदन ही नहीं आते हैं. कारण, गरीब मुसलमानों के पास इतने पैसे नहीं होते कि वे हज यात्र क्या करें. गुजरात में साढ़े चार हजार कोटा के लिए 40 हजार से अधिक आवेदन आते हैं. गुजरात का मुसलमान सुखी है. कच्छ व भरूच जिलों में मुसलिम अधिक हैं. गुजरात में अगर किसी जिले में अधिक प्रगति हो रही है तो वह है कच्छ व भरूच. लोगों की आंखों में धूल झोंका जा रहा है. लोग मूर्ख बना रहे हैं. गरीब हिंदू-मुसलिम आपस में नहीं लड़ना चाहते. वे गरीबी से लड़ना चाहते हैं. हम मिल कर गरीबी को परास्त करें. हमारी सरकार का मजहब है नेशन फस्र्ट, इंडिया फस्र्ट, भारत सबसे आगे. भारत का संविधान ग्रंथ है. भारत की भक्ति और शक्ति ही हमारी असली शक्ति है. बिहार के साथ देश में शांति और एकता को बनाये रखना है. ऐसा कोई काम नहीं करना है, जिससे बिहार की शान को चोट आये.
    भारत माता की जय.

शनिवार, 2 नवंबर 2013

दीपावली की शुभकामनाएं

बिग हिंदू की ओर से भारत वर्ष के सभी लोगों को दीपावल की हार्दिक शुभकामनाएं. आशा है आप सबों की दीवाली मंगलमय होगी.

शनिवार, 25 अगस्त 2012

अब तो बंद करें तुष्टिकरण


रोहित कुमार सिंह
15 अगस्त को एक खबर (अफवाह नहीं) चल निकलती है कि असम में बांग्लादेशी मुसलमान विरोधी दंगों के विरोध में पूरे द ेश में पूवरेत्तर के लोगों को निशाना बन ाया जा रहा है और ईद के बाद पूवरेत्तर के लोगों को मुसलमान काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं. खबर का असर हुआ और कर्नाटक व अन्य दक्षिणी राज्यों से पूवरेत्तर को जानेवाली ट्रेनों में भर-भर कर लोग पलायन करने लगे. देश एकाएक अराजकता की स्थिति में आ गया. देखा जाये  तो पूवरेत्तर के लोगों की चिंता गैर बाजिब नहीं थी. मुंबई के पुणो व झारखंड के रांची की घटनाएं साबित कर चुकी थी कि सबकुछ ठीक नहीं है और बदले की आग मुसलमानों में सुलग रही है. हालत बिगड़ता देख प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आगे आते हैं और सबकुछ ठीक होने का दावा करते हैं और अफवाहों से बचने की सलाह देते हैं. इसके दो दिन बाद इस प्रकरण में केंद्रीय गृह सचिव का बयान आता है कि यह सबकुछ फेसबुक व सोशल नेटवर्किग साइटों द्वारा फै लायी गयी अफवाहों के कारण हुआ है. हालांकि सरकार उनकी सुरक्षा को लेकर पूरी तरह गंभीर है. इसके बाद विश्वास बहाली का दौर शुरू होता है व रूटीन चीजें दोहरायी जाने लगती हैं, लेकिन तभी एक खबर आती है कि पश्चिम बंगाल में ट्रेन से पूवरेत्तर के 18 लोगों को फेंक दिया गया है. चूंकि इस खबर को पूवरेत्तर के लोगों ने स्वयं घटते हुए देखा सो एक बार फिर दहशत कायम हो जाती है. कल तक पूवरेत्तर की सुरक्षा के नाम पर कसमें खा रहे हमारे देश के हुक्मरान बगले झांकने लगते हैं क्योंकि यह बात सामने आती है कि हजारों की संख्या में पलायन करते पूवरेत्तर के लोगों की सुरक्षा के लिए एक सिपाही तक मौजूद नहीं था.
हम पूवरेत्तर के साथ क्या कर रहे हैं
यह 15 अगस्त से 20 अगस्त के बीच की घटनाओं का सार है, जो हमारे सिस्टम पर सवाल-दर-सवाल खड़े करता है. पहला सवाल-हम पूवरेत्तर के साथ क्या कर रहे हैं. गृह मंत्रलय की रिपोर्ट कहती है कि देश में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है और इससे बिहार के सीमावर्ती जिलों व पूवरेत्तर में धार्मिक समीकरण बिगड़ गया है. अल्पसंख्यक अब बहुसंख्यक हो गये हैं और कथित बहुसंख्यक अब अल्पसंख्यक कहे जा रहे हैं. इस बीच दिल्ली और गुवाहाटी में कई सरकारें आयीं और गयीं, पर किसी ने इस देश को स्थायी धर्मशाला बनने से नहीं रोका. पूवरेत्तर के 10 वैध लोगों के लिए दिल्ली से चला पैसा जब असम पहुंचता है तो उसके 100 नाजायज दावेदार हो जाते हैं. यह समस्या बढ़ती जा रही है. स्थानीय लोगों में रोष बढ़ता जा रहा है और कांग्रेस एंड कंपनी वोट बैंक को ध्यान में रख कर सबकुछ चुपचाप देख रही है.
खुफिया तंत्र केवल वीआइपी के लिए !
सरकार कह रही है कि पाकिस्तान ने साइबर क्राइम कर भारत का आंतरिक माहौल खराब किया. सवाल यह नहीं है कि किसने ़क्या किया. सवाल यह है कि जब पाकिस्तान आपकी आजादी के दिन दहशत बम फोड़ने में जुटा हुआ था तो सुरक्षा एजेंसियां क्या अचार लगा रही थी. यह बहुत आसान है कि आप अपनी गलतियों के लिए दूसरों को दोषी ठहरा दें, लेकिन बड़ी बात यह है कि इस मामले में कारगिल कांड की तरह हमारा खुफिया तंत्र फेल रहा. लगता है हमारा खुफिया तंत्र केवल वीआइपी की सुरक्षा के लिए ही सक्रिय होता है.
बोलने की आजादी पर पाबंदी
अब बात घटना के 10 दिन बाद की यानी 25 अगस्त की. सरकार ने कहा कि संघ परिवार व उसकी विचारधारा से जुड़े लोगों के ट्विटर एकाउंट बंद होंगे. इसके साथ ही बल्क एसएमएस भेजने पर पाबंदी जारी रहेगी. पाकिस्तान से जुड़ी साइटों व फेसबुक -ट्विटर को बंद करने अथवा ब्लॉक करने की बात तो समझ में आती है, लेकिन इस बहाने इसे धार्मिक रूप से बैलेंस करने यों कहें कि तुष्टिकरण के लिए संघ परिवार पर निशाना साधने की कार्रवाई तो निश्चय ही इमरजेंसी का दोहराव है. मैं इमरजेंसी के समय पैदा भी नहीं हुआ था किंतु जितना इसके बारे में पढ़ा या सुना उससे तो मुङो यही लगता है कि कांग्रेस ने शुरुआत तो कुछ ऐसे ही की होगी. देश की कांग्रेस सरकार कुछ भी कहे, वह बोलने की आजादी पर पाबंदी लगा रही है, वह इस आरोप से कतई बरी नहीं हो सकती है.